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रुद्र महायज्ञ में 11 शिवलिंगों का सामूहिक अभिषेक

रुद्राभिषेक महायज्ञ का चौथा दिन

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Collective Abhishek of 11 Shivlings in Rudra Mahayagya

रुद्र महायज्ञ में 11 शिवलिंगों का सामूहिक अभिषेक

चेन्नई. श्रावण मास के उपलक्ष्य में श्री शिव संकल्प अनुष्ठान केन्द्रम काशी वाराणसी के संयोजन में जारी श्री रुद्र महायज्ञ के चौथे दिन शिवलिंगों का सामूहिक अभिषेक हुआ। इस मौके पर सवेरे काशी के ही आचार्य विनोद झा ने वैदिक मंगलाचार से यज्ञ प्रारम्भ करवाया। महायज्ञ में बड़ी संख्या में भक्तों ने हिस्सा लिया। इस मौके पर 11 शिवलिंगों का सामूहिक अभिषेक किया गया।
स्वामी पद्मनाभम ने बताया कि श्रावण भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना है, इस महीने में शिव भगवान का पूजन अभिषेक करने से वे जल्दी प्रसन्न हो कर भक्तों की मुराद पूरी करते हैं।
भगवान शिव को जलधारा अत्यन्त प्रिय है, शास्त्रों में कहा गया है 'जल धारा शिव प्रिय:Ó।
काशी से पधारे इस मौके पर विद्वानों ने यज्ञ में युवाओं को धर्म ओर संस्कार के प्रति जागरूक किया एवं बताया कि यह महायज्ञ विश्व कल्याण के लिये किया जा रहा है।

क्रोध करना दुर्भाग्य है प्रेम करना सौभाग्य

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जिस प्रकार बांस से आकाश को नापना और छिद्र वाली नाव से समुद्र पार करना कठिन है, उसी प्रकार परिमित काल में प्रभु के अपरिमित गुणों का गुणगान करना संभव नहीं है। पलभर का क्रोध भविष्य बिगाड़ सकता है इसलिए इसे जीवन का हिस्सा न बनाएं। क्रोध एक ऐसी आग है जो जलती तो है दूसरों को जलाने के लिए लेकिन वास्तव में सबसे पहले हमें ही जलाती है। यह चिंगारी की तरह उठती है और ज्वालामुखी की तरह धधकती है। जब क्रोध परिवार समेत आता है तो पूरा जीवन तबाह कर देता है। इसलिए क्रोध को हमेशा दूर रखना चाहिए। साध्वी ने कहा दुनिया से बात करने को फोन चाहिए और खुद से बात करने के लिए मौन चाहिए। फोन कवरेज एरिया से बाहर बेकार है और मौन हर एरिया में सदाबहार है। फोन से कषाय हो सकता है लेकिन मौन से नहीं। क्रोध करना दुर्भाग्य एवं प्रेम करना सौभाग्य है। साध्वी अपूर्वाश्री ने कहा हर व्यक्ति के मन में वैराग्य का भाव हो चाहे वह संयमी जीवन में हो या गृहस्थ जीवन में।

लोकप्रियता पाने के लिए कषाय छोड़ें

वेलूर. यहां शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा लोकप्रियता पाने के लिए क्रोध, मान, माया व लोभ इन चार कषायों को छोडऩा होगा। कषायों से हम जब तक चिपके रहेेंगे तब तक हम लोकप्रिय नहीं हो सकते। जब तक अहम खत्म नहीं होगा व्यक्ति किसी की बात मानना तो दूर सुनेगा भी नहीं और सही सलाह पर ध्यान नहीं देगा। इसलिए सबसे पहले व्यक्ति को स्वयं सुधरना होगा। जो स्वयं सुधर जायेगा वह घर परिवार एवं संघ-समाज, राष्ट्र को सुधार सकता है। अगर स्वयं ही क्रोधी व अभिमानी है वह अन्य लोगों को कैसे सुधार सकेगा। पहले स्वयं सरल, नम्र, विनयी एवं निर्लाेभी बनेगा तभी उसका कहना सब मानेंगे।