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जिले के रेलवे स्टेशनों पर नजर आता है पलायन, दिल्ली व आसपास के राज्यों के लिए पलायन जारी

जिले में पलायन की समस्या अब भी मौजूद है। जिले में रोजगार के अवसर कम होने से गरीब तबके का पलायन करना मजबूरी है। वन नेशन वन कार्ड के जरिए सितंबर महीने में अन्य राज्यों में राशन ले रहे परिवारों के आंकड़े भी कुछ दह तक पलायन की समस्या को बयां कर रहे हैं।

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हरपालपुर से दिल्ली की ट्रेन पकड़ते प्रवासी

छतरपुर. जिले में पलायन की समस्या अब भी मौजूद है। जिले में रोजगार के अवसर कम होने से गरीब तबके का पलायन करना मजबूरी है। वन नेशन वन कार्ड के जरिए सितंबर महीने में अन्य राज्यों में राशन ले रहे परिवारों के आंकड़े भी कुछ दह तक पलायन की समस्या को बयां कर रहे हैं। जिले के 7 हजार 449 परिवार 16 राज्यों में वन नेशन वन कार्ड योजना के तहत खाद्यान्न ले रहे हैं। वन नेशन वन कार्ड योजना की रिपोर्ट के अनुसार छतरपुर जिले के उपभोक्ता प्रदेश में सर्वाधिक लाभ उठा रहे हैं। दमोह दूसरे नंबर पर है जिले के उपभोक्ता दिल्ली, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में स्कीम का फायदा उठाने में पहले नंबर पर हैं।

दिल्ली में 4860 परिवारों को लाभ


जिला आपूर्ति विभाग की रिपोर्ट के अनुसार जिले के 4860 उपभोक्ता दिल्ली में योजना का लाभ ले रहे है। इसके साथ 1233 उपभोक्ता हरियाणा में लाभान्वित है। जम्मू-कश्मीर में हर माह जिले के 1129 उपभोक्ताओं द्वारा राशन लेने की जानकारी सामने आई है। जानकारी के अनुसार जिले के उपभोक्ता महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, आंधप्रदेश, लाक, तेलगंना, बिहार, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हिमाचल में वन नेशन व कार्ड योजना का लाभ ले रहे हैं। इससे यह भी अंदाजा लगता है कि जिले के ग्रामीण अंचलों से रोजगार के लिए सर्वाधिक पलायन किन प्रदेशों में है।

गांव में काम नहीं मिलने से समस्या


गांवों से पलायन रोकने के लिए मानव श्रम को ग्राम विकास में भागीदार बनाने के लिए लागू कई योजनाएं भी ग्रामीणों को गांव में काम नहीं दिला पाई हैं। जहां भी काम हुए वहां मानव श्रम की बजाए मशीनों से काम कराए गए जिससे स्थिति बिगड़ती चली गई। ऐसे ही लगातार बदतर हो रहे हालातों से जूझते हुए ग्रामीण अपना घर,खेत-खेलिहान छोडकऱ शहरों की ओर कूच कर रहे हैं। एक तो मनरेगा में गांव में काम ही नहीं मिलते, यदि काम मिल भी जाए तो भुगतान कम और देर से मिलता है। मजदूरी बकाया होने से मजदूर काम करने की बजाय गांव से बोरिया बिस्तर समेटकर काम-दाम और रोटी के लिए महानगरों की ओर पलायन करना ज्यादा सही समझते हैं। ऐसे तमाम कारणों से गांव में काम व मजदूरी के अभाव में जिले से प्रतिदिन प्रौढ़ और युवा मजदूर रोजगार की तलाश में कानपुर,दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, हैदराबाद सहित अन्य महानगरों का रुख कर रहे हैं। जहां वे मजदूरी कर अपना व अपने परिवार का पेट पाल सकें।

ये कहना है प्रवासियों का


जिले से बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन से जहां मनरेगा की असलियत सामने आ रही है। वहीं ग्रामीण मजदूरों की दुर्दशा की विंताजनक तस्वीर भी दिखाई दे रही है। दिल्ली जा रहे मुकेश आदिवासी ने बताया गांव में कोई काम नहीं है। काम होता भी है तो मजदूरी देर से मिलती है, ऐसे में लोगों से कर्जा लेकर चूल्हा जलाना पड़ता है। ग्रामीण दिल्लाराम, महेश और रामस्वरुप राजपूत ने बताया कि ऐसी योजना किस काम की जो न तो काम दे सके न समय पर मजदूरी। सरोज ने बताया किगांव में जो काम होते हैं, वे मशीन से कराए जाते है। कभी-कभी पांच-छह दिन काम मिलता है, तो 25 दिन खाली बैठना पड़ता है। पैसा मिलने में देर होने से परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया, इसीलिए बाहर जा रहे हैं।

मनरेगा नहीं रोक पा रही पलायन


सरकार ने आम गरीबों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में पंचायतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी यानि मनरेगा योजना लागू की है। दुनिया की सबसे बड़ी इस योजना का मूल उद्देश्य आस्था व श्रम मूलक कार्य कराके लोगों को काम उपलब्ध कराके उनका पलायन रोकना था, मगर ऐसा हो नही सका। सही मायने में अधिकारियों से लेकर पंचायत प्रतिनिधियों तक सभी मनरेगा से मलाई खा रहे हैं, वहीं जरूरतमंद ग्रामीण परेशान हैं। सच्चाई ये है कि एक तो 90 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में कार्य नहीं हो रहे हैं, जो कार्य होते भी हैं वे कागजों पर पूर्ण करके राशि आहरित कर ली जाती है। तालाब गहरीकरण, मिट्टीकरण, पौधरोपण, नाला सफाई के काम मनरेगा वाले अधिकांश काम मशीनों से कराए जा रहे हैं। वहीं कई काम कराए बिना ही मजदूरी तथा मटेरियल के नाम पर फर्जी मस्टर व फर्जी बिलों से राशि निकाल ली गई है।

इनका कहना है


वन नेशन वन कार्ड के तहत 10 अंकों का राशन कार्ड नंबर जारी किया गया है। इसके पहले दो अंक राज्य का कोड़ है, जिसके आधार पर राशन की पोर्टेबिलिटी की सुविधा दी जा रही है।
सीताराम कोठारे, डीएसओ