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युवती की मौत की जांच के लिए बांग्लादेश से सहयोग मांगा

रिमू ने खुद को बंगाल के 24 परगना का निवासी बता रखा था...

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women murder

कोयम्बत्तूर. अट्टायामपालमय की एक युवती की संदिग्धावस्था में मौत की जांच के लिए पुलिस प्रशासन ने बांग्लादेश के दूतावास से सम्पर्क साधा है। युवती पूर्णिमा पुत्री मुरुगंधनम दो साल पहले तिरुपुर में हॉजरी फैक्ट्री में काम करती थी।
उस समय वह नाबालिग थी।अचानक वह लापता हो गई। मुरुगंधनम ने पुत्री के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। फैक्ट्री में साथ काम करने वाला रिमू शेख नाम का युवक भी गायब था। रिमू ने खुद को बंगाल के 24 परगना का निवासी बता रखा था। एक दिन पूर्णिमा का फोन आया कि उसने रिमू से शादी कर ली है और खुश है। पिता ने तब रिपोर्ट बापस ले ली थी। समय-समय पर फोन से बातचीत होने पर पूर्णिमा के माता पिता की चिन्ता दूर हुई। बाद में पता लगा कि दोनों बांग्लादेश चले गए हैं।
मौत के समय गर्भवती थी

पुलिस ने रिमू के भारत में लाने के लिए बांग्लादेश दूतावास से सहयोग को कहा है..
नौ फरवरी को रिमू ने फोन पर बताया कि बीमारी की वजह से पूर्णिमा की मौत हो गई है। उस समय वह तीन माह की गर्भवती थी। मुरुगंधनम ने बाद में रिमू से सम्पर्क करने की कोशिशकी पर कोई जबाव नहीं मिला। पुलिस में मामला पहुंचने पर फोन के जरिए पता लगा कि रिमू ढाका में हैं और आजकल रिक्शा चला रहा है। पुलिस ने रिमू के भारत में लाने के लिए बांग्लादेश दूतावास से सहयोग को कहा है। साथ ही पुलिस के सामने फिर से यह सवाल खड़ा हो गया है कि रिमू वास्तव में भारत का नागरिक है या फि र बांग्लादेशी।
इसके बाद भी पुलिस प्रशासन आंखे मंूदे हुए हैं। यहां के लोगों का कहना है कि जितने भी कामगार खुद को बंगाल का बताते हैं । उन सभी की अगर बारीकी से जांच की जाए तो इनमें से कई पं .बंगाल के नहीं बल्कि बांग्लादेश के मूल निवासी निकलेंगे। हर साल यहां बड़ी संख्या में प्रवासी कामगार आते हैं। जो लोग इन्हें काम पर रखते हैं वे पुलिस को इनके बारे में जानकारी देने में लापरवाही बरतते हैं। गारमेंट फैक्ट्रियों में काम करने वाले स्थायी रुप से नहीं रहते । कोई कामगार नौकरी छोड़ कर जाता हैं तो उससे ही विकल्प के रूप में दूसरा कामगार उपलब्ध कराने को कहा जाता है। वह अपने किसी परिचित को यहां भेज देता है। फै क्ट्री संचालक पुराने कामगार पर भरोसा कर रख लेता है। कई बार नए कर्मचारी से उसका ब्योरा तक नहीं लिया जाता। जबकि यह अनिवार्य है। यही हालत मकान किराए पर देने वालों की है। उनका यहां पुराने किराएदार की पहचान के आधार पर लोगों को कमरे दे दिए जाते हैं। ऐसा भी होता है कि पुराना किराएदार मकान खाली कर लौट चुका होता है। लेकिन उसकी सिफारिश वाले जमे रहते हैं। घर-घर जांच के दौरान पता लगा कि एक युवक ने अपनी पहचान के आधार पर काम व मकान किराए पर दिलाया। वह उससे ट्रेन में मिला था । वहीं जान पहचान हुई। उसने तिरुपुर में काम दिलाने में मदद कर दी।