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पहाड़ व छोटे झाड़ के जंगल की आरक्षित 330 एकड़ जमीन बेच डाली

छतरपुर व चरखारी रियासत की जमीनों की रिकॉर्ड में हेराफेरी कर हुई बिक्रीजिला मुख्यालय पर 4 इलाकों में सरकारी जमीन की हुई बंदरवांट

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सरकारी जमीन जो अब निजी बना दी गई

सरकारी जमीन जो अब निजी बना दी गई

छतरपुर. जिला मुख्यालय पर पहाड़ और छोटे झाड़ के जंगल के लिए आरक्षित जमीन की जमकर बंदरबाट हुई है। राजस्व विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से जिला मुख्यालय पर चार इलाकों में चार बड़े सरकारी रकबा पर भूमाफियाओं ने हाथ साफ कर दिया है। भू-माफियाओं ने सरकारी रेकॉर्ड में हेराफेरी करके कुछ वर्गफीट नहीं बल्कि 330 एकड़ जमीन की खुलेआम बंदरबाट की। इस दौरान कई कलेक्टर, एसडीएम व तहसीलदार आए और गए, लेकिन राजस्व के कर्मचारियों और भूमाफियाओं का ये खेल धड़्ल्ले से लगातार चलता रहा। इस खेल को अंजाम देने के लिए आरक्षित जमीन को सरकारी रेकॉर्ड में पहले निजी जमीन बनाया गया और फिर उस पर प्लॉटिंग करके कॉलोनियां बसा दी गईं।

1979 से चल रहा खेल
मध्यप्रदेश शासन के नाम से दर्ज पहाड़ और छोटे झाड़ के जंगल आरक्षित जमीन मानी जाती है। छतरपुर शहर के पलौठा और छतरपुर सदर पटवारी हल्का में इसी आरक्षित जमीन को सरकारी रेकॉर्ड में किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के बिना निजी लोगों के नाम पर चढ़ाया गया और फिर कुछ वर्षो तक फर्जी एंट्री लगातार रेकॉर्ड में दोहराते हुए इसे पक्का कर लिया गया। उसके बाद इन कीमती जमीनों की रजिस्ट्री करके प्लॉट के रुप में टुकड़ों में बेच दिया गया। वर्ष 1979-80 से शुरु हुआ सरकारी जमीन की बंदरबाट का ये सिलसिला आज भी जारी है।

केस 01-
जिला मुख्यालय पर पन्ना रोड पर बीएसएनएल कॉलोनी से लगा हुआ 185 एकड़ का रकबा जंगल व पहाड़ के नाम से चरखारी रियासत के बंदोबस्त के समय वर्ष 1945-46 से दर्ज है। पलौठा मौज के खसरा नंबर 750 में 110 एकड़ और 751 में 75 एकड़ जमीन मध्यप्रदेश शासन के नाम पर वर्ष 1952-53 तक दर्ज है, उसके बाद बिना किसी सक्षम आदेश के पटवारी द्वारा सरकारी जमीन को जगत सिंह के नाम पर 75 एकड़ जमीन दर्ज कर दी गई। वहीं बिना सरकारी आदेश के 750 नंबर के 11 बटांक करके 52 एकड़ में शासन का नाम व बाकी जमीन निजी लोगों के नाम चढ़ा दिए गए। उन दोनों जमीन पर आज निजी लोगों का कब्जा है। वर्तमान में पूरे इलाके में प्लॉटिंग कर कॉलोनी बसा दी गई है।

केस 02
छतरपुर शहर का बंदोबस्त वर्ष 1939-40 में हुआ था। बंदोबस्त के मुताबिक छतरपुर पटवारी हल्का के खसरा नंबर 3230 में 48 एकड़ जमीन जंगल-झाड़ी के नाम से दर्ज थी। लेकिन वर्ष 1979-80 में बिना किसी आदेश के भुजबल लोधी, जगदीश लोधी, रामसिंह, मुलायम सिंह लोधई, भुगन्ता कुम्हार, पुन्ना कुम्हार, भूरे लोधी के नाम यही जमीन चढ़ा दी गई। इसके बाद 2009-10 में बिना किसी अधिकारी के आदेश के बिन्दा लोधी, भगुन्ता कुम्हार, बलुवा कुम्हार, भूरे लोधी, ढिलगा कुम्हार व जगपाल कुम्हार के नाम दर्ज कर दिए गए। जिसके बाद शासन के नाम केवल 4.584 हेक्टेयर जमीन बची। बची हुई सरकारी जमीन में प्रेमचंद्र जैन के नाम चढ़ा दी गई। जिसे प्रेमचंद्र ने बालकृष्ण अग्रवाल, विजय व सुनील अग्रवाल को बेच दी।


केस 03
छतरपुर पटवारी मौजा के खसरा नंबर 3269 व 3270 की सरकारी जमीन पर हुआ। रियासत के बंदोबस्त के समय वर्ष 1939-40 में खसरा नंबर 3269 में 41 एकड़ और 3270 में 51 एकड़ जमीन पहाड़ के नाम से दर्ज है। वर्तमान में इन दोनों जमीन के रकबा 92 एकड़ में से 56 एकड़ में पुलिस लाइन, पुलिस क्र्वाटर व पुलिस खेल मैदान है, बाकि 36 एकड़ जमीन वर्ष 1974-75 में नन्ना ढीमर, रामप्यारी निगम, अनिल कुमार जैन, राजीव कुमार जैन, अभय कुमार जैन, अरूण प्रताप श्रीवास्तव, कमलेश व अयोध्या पटेल के नाम पर निजी जमीन के रुप में सरकारी रेकॉर्ड में चढ़ा दी गई। वर्तमान में इन जमीनों पर प्लाटिंग करके कॉलोनी बसा दी गई।

केस 04
छतरपुर रियासत के बंदोबस्त के समय वर्ष 1939-40 में छतरपुर पटवारी हल्का के खसरा नंबर 3155 में 2 एकड़ 54 डिसीमल और 3110 में 2 एकड़ 78 डिसीमल एकड़ जमीन छोटे झाड़ का जंगल के नाम से दर्ज थी। यह जमीन 1955-56 में शंकरलाल कास्त के नाम बिना अधिकारी के आदेश के सरकारी रेकॉर्ड में दर्ज कर दी गई। वर्ष 1984 में यह जमीन प्रीतम सिंह सरदार के नाम चढ़ा दी गई। इसके बाद वर्ष 2003-04 में इस जमीन की रजिस्ट्री डॉ. रुद्र प्रताप खरे व मूल्लाबाई बरसैया के नाम कर दी गई। वर्तमान में इन जमीनों पर नर्सिंग होम, निवास बने हुए हैं।


फैक्ट फाइल
पटवारी हल्का खसरा नंबर रकबा
पलौठा मौजा 750 110 एकड़
पलौठा मौजा 751 75 एकड़
छतरपुर मौजा 3230 48 एकड़
छतरपुर मौजा 3269 41 एकड़
छतरपुर मौजा 3270 51 एकड़
छतरपुर मौजा 3155 2.54 एकड़
छतरपुर मौजा 3110 2.78 एकड़