
Guava prepared in the soil of boondi
बूंदी. बूंदी की माटी में पककर तैयार हो रहे अमरूदों का स्वाद अब हर जुबां पर मिठास घोलने लगा है। साल दर साल वृद्धि से किसानों का इसकी बागवानी की ओर रुझान अधिक हो गया। बूंदी में पैदा हो रहे अमरूद हाड़ौती ही नहीं बल्कि देश के कई प्रमुख शहरों में लोगों की पसंद बन गए। बागवानी के जानकारों की माने तो यहां के अमरूद का आकारदेखकर ही लोग खींचे चले आ रहे हैं। बूंदी शहर सहित तालेड़ा, इंद्रगढ़, कापरेन व नैनवां क्षेत्र में अमरूद की खेती का प्रचलन बढ़ा है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि वर्ष 2017में अमरूद के बगीचों का रकबा बढ़कर 510हैक्टेयर हो गया।
प्रदेश में पहला स्थान
पिछले १५-२० वर्षों से जिले का अमरूद देशभर में प्रचलित है। २००५ से पहले तक राजस्थान में बूंदी के अमरूद उद्यान पहले नम्बर पर बना हुआ था। तब मौसम की बेरुखी के चलते इसके प्रचलन में कमी आई, लेकिन एकबार फिर से यहां के अमरूदों के प्रति किसान रुचि दिखाने लगा है। जिसके चलते अमरूद का प्रचलन एक बार फिर से पटरी पर लौट आया।
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कृषि विभाग ने खूब की मदद
कृषि अधिकारियों की माने तो दूर-दूराज तक फैली बूंदी जिले के अमरूद की महक के प्रति किसानों का रुझान खूब बढ़ गया।वर्ष २०१३ से कार्यालय खुलने के बाद से विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों ने इसका प्रचार-प्रसार भी किया। साथ ही किसानों को आ रही परेशानियों को दूर किया। इसी का परिणाम निकला की किसानों ने अमरूदों के बगीचों को मुनाफे का सौदा बना लिया।
किस्म ही अनूठी
अमरूद की दो किस्म में लखनऊ-४९ व इलाहाबादी सफेदा प्रचलित है। इसका उत्पादन अच्छा होने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता (बीमारियां कम लगना) होती है। साइज अच्छी होने के साथ इसके फल का आकार गुणवत्ता पूर्ण होता है। किसान नंद किशोर सैनी ने बताया कि 'बूंदी में पानी की कमी होने के कारण इसका प्रचलन बढ़ा है। सर्दी बढऩे के साथ कुदरत की भी मिठास बढऩे लग जाती है। बरसात में फल आने लगते है, उसके बाद बगीचे में पानी दिया जाता है। इसके बाद आकार में वृद्धि होती है।
किसान पप्पू सैनी ने बताया कि अमरूद प्रसिद्ध होने के साथ लोगों की जुबां पर मिठास घोलता हंै। इसके आकार को देखकर लोग खुद खींचे चले आते हैं। बूंदी का अमरूद नाम से बिकता है। अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा हो गया। इसी के चलते बगीचों की संख्या बढ़ रही है। बड़े-बड़े आकार के फल उगने के साथ इसको पक्षी नष्ट करने का डर बना रहता है। रखवली करते हैं। अमरूद के प्रति लोगों का रुझान अधिक बढ़ा है। इसके भाव से संतुष्ट होकर लोग बगीचे के बाहर ही गाडिय़ां लादकर ले जाने लगे हैं। होली तक अमरूदों का प्रचलन रहता है।
अमरूद की दुश्मन 'मक्खीÓ
बूंदी में अमरूदों के बगीचा लगाने वाले किसानों ने बताया कि रात-दिन रखवाली जरूरी हो गई। दिन के समय तोता व रात में चमगादड़ फल को नुकसान पहुंचाते हंै। यही नहीं यहां अमरूद की सबसे बढ़ी दुश्मन मक्खी है। जो मौसम में थोड़ी सी गर्माहट होते ही अपना असर दिखाने लगती है।
होने लगे ठेके
अमरूदों का भी ठेका होने लगा है। इसमें किसान अपनी फसल को तैयार कर सीधे किसी ठेकेदार को बेच देता है। जो बाद में स्वयं ही फलाव आने पर तोड़कर ले जाता है। ठेकेदार अब पैकिंग कर बाहर भेजने लगे हैं।
सहायक कृषि अधिकारी (उद्यान), मुरारी लाल बैरवा ने बताया कि 'अमरूदों की खेती में साल दर साल वृद्धि हो रही है। किसानों का बागवानी की ओर रुझान बढऩे लगा है। वर्ष २०१३ के बाद से उद्यान विभाग के कार्मिकों ने जिले में प्रचार-प्रसार करके बागवानी के क्षेत्र में वृद्धि के प्रयास किए हैं।आगे भी इसके प्रचलन के लिए प्रयास जारी रहेंगे।
Published on:
01 Dec 2017 08:06 pm
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