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पापी का सम्मान नहीं,  आलोचना करें

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने श्रेणिक और रानी का सुनाया प्रसंग

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Do not respect sinners, criticize them

पापी का सम्मान नहीं,  आलोचना करें

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने राजा श्रेणिक और रानी के प्रसंग से बताया कि रिश्ते और सपने तब तक ही सुंदर होते हैं, जब तक उनमें लॉजिक या तर्क न आए। हमें कभी भी अपने से छोटों पर अविश्वास नहीं करना चाहिए। बड़ों द्वारा छोटों पर विश्वास करने और समस्याओं के समाधान में भागीदार बनाने पर उनका आत्मबल बढ़ता है और वे जीवन उत्साही होकर समस्याओं का डटकर मुकाबला करने में समर्थ बनते हैं। राजा श्रेणिक ने अभयकुमार रानी को दिए अपने आश्वासन की बात बताई और अभयकुमार उन्हें आश्वस्त करके राजा श्रेणिक का रानी को दिया हुआ वचन अपनी तपस्या और आत्मबल द्वारा मित्रदेव का आह्वान करके पूरा करवाता है। इस प्रकार अभयकुमार ने अपने ध्यान की शक्ति और तप से असंभव को भी संभव बना देता है। हमारा मन या तो व्यर्थ कार्य करता रहता है या अनर्थ। यह अधिकतर समय अपने ही विरुद्ध सोचता रहता है। हम अपनी क्षमताओं पर ही शंका करते रहते हैं, हमें अपने मन को ही अपना मनोरथ बनाना है, इसकी सारी विधियां आगम में बताई गई है।
आचारांग सूत्र में बताया गया है कि मैंने धर्म क्रिया की, मैंने धर्म क्रिया कराई और मैंने धर्म क्रिया करने वाले का अनुमोदन किया, उसे देखकर प्रसन्नता महसूस की। जिन्होंने पच्चखान न लिए हो, वो अपने जीवन में ९ प्रकार से पाप चल रहे होते हैं। भीष्म पितामह ने स्वयं पाप कार्य नहीं किया लेकिन स्वयं के सामने हो रहे पाप कार्य को वे रोक सकते थे। जितना पाप करने वाले को लगता उससे अधिक पाप कराने वाले को लगता और और उससे कई हजार गुना पाप होते देखकर भी कुछ न कहने और उसकी आलोचना न करने वाले को होता है। इसकी सजा सबसे भयंकर है।
हो सकता है कि मैं पाप करता हंू, लेकिन पाप करने वाले का अनुमोदन नहीं करता। आज से ही यह तय कर लें कि जो समाज के लिए गलत है, पाप, आडम्बर, लड़ाई और बुरे कर्मों का मैं समर्थन नहीं करुंगा। मजबूरी में पाप का बंध हो सकता है लेकिन सामथ्र्यवान होते हुए भी जो पाप कार्यों की अनुमोदना करता है, उन्हें संरक्षण देता है वह पापानुबंध का बंधन करके पापों की शृंखला शुरू करता है। जो छोड़ सकते हैं वह अवश्य छोड़ें। यह केवल आपकी जिम्मेदारी है कि पापों को शह न दें और पापी का सम्मान न करें। पापी का समर्थन करोगे तो दुर्योधन और दु:शासन को उत्पन्न कर रहे हो।