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विदेशी पावणों की होगी गणना… वन विभाग ने अपने हाथ में लिया कार्य, राजस्थान के जलाशयों में शीतकालीन प्रवास पर…

हजारों किलोमीटर का सफर तय करके अपनें घौसलों को छोडकऱ विदेशी परिंदें..

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बूंदी.
हजारों किलोमीटर का सफर तय करके अपनें घौसलों को छोडकऱ विदेशी परिंदें.. राजस्थान के जलाशयों में शीतकालीन प्रवास पर आने वाले प्रवासी पक्षियों की गणना का काम इस वर्ष वन विभाग ने अपने हाथ में ले लिया। पक्षी गणना के लिए प्रत्येक जिले के उपवन संरक्षक को नोडल अधिकारी व पक्षी विशेषज्ञ को संयोजक नियुक्त किया है। बूंदी जिले में 7 वेटलेंड पक्षी गणना के लिए निर्धारित किए हंै।

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जानकारी के अनुसार हर वर्ष पक्षी प्रेमी व स्वयंसेवी संस्थाएं शीतकालीन प्रवास पर आने वाले जलीय पक्षियों की गणना करवाते थे, लेकिन अभियान के महत्व एवं प्राकृतिक परिवर्तनों को देखते हुए इस साल विभाग ने गणना को स्टीक एवं प्रभावी बनाने के लिए कार्ययोजना तैयार की है। राजस्थान के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जे.वी. रेड्डी स्वयं पक्षी गणना की मोनिटरिंग कर रहे हंै। गणना के लिए जयपुर स्थित अरण्य भवन में राज्य के पक्षी प्रेमियों व वन अधिकारियों को एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा चुका है। बूंदी के पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक एवं पक्षी विशेषज्ञ पृथ्वी सिंह राजावत को पक्षी गणना के लिए जिला संयोजक नियुत किया गया है। जिले में गणना के लिए तैयारियां शुरू हो गई है। बूंदी में नोडल अधिकारी व उपवन संरक्षक कविता सिंह ने गणना के लिए अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दे दिए हैं।

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यहां होगी पक्षी गणना


बूंदी जिले में तालेड़ा के बरधा बांध, बूंदी के अभयपुरा बांध, जैतसागर झील, हिण्डोली के रामसागर झील, नैनवां के कनकसागर बांध दुगारी, रतनसागर झील तलवास व इंद्रगढ़ के इंद्राणी बांध को पक्षी गणना के लिए चुना है। गणना 8 जनवरी से 20 जनवरी के मध्य की जाएगी। इस दौरान प्रवासी, अन्त:प्रवासी व स्थानीय जलीय पक्षियों की वैज्ञानिक तकनीक से गणना की जाएगी।

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अवैध शिकार, जल प्रदूषण व पानी की गुणवत्ता का भी करेंगे सर्वे
पक्षी गणना के साथ जलाशय की भौगोलिक स्थिति व पक्षियों के प्राकृतिक आवासों को हो रहे नुकसान का भी सर्वे किया जाएगा। सर्वे के दौरान यह देखा जाएगा कि जलस्रोत में पानी कितने महिने भरा रहता है। पानी की गहराई, आस-पास व जलस्रोत के अंदर की वनस्पति, पानी की गुणवत्ता, अवैध शिकार की स्थिति व मछली ठेके से हो रहे प्रभावों का अध्ययन भी किया जाएगा। इस दौरान बांधों व वेटलेंड पर हो रही पेटाकाश्त खेती तथा जल प्रदूषण का स्तर भी देखा जाएगा।