
छिंदवाड़ा.मनरेगा की मजदूरी पर इस समय महंगाई भारी पड़ रही है। गांव का मजदूर मनरेगा की मजदूरी 243 रुपए छोड़ शहरों में 400 रुपए की प्राइवेट घरों के निर्माण की मजदूरी करना ज्यादा पसंद करता है। इसके चलते हर दिन 2 से 3 हजार मजदूर हर दिन आसपास के गांवों से छिंदवाड़ा में मजदूरी करने पहुंचते हैं। इससे जिला मुख्यालय से लगी पंचायतों में भी कई बार मनरेगा के मजदूर मुश्किल हो रहे हैं।
छिंदवाड़ा और पांढुर्ना जिले की कुल जनसंख्या करीब 23.76 लाख है। इनमें से 35 फीसदी आदिवासी वर्ग है। जिनके पलायन रोकने सरकार ने वर्ष 2005 में मनरेगा योजना लागू की थी। इसका मकसद मजदूरों को 100 दिन का रोजगार स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराना था। तब से अब तक मनरेगा में कई तरह के बदलाव देखने को मिले हैं। वर्तमान में मजदूरी दर 243 रुपए रखी गई है। मजदूर वर्ग इसे महंगाई के अनुरूप नहीं मान रहा है। इसके चलते हर मजदूर की ख्वाहिश कम से कम 500 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी है। गांव में ये मजदूरी नहीं मिल रही है तो ये वर्ग छिंदवाड़ा शहर के अलावा नागपुर, भोपाल, नरसिंहपुर, इंदौर, दिल्ली, मुंबई समेत अन्य राज्यों में पहुंच रहा है।
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महाराष्ट्र-केरल से लेकर दिल्ली तक मजदूरी
जिले का मजदूर परम्परागत तौर पर फसल काटने से लेकर निर्माण कार्यों की मजदूरी करने जाता है। जुन्नारदेव और अमरवाड़ा विधानसभा में हर्रई, बटकाखापा और सुरलाखापा क्षेत्र के गांवों के मजदूर मुख्य रूप से नरसिंहपुर, गाडरवाड़ा, करेली, आमगांव के साथ नागपुर, पुणे और केरल तक काम करने जाते हैं तो वहीं तामिया विकासखण्ड के आदिवासी मजदूर अपनी रोजी-रोटी के लिए पिपरिया, होशंगाबाद, इटारसी और भोपाल पर निर्भर हंै, जहां बड़े पैमाने पर सोयाबीन, तुअर, मक्का समेत अन्य फसलें होती हैं। सौंसर क्षेत्र में बोरगांव औद्योगिक जोन है तो वहीं पांढुर्ना संतरे की फसल की बड़ी मण्डी है। इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों से आदिवासी मजदूरों का पलायन बड़ी संख्या में होता है। मजदूर परिवार नागपुर और अमरावती जिले में जाते हैं। मुम्बई, दिल्ली समेत अन्य महानगरों में भी यहां के मजदूरों को देखा जा सकता है।
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मनरेगा में कम मजदूरी इसलिए आते हैं शहर
गांगीवाड़ा के प्रेमलाल, प्रकाश, रामती बाई समेत अन्य मजदूर बताते हैं कि ग्रामीण स्तर पर मनरेगा की मजदूरी कम मिल रही है। जबकि शहरी स्तर पर ज्यादा मजदूरी मिलती है। इसके लिए उनकी प्राथमिकता प्राइवेट घरों में मजदूरी ढूंढने की रहती है। यहीं हाल सारना, मेघासिवनी, केवलारी, सर्रा समेत आसपास के मजदूरों का है। बताते हंै कि इस वजह से मजदूरों की प्राथमिकता छिंदवाड़ा के अलावा दूसरे राज्यों की मजदूरी रही है।
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केन्द्र सरकार के समक्ष उठानी होगी आवाज
रिटायर्ड सहायक वन संरक्षक आरएस कुशवाह का कहना है कि मनरेगा में मजदूरी कम होने का मुद्दा स्थानीय सांसद व जनप्रतिनिधियों को केन्द्र सरकार के समक्ष उठाना चाहिए। उनकी मजदूरी महंगाई के अनुरूप हो तो उन्हें इसका लाभ मिलेगा। उनका पलायन रुकेगा। एक विडम्बना यह है कि मप्र श्रमायुक्त की ओर से घोषित मजदूरी 394 रुपए है तो मनरेगा की मजदूरी 243 रुपए प्रतिदिन है। इसके चलते दूसरे लाइन विभाग भी श्रमायुक्त की मजदूरी न देकर मनरेगा की मजदूरी दे देते हैं और सीधे तौर पर भ्रष्टाचार करते हैं। इसे रोकने के प्रयास की जरूरत है।
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मटेरियल व मजदूरी का 20.75 करोड़ का बकाया
वित्तीय वर्ष 2024-25 का एक माह शेष है। मनरेगा में भी वित्तीय संकट भुगतान में दिखाई देने लगा है। इस समय छिंदवाड़ा जिले का मटेरियल और मजदूरी का 20.75 करोड़ रुपए बकाया है। इसके लिए ठेकेदार और मजदूरों को 31 मार्च तक इंतजार करना होगा। जिला पंचायत की जानकारी के अनुसार छिंदवाड़ा जिले में मनरेगा का बजट करीब 300 करोड़ रुपए है। इनमें से अब तक मजदूरी में 169.63 करोड़ रुपए तथा मटेरियल में 82.35 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। वर्तमान में मटेरियल की राशि 19.72 करोड़ रुपए तथा मजदूरी के 50 लाख रुपए तथा सेमी स्किल्ड मजदूरी के 52.51 लाख रुपए बकाया है। इनमें सेमी स्किल्ड मजदूरी में कर्मचारी सम्मिलित है, जिनकी तनख्वाह बकाया बताई गई है।
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Published on:
25 Feb 2025 11:20 am
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