
पता चल सकेगा जमीन का स्टेट्स
छतरपुर। सरकारी जमीन और निजी जमीनों को हेराफेरी कर हड़पने वाले भू-माफिया पर अब लगाम कसने के लिए पूरे प्रदेश में बंदोबस्त रिकॉर्ड को ऑनलाइन किया गया है। लेकिन योजना की शुरुआत के दो साल बाद भी छतरपुर जिले का रिकॉर्ड ऑनलाइन नहीं हो सका है। जबकि प्रदेश के 50 जिलों का रिकॉर्ड एक साल पहले ही ऑनलाइन हो चुका है। सागर संभाग में सागर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना का रिकॉर्ड पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुका है, सागर संभाग में केवल छतरपुर जिले का ही रिकॉर्ड ही ऑनलाइन होना शेष है। कोरोना संकट व विभागीय लापरवाही के चलते धोखाधड़ी रोकने की योजना पर अभी तक पूरी तरह से अमल नहीं हो सका है। ै।
पता चल सकेगा जमीन का स्टेट्स
भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विभाग पहली बार बंदोबस्त को ऑनलाइन कर रहा है। बंदोबस्त के आधार पर ही बेस रिकॉर्ड माना जाता है। ऑनलाइन होने के बाद लैंड रिकॉर्ड के सॉफ्टवेयर से पूरा काम होगा और आमजन को सबसे बड़ी राहत होगी। जमीन को लेने से पहले मिसिल नक्शे से अधिकृत कॉपी लेकर यह देख सकेगा कि जमीन का पहले स्टेटस क्या था और कोई विवाद तो नहीं है। इससे भू-माफिया की मुश्किल बढ़ेंगी, क्योंकि अभी तक बंदोबस्त का रिकॉर्ड आसानी से नहीं मिलता था और इसी का यह लोग फायदा उठाते थे।
गूगल की तरह देख सकते हैं जमीन का नक्शा-खसरा
जिले की जमीनें खसरा नंबर सहित ऑनलाइन की गई हैं। एपी किसान ऐप के जरिए जिले की सभी तहसालों व गांवों में मौजूद जमीन के खसरा नंबर, नक्शा को ऑनलाइन हासिल किया जा सकता है। जिले मे ऐप के जरिए सभी प्रकार की भूमियों का नक्शा गूगल मैप की तरह देखने की सुविधा शुरु हो गई हैं। वहीं अब भू-अभिलेख विभाग बंदोबस्त रिकॉर्ड को भी ऑनलाइन करने जा रहा है। जिसके लिए डाटा फीडिंग़ का काम जल्द शुरु होने वाला है। सागर संभाग में दमोह, टीकमगढ़ में बंदोबस्त रिकॉर्ड ऑनलाइन हो गया है। छतरपुर में कोविड संक्रमण के चलते बंदोबस्त रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन का कार्य देर से शुरु हुआ है।
धोखाधड़ी पर लगेगी लगाम
जिले में 1939-40 और 1943-44 में हुआ था बंदोबस्त
आजादी से पहले अंग्रेजों के समय में जमीनों का बंदोबस्त किया जाता था और हर 40 साल में यह बंदोबस्त किया जाता था। कोई जमीन का बड़ा टुकड़ा और उसमें से नए टुकड़े बनते गए, बिक्री होती गई। इसके बाद नया नक्शा तैयार करने के लिए बंदोबस्त किया जाता था। नए सिरे से नक्शा व खसरा की नंबरिंग करना ही बंदोबस्त है। हमारे जिले में 1939-40 और 1943-44 में सभी पटवारी हल्के की जमीनों का बंदोबस्त किया गया था। वर्तमान स्थिति में बंदोबस्त के इसी बेस रिकॉर्ड के आधार पर ही काम किया जाता है।
इनका कहना है
मूल रिकॉर्ड स्कैन कर ऑनलाइन किए जाना है। पूर्व में जिस कंपनी को ठेका दिया गया था, उसने काम छोड़ दिया है, अब नई कंपनी काम कर रही है। डॉक्यूमेंट का स्कैन अब रोज किया जा रहा है। योजना पर काम चल रहा है।
श्यामाचरण चौबे, एसएलआर
Published on:
07 Oct 2021 05:58 pm
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