बूंदीPublished: Apr 13, 2019 07:29:15 pm
पंकज जोशी
कस्बे में राष्ट्रीय राजमार्ग 148 डी के पास स्थित झैठाल माताजी के मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन नवरात्र के दिन अष्ठमी को यहां पर श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रही है।
झैठाल माता के नाम में यह छुपा था रहस्य…यहां प्रदेशभर से लेने आते हैं पाती
जजावर. कस्बे में राष्ट्रीय राजमार्ग 148 डी के पास स्थित झैठाल माताजी के मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन नवरात्र के दिन अष्ठमी को यहां पर श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रही है। इस दौरान माता का भव्य दरबार सजा हुआ था। श्रद्धालु ‘जय माता दी’ के जयकारे लगाने के साथ हाथ जोड़कर मन्नत मांगते नजर आए। माताजी के दर्शनों के लिए कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक सवाई माधोपुर आदि जिलों से श्रद्धालु पहुंचे। झैठाल शब्द झट-टाल शब्द से बना है। जिसका अर्थ संकटों को झट से टालो। भक्ïतों की मनोकामना झट से पूरी होने के कारण इसका नाम झैठाल पड़ा। झैठाल माताजी का मंदिर 1632 में बना। माताजी की प्रतिमा के सामने पुजारी द्वारा पात्र रखा जाता है। जिसमें माताजी की प्रतिमा पर चढ़े फूल पात्र में गिरते है। इस प्रक्रिया को पाती कहा जाता है। जितनी जल्दी ये प्रक्रिया होती है। मनोकामना को पूरी होने के समय को लेकर इसका अंदाजा लगाया जाता है। यहां के पुजारी (भोपा) की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये तम्बाकूयुक्त सामग्री का सेवन करना तो दूर छूते तक नहीं है।