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जरा दैत्य के संहार के बाद जटाशंकर में रहे शिव

पहाड़ की गोद में बने कुंड के जल से कुष्ठ रोग ठीके होने से बढ़ी ख्यातिप्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व के स्थल को चरवाहे ने खोजा  

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जटाओं की तरह बहती जलधारा से पड़ा जटाशंकर नाम

जटाओं की तरह बहती जलधारा से पड़ा जटाशंकर नाम


छतरपुर। जिले में विंध्य पर्वत श्रृंखला पर बसा जटाशंकर धाम धार्मिक के साथ ही प्राकृतिक दृष्टि से अद्भुत है। चारों ओर पर्वतों से घिरा जटाशंकर धाम भगवान शंकर के स्वयंभू प्राकृतिक उद्भव के रूप में प्रकट होने से पहचान में आया है। जटाशंकर धाम की ख्याति प्राकृतिक बनावट और पहाडिय़ों, कंदराओं व जड़ीबूटियों के मध्य से होकर आ रहे पानी में विशेष गुणों के कारण बढ़ी है। शिव ***** के पास मौजूद दो प्राकृतिक कुंडों में हमेशा ठंडे और गर्म रहने वाले पानी के स्नान से चर्म रोग दूरे होने से जटाशंकर की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है। जटाशंकर धाम में अमावस्या, पूर्णमासी और सोमवार को बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि दूर दूर से श्रद्घालु आते हैं। महाशिवरिात्र पर्व के दौरान शिव पार्वती विवाह महोत्सव बेहद आकर्षण का केन्द्र होता है। पहाड़ों की गोद में बसे जटाशंकर धाम को हाल ही में पर्यटन विभाग से जोड़ा गया है।

संताप दूर करने ध्यान मग्न हुए महादेव
जटाशंकर धाम पर लगे शिलालेख के मुताबिक प्राचीन स्थल होने के प्रमाणिक दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन लोगों की मान्यता है कि देवासुर संग्राम में जरा दैत्य को मारने के बाद भगवान शिव यहां आकर ध्सान मग्न हो गए थे। शंकर जी को जो संताप था उसकी तृप्ति के लिए भगवान शंकर यहां आकर विराजे और यह जटाशंकर नाम से प्रसिद्घ होकर पावन तीर्थ बना। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए विध्य पर्वत की इन्ही कंदराओं में आकर तप किया था। तब भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को दर्शन दिए।

चरवाहे ने खोजा स्थान
जटाशंकर ट्रस्ट के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल का कहना है कि मान्यता है कि एक चरवाहे को कुष्ठरोग था। उसकी बकरियां जंगल, पहाड़ उतरकर गुम हो गई, चरवाहा उन्हें तलाशते हुए इस स्थान पर पहुंचा। यहां गुफा में झाडिय़ों के बीच एक पिंडी थी और पास में ही शीतल जल का झरना बह रहा था। चरवाहे ने पानी पीकर अपनी प्यास शांत की इसके बाद इसी जल में स्नान किया जिससे उसे चमत्कारिक लाभ हुआ और कुष्ठरोग दूर हो गया। चरवाहे ने गुफा की साफ सफाई की और शिव पिंडी को जल चढ़ाया, इसके बाद वह नियमित रूप से यहां आकर स्नान के बाद जल अर्पण करने लगा। जब यह खबर क्षेत्र में फैली तो भगवान शिव की महिमा और जल के गुणों को प्रसिद्घि मिली।