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kargil vijay diwas: राजस्थान बार्डर पर जवानों के ऐसे बीते थे दो माह, सूबेदार ने सांझा किया अनुभव

भारत के विभिन्न बॉर्डर पर मोर्चा संभाले हुए थे।

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kargil vijay diwas: राजस्थान बार्डर पर जवानों के ऐसे बीते थे दो माह, सूबेदार ने सांझा किया अनुभव

kargil vijay diwas: राजस्थान बार्डर पर जवानों के ऐसे बीते थे दो माह, सूबेदार ने सांझा किया अनुभव

छिंदवाड़ा. कारगिल युद्ध में भारतीय जवानों की वीरता के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। इस भीषण लड़ाई के दौरान कई भारतीय रणबांकुरों ने देश के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। 8 मई 1999 से शुरू हुई यह लड़ाई 26 जुलाई 1999 तक चली थी और भारतीय सेना की विजय के बाद इसे कारगिल ‘विजय दिवस’ के रूप में हर साल मनाया जाता है। एक तरफ इस युद्ध में शामिल होने का मौका कई भारतीय सैनिकों को मिला तो दूसरी तरफ कुछ सैनिक ऐसे भी थे जो भारत के विभिन्न बॉर्डर पर मोर्चा संभाले हुए थे। उन्हीं में से एक थे छिंदवाड़ा के फ्रेंड्स कॉलोनी निवासी सेवानिवृत्त सूबेदार मोहन घंगारे। कारगिल युद्ध के दौरान वे राजस्थान के बॉर्डर पर तैनात थे। कुछ ही दूरी पर पाकिस्तान का बॉर्डर था। मोहन घंगारे ने बताया कि उस समय राजस्थान बॉर्डर पर तैनात रहना किसी युद्ध से कम नहीं था। दो माह तक चली लड़ाई में उनकी बटालियन एक रात भी चैन से नहीं सोई। इसकी वजह यह थी कि पाकिस्तान कभी भी आक्रमण कर सकता था। ऐसे में हर वक्त सभी जवान चौकन्ने थे। हर पल हमलोग युद्ध का इंतजार करते रहे। हमलोग टेंट में सोते थे और हर दो घंटे में जगह बदलते थे। हमें पहले युद्ध करने की अनुमति नहीं थी। हां यह जरूर था कि पाकिस्तान कभी भी बमबारी कर सकता था। हमलोग हमेशा लड़ाई के लिए तैयार थे। मोहन घंगारे कहते हैं कि जिस दिन हमारी सेना ने कारगिल पर विजय पाई उस दिन छाती चौड़ी हो गई। आज भी वह दिन याद करके बहुत खुशी मिलती है।

परिवार का एक सदस्य आर्मी में होना चाहिए
वर्ष 2019 में सूबेदार मोहन घंगारे आमी से सेवानिवृत्त हो गए। तब से वे युवाओं को निशुल्क फिजिकल ट्रेनिंग दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने छिंदवाड़ा को फिजिकल में नंबर वन बनाने का संकल्प लिया है। एक न एक दिन यह संकल्प पूरा होगा। मोहन घंगारे ने बताया कि हर परिवार के एक सदस्य को आर्मी में जरूर होना चाहिए। इसकी वजह यह है कि आर्मी में रहकर देश सेवा की एक अलग ही खुशी मिलती है। मोहन घंगारे वर्ष १९९३ में महज १९ वर्ष की आयु में ही आर्मी में भर्ती हुए थे। उन्होंने बताया कि उस समय घर पर कोई भी मेरे आर्मी में जाने के निर्णय से तैयार नहीं था। लेकिन एक समय ऐसा आया जब न केवल परिवार के सदस्य बल्कि आसपास के लोग भी मेरे आर्मी में होने पर गौरवान्वित महसूस करने लगे। उन्होंने बताया कि आर्मी की ट्रेनिंग बहुत कठिन होती थी, लेकिन मेरे अंदर देश सेवा का जुनून था।