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बूंदी के गुड़ की मिठास अब दूर-दूर तक फैल रही, खेतो में फैलने लगी गुड़ की महक

बूंदी जिले में चलने लगी चरखियां, बनने लगा गुड़, गन्ने की खेती में बढ़ा रुझान

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The sweetness of Bundi jaggery is now spreading far and wide

The sweetness of Bundi jaggery is now spreading far and wide

बूंदी- चीनी मिलें तो गन्ने से शक्कर बनाती हैं लेकिन देश में बड़े पैमाने पर गन्ने से गुड़ भी बनाया जाता है जो आज भी पारंपरिक तरीकों से ही बनता है। बूंदी जिले मेंं कई ग्रामीण क्षेत्रों में गुड़ की मिठास अब दूर-दूर तक फैल रही है। बिना केमिकल द्वारा तैयार गुड़ दूसरे प्रदेशों के लोगों की पहली पसंद बन रहा है। यह न सिर्फ जायके में बेहतरीन है, बल्कि सेहत के लिहाज से भी मुफीद है। बूंदी जिले के बाजार गुड़ की खुशबू से महक रहे हैं। ऐसे में यहां के किसानों में कोल्हू लगाने की होड़ मची है।

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गुड़ की डिमांड ज्यादा होने से किसानों को भी खूब लाभ हो रहा है। सर्दी की शुरुआत के साथ ही बड़ानया गांव क्षेत्र में गन्ने की चरखियां चलने लगी है। इसके साथ ही गुड़ बनाने का काम जोरो पर है। दो दशक पूर्व क्षेत्र में गन्ना की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी। लेकिन किसानों को गन्ने का उचित दाम नहीं मिलने के चलते गन्ने की खेती से हाथ खिंचने लगे थे अब फिर से किसानों का रुझान गन्ना की खेती की ओर हो बढऩे लगा है। इन दिनों क्षेत्र के अलोद, दबलाना ,बड़ोदिया, सतूर, दाता, खातीखेड़ा, चेता, मांगलीकला, मांगलीखुर्द, टहला, बिचडीं सहित अन्य गांवों में चरखियां चलने लगी है। यहांं आप को दूर से गर्मागर्म गुड़ की खुशबू आने लगेगी।

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ऐसे तैयार होता है गुड-
बैलों से कोल्हू चलाकर गन्ना पेरा जाता है फिर बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में उबालकर उसे ठंडा कर गुड़ बनाया जाता है। गांव में कई कोल्हू लगे हैं। बैल बारी-बारी से पेराई करते हैं। किसान बताते हैं, खेत से गन्ना काटने के बाद उसके पत्ते अलग कर देते हैं फिर कोल्हू में पेरने से जो रस निकलता है उसे बड़ी सी कढ़ाई में कई घंटों तक गर्म कर देते हैं, जब वो गाढ़ा हो जाता है तो किसी बड़े बर्तन में निकाल लेते हैं, उसके बाद गुड को बाल्टी सा नांद आदि में भर कर रखते हैं या फिर छोटे.छोटे लड्डू जिन्हें भेली कहते हैं तैयार करते हैं। कई किसानो के लिए उनकी जीविका का आधार है। पूरा परिवार मिलकर ये काम करते हैं। कोई गन्ना पेरता है तो कोल्हू के बल हांकता है। रस को गर्म करने के लिए इस तरह शाम तक एक दो चढ़ाव, एक कढ़ाई गन्ने के रस का गुड़ उतर जाता है। बैलों से कोल्हू चलाने में समय तो लगता है लेकिन इंजन वाला कोल्हू लगवाने में खर्च काफी आता है ऐसे छोटे किसान बैलों का ही इस्तेमाल करते हैं। वहीं इसके इतर कई किसान अब मशीनो का उपयोग करने लगे है। बूंदी जिले में सबसे ज्यादा गुड़ बड़ानयागांव, तालेड़ा, में बनाया जाता है। बड़ानयागांव कृषिपर्यवेक्षक रोडूलाल वर्मा ने बताया कि गन्ने से गुड बनाना किसानो के लिए फायदे का सौदा सबित हो रहा है। यहां के किसानों द्वारा तैयार गुड़ की सबसे खास बात यह होती है कि गुड़ बनाने में केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है। चूना और सेलखड़ी भी नहीं मिलाई जाती है। शुद्ध सरसों का तेल डाला जाता है, जिससे गुड़ मुलायम रहता है। हल्का सा लाल रंग लगाया जाता है, ताकि गुड़ देखने में खूबसूरत लगे। केमिकल का इस्तेमाल नहीं होने वजह से गुड़ जायकेदार होता है और यह सेहत के लिहाज से भी फायदेमंद होता है।