आरबीआइ तैयार कर रहा रिपोर्ट-
इस तरह के मामलों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है, जो इस साल के अप्रेल मध्य तक सार्वजनिक हो जाएगी। इसके आधार पर ही केंद्र सरकार इस बात को सुनिश्चित करेगी कि ऐसी कंपनियों के लिए मौजूदा कानूनी ढांचे का इस्तेमाल करें या नया कानून लेकर आएं। इन कंपनियों को कानूनी प्रावधान के तहत इसलिए लाया जा रहा है, ताकि कर्ज देने से पहले ये कंपनियां खुद का रजिस्ट्रेशन करा लें और कंपनी में ही एक विवाद समाधान तंत्र बन जाए।
निजी डेटा से ब्लैकमेलिंग-
यह पाया गया है कि इनमें से कुछ बेईमान ऑनलाइन कंपनियां 300 फीसदी वार्षिक ब्याज दर के रूप में उच्च शुल्क लेती हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ये कंपनियां बिना किसी परिश्रम के तत्काल, कोलेट्रल-फ्री लोन जैसी सुविधाएं देती हैं, लेकिन कर्ज देने की प्रक्रिया में ये कंपनियां निजी डेटा इकट्ठा कर लेती हैं और लोगों को ब्लैकमेल करती हैं। पिछले साल हुई आत्महत्या के मामलों में ऐसे कई केस देखे गए।
पंजीकरण या लाइसेंस की आवश्यकता-
इस तरह के ज्यादा (फर्जीवाड़ा और आत्महत्या) मामले आने के बाद केंद्रीय बैंक ने 13 जनवरी को सक्रिय ग्रुप का गठन किया, जो डिजिटल लेंडिंग या फिर कर्ज देने वाले ऐप्स पर निगरानी करेगा। महामारी और लॉकडाउन के समय ये समस्या ज्यादा बढ़ी, जब ज्यादातर लोगों ने अपनी नौकरी खो दी थी। इस तरह के ऐप्स की कोई कानूनी संस्था नहीं है, ये बस दलालों और बदमाश लोगों की ओर से चलाई जाती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, सभी राज्यों को कर्ज देने के लिए पंजीकरण या लाइसेंस की आवश्यकता होती है।