
गुढ़ानाथावतान. टाइगर रिजर्व के कोर जोन व बफर जोन में टेरेटरी बनाने वाला रामगढ़ का राजा।
गुढ़ानाथावतान. रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढऩे के साथ ही कोर के साथ ही अब बफर जोन के जंगलों में भी बाघों के अनुकूल बनाने के कामों का असर दिखने लगा है। वन विभाग ने दो साल पहले इस क्षेत्र में जुलिफ्लोरा को हटाकर ग्रासलैंड विकसित करने का काम शुरू किया था। वन क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों को कम कर इन्हें वन्यजीवों के लिए अच्छे आश्रय स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। रिजर्व में वन्यजीवों से समृद्ध एवं जैव विविधता के लिहाज से दुर्गम कालदां वन क्षेत्र में कालदां माताजी \के निकट 300 बीघा वनभूमि पर विलायती बबूल हटाकर सिल्वी पॉश्चर पद्धति से घास के मैदान व प्लांटेशन का काम हाथ में लिया था। दो साल बाद घास के मैदानों में घास तैयार हो गई है और शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। शीघ्र ही यहां नए ट्रेकिंग रूट बनाने व अन्य इलाकों में नए ग्रासलैंड विकसित करने की योजना है।
बाघों के आश्रय स्थल बनेंगे
जिले के सुदूर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में भी जल उपलब्धता वाले जल स्रोत जैव-विविधता के वाहक होने के साथ-साथ वन्यजीवों के प्रमुख आश्रय स्थली भी सिद्ध हुए हैं। इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालदां माताजी का स्थान प्रमुख है। जहां भीषण अकाल में भी पानी का एक बड़ा दह भरा रहता हैं तथा प्राकृतिक रूप से यहां चट्टानों से पानी निकलता है। इसी कारण इसका नाम कालदह पड़ा, जो अब कालदां वन खण्ड के रूप में जाना जाता है। इसी पहाड़ी पर उमरथुणा के निकट केकत्या महादेव, सथूर के निकट देवझर महादेव, आम्बा वाला नाला, डाटूंदा के पास दुर्वासा महादेव, पारा का देवनारायण, नारायणपुर के पास धूंधला महादेव, खीण्या-बसोली के पास आम्बारोह, भीमलत महादेव, नीम का खेड़ा के पास झरोली माताजी, खेरूणा के नीलकंठ महादेव आदि स्थान सदाबहार जलयुक्त होने के कारण सदियों से बाघों के पसंदीदा स्थान रहे है।
बाड़े बनाने पर रोक
वन विभाग की नियमित गश्त व जिला कलक्टर द्वारा सम्पूर्ण टाइगर रिजर्व क्षेत्र में धारा-144 लगाने से इस वर्ष वन क्षेत्रों में पशुपालकों के प्रवेश व बाड़े बनाने पर रोक लगी है, जिससे यह इलाका बाघों के स्वागत के लिए तैयार होने लगा है। एक महीने पहले शॉफ्ट एनक्लोजर से खुले जंगल में छोड़ी गई युवा बाघिन आरवीटी-8 का रुख कालदां की तरफ है तथा यह कभी भी इन जंगलों में प्रवेश कर सकती है।
समृद्ध जैव विविधता वाले हैं कालदां के जंगल
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के देवझर महादेव से भीमलत तक के बफर जोन में परम्परागत जलस्रोतों पर 12 माह पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए हैं। करीब तीन सौ वर्ग किलोमीटर के इन दुर्गम पहाड़ी जंगलों में डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी कल-कल पानी बहता रहता है। साल भर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में जल उपलब्धता के चलते मूक प्रणियों के लिए बूंदी के जंगल सदियों से प्रमुख आश्रय-स्थल बने हुए हैं।
Published on:
21 Aug 2025 05:06 pm
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