गुदड़ी के लाल बन गई कालबेलिया गर्ल...
जिले की इस पहली कालबेलिया बेटी ने बदल दी गांव की तस्वीर

बूंदी. कहते हैं कि नामुमकिन को मुमकिन करने के लिए शिक्षा से बेहतर और कोई ज़रिया नहीं। शिक्षा से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है लेकिन हमारे समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जिनके बच्चे अशिक्षित हैं ऐसे गरीब बच्चों की जिन्दगी में समाज की ये बेटी ज्ञान का उजियारा फैला रही है।
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शहर से सटे ग्राम श्योपुरिया की बावड़ी जो कालबेलिया बस्ती के नाम से जानी जाती है यहा तबुंओं में अब साज सुरों की जगह क,ख,ग पहाड़े और गिनती के स्वर गूंजते है। यह बदलाव की बयार इसी समाज की बेटी बीना की वजह से आई है, जो जिले के कालबेलिया समाज की बेटियों में सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी है।
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जी हां बीना एम.ए की पढ़ाई कर रही है, शिक्षिका बनने का सपना संजोए बीना न सिर्फ खुद अपने पैरो पर खड़ा होना चाहती है बल्कि समाज की हर बेटियों को भी इसके लिए प्रेरित करती है। यहीं वजह है कि इन पांच सालों में इस गांव की तस्वीर बदलने लगी है। जिनका कभी पढ़ाई से नाता नही रहा वो महिलाएं आज हष्ताक्षर करती है। गांव की हर बेटी स्कूल में पढऩे जाती है। समाज के लिए मिसाल भी पेश की है
पिता से मिली प्ररेणा-
कबाड़ी का काम ? करने वाले पिता हरजीलाल डालानी की प्रेरणा से बेटी बीना उनके सपने को साकार करने में लगी है। इसके लिए वे दिन रात मेहनत करती है। २२ वर्षीय बीना के दिन की शुरूआत अल सुबह से हो जाती है। पहले पढ़ाई फिर घर के कामकाज में मां का हाथ बटाती और निकल जाती है, बच्चों को शिक्षित करने में। वे एक संस्था के साथ मिलकर भी बच्चों को शिक्षित करने में लगी है। सुबह से दौड़ लगाती जिंदगी में वो कभी थकती नही।
संघर्ष भरी राह...
दिल में कुछ कर गुजरने की चाहत, दिगाम में हालातों को सुधारने का जज्बा, हो तो मेहनत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है यह कहना है कि बीना का। समाज के बीच अपनी अलग पहचान बनाने वाली इस बेटी ने कड़े संघर्ष किए है। आर्थिक रूप से कमजोर यह वर्ग पूरी तरह से मेहनत मजदूरी पर टिका हुआ है। ऐसे में वह पिता का सहारा भी बनी हुई है। सिलाई-कढ़ाई करती है, उससे जो आमदनी होती है, उसका खर्च अपनी पढ़ाई में लगाती है।
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वे बताती है कि कॉचिग के लिए इतना पैसा नही इसलिए खुद जैसे तैसे मैनेज करती है। समाज के लिए मिसाल बनी इस बेटी ने गरीब बच्चों को शिक्षित करने की ठानी है। झुग्गी झोपडिय़ों में रहने वालों मज़दूरों के बच्चों मुफ्त में शिक्षा देती हैं। बीना का कहना है कि कुछ बच्चों और लड़कियों ने आज तक स्कूल नहीं देखा है। वे टीचर बनने के बाद एक भी बालिका को शिक्षा से वंचित नही होने देगी।
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