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महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ने 70 फीसदी अपात्रों को बना दिया शोध निदेशक

जिनके पांच रिसर्च पेपर नहीं हुए प्रकाशित, उन्हे पीएचडी कराने का दिया अधिकार

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 39 परीवीक्षाधीन पीएचडी धारकों को बना दिया शोध निदेशक

39 परीवीक्षाधीन पीएचडी धारकों को बना दिया शोध निदेशक


छतरपुर. महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय छतरपुर ने 56 शोध निदेशक बनाए हैं, लेकिन 70 फीसदी फीसदी यानि 39 अपात्र प्राध्यापकों को पीएचडी का शोध निदेशक बना दिया है। ऐसे प्राध्यापकों को पीएचडी का शोध निदेशक बनाया है, जो योग्यता के मापदंड को पूरा ही नहीं करते हैं। शोध निदेशकों के लिए आवश्यक योग्यता से पीजी कक्षाओं के साथ पांच वर्ष का शोध का अनुभव एवं पांच रिसर्च पेपरों का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय रिर्फड जनरल में प्रकाशित होना अनिवार्य होता है परन्तु 39 ऐसे प्राध्यापक व सहायक प्राध्यापक हैं जिनकी स्वयं नियुक्ति 2019-20 में हुई और परीवीक्षा अवधि भी समाप्त नहीं हुई है। लेकिन इन्हें शोध निदेशक बना दिया है, ऐसी स्थिति में उनके अंडर पीएचडी करने वाले छात्रों की पीएचडी डिग्री की वैधता पर ही सवाल उठेंगे।

यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार नहीं योग्यता, न ससंाधन
कुलसचिव जेपी मिश्रा द्वारा जारी निदेशकों की सूची में ऐसे सहायक प्राध्यापक भी शामिल किए गए हैं जो स्वयं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नई दिल्ली एवं विश्वविद्यालय के शोध अध्यादेश 11 की कंडिका 17 के अनुसार योग्यता नहीं रखते हैं। वहीं महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय ने ऐसे ही कुछ शोध केन्द्र बनाए हैं जहां न तो पुस्तकालय हैं न उपकरण हैं न प्रयोगशाला है। शासकीय महाविद्यालय पन्ना, शासकीय महाविद्यालय टीकमगढ़, निवाड़़ी में जरूरी सुविधाएं न होते हुए भी शोध केन्द्र बनाए गए हैं। यूजीसी की गाइड लाइन के मुताबिक पीएचडी के बाद प्राध्यापक के 3 और सहायक अध्यापक के पांच रिसर्च पेपर प्रकाशित होना जरूरी है। जो खुद की पीएचड़ी करने के दौरान के नहीं होंगे।

महाराजा कॉलेज में नहीं था रिसर्च सेंटर
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में महाराजा ऑटोनोमस कॉलेज का 27 नवंबर 2021 को विलय हुआ है। इसके पूर्व ेमें केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर ने महाराजा कॉलेज को रिसर्च सेंटर बनाने की अनुमति नहीं दी थी। न ही महाराजा कॉलेज में रिसर्च गाइड रहे हैं। ऐसे में विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए शोध निदेशकों को खुद के पांच रिसर्च पेपर प्रकाशित ही नहीं हुए हैं। लेकिन फिर भी इन्हे उपकृत किया गया है।

अंको के पैमाने में भी दी छूट
पीएचडी के लिए छात्रों के लिखित परीक्षा में यूजीसी अनुसार 55 प्रतिशत अंक होना चाहिए लेकिन यहां कुछ विषयों में 45 प्रतिशत अंक में पास कर दिया गया। इस संबंध में परीक्षा नियंत्रक डॉ. पुष्पेन्द्र पटैरिया का कहना है कि यदि ऐसे शोध निदेशक बनाए गए हैं तो यह जांच का विषय है इसकी जांच कराई जाएगी। छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा।