
Shankaracharya gave new dimesnion to Shankar Mutt
चेन्नई.
शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती बुधवार सुबह ब्रह्मलीन हो गए। धर्म और आध्यात्मिक गुरु व संत के अलावा समाज सुधार व जनहित में किए गए उनके किए गए कई कार्य सदैव जीवंत रहेंगे। वे दलितों को मंदिरों में प्रवेश दिलाने के पैरोकार बने। उनको ऐसे शंकराचार्य के तौर पर याद रखा जाएगा जिन्होंने सीमाओं को तोड़ा और नई परिभाषाएं लिखीं। पूर्ववर्ती शंकराचार्यों की तुलना में वे अलग थे। उन्होंने कांची मठ को सामाजिक आयाम दिया तो राजनीतिक सक्रियता से भी नहीं चूके और विवादों में भी घिरे। २००४ के शंकररामन हत्याकांड में प्रमुख आरोपी बनाया गया था और उनको जेल भी जाना पड़ा था लेकिन बाद में आरोपमुक्त कर दिए गए। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती कांची कामकोटी पीठ के 69वें मठ प्रमुख थे। मां-बाप ने उन्हें सुब्रमण्यम महादेवन नाम दिया था। बचपन से ही बेहद कुशाग्र थे। दूसरे बच्चों से कुछ अलग होने के कारण कम उम्र में ही वेकांची मठ आ गए। उन्हें अगले शंकराचार्य के रूप में तैयार किया जाने लगा। 19 साल की उम्र में उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग करके संन्यास ग्रहण कर लिया। वे 1954 में शंकराचार्य बने थे। जयेन्द्र सरस्वती के लाखों की संख्या में अनुयायी थे। हालांकि जयेन्द्र सरस्वती पारंपरिक साधुओं की तरह नहीं थे। वे उन विषयों से भी जुड़े रहे जिनसे प्राय: साधु-संन्यासी दूरी रखते हैं। वे विद्वान थे। उनको ऋग्वेद, धर्म शास्त्र, उपनिषद, व्याकरण, वेदांत, न्याय और सभी हिंदू धर्मों के ग्रथों का ज्ञान था। उनके अनुयायियों के लिए उनकी साधना उनकी असीम भक्ति के अनुरूप थी। साधु बनने के बाद वे सभी तरह के शारीरिक सुखों को त्याग चुके थे। जयेन्द्र सरस्वती को दर्जनों स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल्स और चाइल्ड केयर सेंटर खोलने का भी श्रेय दिया जाता है। कांची मठ इन संस्थाओं को मुफ्त या सब्सिडी पर अपनी सेवाएं प्रदान करता है।
शंकराचार्य का दर्शन
स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने एक साक्षात्कार में में जीवन दर्शन दिया था कि इंसान ईश्वर द्वारा तय नियति के साथ दुनिया में आता है लेकिन यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वह किस तरह से नियति को साथ लेते हुए आगे बढ़े। उन्होंने यह बात एन. रघुरमण को कही थी जिन्होंने अपनी किताब स्मार्ट बनने के फंडे में इसका वर्णन किया है। वे जिन्दगी को रमी का खेल मानते थे।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण
स्वामी जयेंद्र सरस्वती का हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान रहा है। उन्होंने अपने जीवन काल में देश में हिन्दुत्व की स्थापना के लिए काफी प्रयास किए। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर की गई उनकी पहल की काफी चर्चा हुई। वे राम मंदिर निर्माण के लिए विभिन्न पक्षों के साथ वार्ता के हिमायती थे। उनका मानना था कि मंदिर निर्माण का रास्ता सभी पक्षों के साथ बातचीत के जरिए ही संभव है।
दलितों को मंदिर में प्रवेश
जयेंद्र सरस्वती ने समाज सुधार के तहत दलितों को मंदिर में प्रवेश देने का अभियान चलाया तो धर्म परिवर्तन का जमकर विरोध किया। वे पहले शंकराचार्य भी थे जिन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को दबाया नहीं और खुलकर बोल् इसके चलते वे तमिलनाडु में करुणानिधि की डीएमके की आंखों में खटके और जयललिता से भी ठन गई थी। करुणानिधि ने तो उनके मठ को सरकारी नियंत्रण में लेने की भी तैयारी कर ली थी लेकिन नाकाम रहे थे।
बीच में छोड़ा था मठ
उनका जीवन साधारण था। उनसे मिलना कठिन नहीं था। हालांकि कई बार में उन्होंने ऐसे काम ? भी किए कि लोग हैरान रह गए जब 1987 में उन्होंने अचानक मठ छोड़ दिया और वे कहां गए किसी को पता नहीं चला। ये खबर देशभर के अखबारों में सुर्खियां बन गई दो तीन दिन बाद पता लगा कि वे कर्नाटक में हैं। ये कयास लगाए गए थे कि शंकराचार्य चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती से अनबन के कारण उन्होंने यह कदम उठाया।
Published on:
28 Feb 2018 08:43 pm
बड़ी खबरें
View Allचेन्नई
तमिलनाडु
ट्रेंडिंग
