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mp election 2023: भाऊ की एक ही मांग…। पांढुर्ना जिला बने तो समस्याओं का हो निदान

mp election 2023- पांढुर्ना, सौंसर और छिंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र: संतरांचल के लोग जिला मुख्यालय की सौ किमी दूरी से तंग

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मनोहर सोनी

छिंदवाड़ा। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में सभी सातों सीटों को कांग्रेस की झोली में डालने वाली जनता का रुख पांच साल में कुछ बदला है क्या? यह देखने समझने के लिए विधानसभा क्षेत्रों को टटोलने निकला। इसकी शुरुआत पांढुर्ना से की। संतरांचल की प्रमुख विधानसभा सीट पांढुर्ना में किसी को मराठी में ये बस कह दो.. कसा काय भाऊ (कैसे हो भाई)? उसी अंदाज में जवाब मिलेगा, बस भाऊ, पांढुर्ना ला जिल्हा बनवुन द्या (पांढुर्ना जिला बने)। दरअसल महाराष्ट्र से सटा यह इलाका जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा की सौ किमी की दूरी से इतना तंग है कि हर व्यक्ति को सरकारी कामकाज का तनाव आते ही यही भाव फूट पड़ता है।

पांढुर्ना विधानसभा मुख्यालय तक पहुंचने के लिए मुझे बस से तीन घंटे की यात्रा करनी पड़ी। इलाके में 80 फीसदी मराठी भाषी हैं। जैसे ही कोई मराठी में बात करता है तो आपला मानुष आहे (अपने ही क्षेत्र का है) समझ लेते हैं। मेरे हिन्दी भाषी होने से यह सहज नहीं था, इसलिए वहीं के जितेंद्र अतकरे को सहयोगी बना लिया, जिससे बातचीत आसान हो गई। बस स्टैण्ड के होटल मालिक गोरेलाल साहू और सुभाष तनवानी बोले- आप ही देख लो, आने में तीन घंटे लगते हैं। फिर पांढुर्ना के अंतिम गांव की दूरी तो 150 किमी तक जाती है।

किसान से लेकर उद्योगपति तक की बस जिल्हा की मांग है। किसान अशोक डिगरसे और रामचरण ने कहा कि डैम की कमी से फसलें सूखती हैं। मुख्य सड़क पर आगे बढ़े तो एक दुकान में बैठे किसान श्याम भांगे और दिलीप सावरकर बोले, हमें माचागोरा जैसा बांध चाहिए। जलाशय की राजनीति पर तीन चुनाव हो गए। नेता केवल आश्वासन देते हैं। पांढुर्ना के संतरा व्यवसायी पिंटू जैन ने कहा कि संतरा का रकबा पांढुर्ना से हजार किमी तक बढ़ गया है। किसानों को भाव प्रतिस्पर्धात्मक मिल रहे हैं। सरकार से अपेक्षा के प्रश्न पर कहा कि पहले से ही सुविधाएं हैं। यह व्यापार में मायने नहीं रखती।

मेरा दूसरा लक्ष्य सौंसर विधानसभा क्षेत्र का था। 35 किमी दूर सौंसर की बस से यात्रा शुरू की। क्षेत्र में अधिकांश मिनी बस होने से कंडक्टर गांव-गांव में मनमाना किराए वसूलते हैं। जैसे पांढुर्ना से सौंसर 80 रुपए। पूछो तो कहेंगे- अभी उतार देंगे। इसलिए क्षेत्रवासी सौंसर-पांढुर्ना रेल लाइन की जरूरत पर भी बात करते हैं। खैर, सौंसर में भी मराठी भाषा की चुनौती थी तो दूसरे सहयोगी राष्ट्रपाल ढोक मदद के लिए आगे आए। जनपद कार्यालय में पीपल के नीचे बैठे सिद्धार्थ मड़के और संतोष बारस्कर सरकारी कामकाज से असंतुष्ट नजर आए। सावंगा के युवा धर्मेद्र कुमरे बोले-मुख्यालय से तीन किमी दूर गांव में पेयजल समस्या है। भुजरखेड़ी के तेजराम सिरसे ने कहा कि बोरगांव में उद्योग है, लेकिन ठेकेदारी प्रथा होने से मजदूरी ठीक नहीं मिल रही है। किसान रामराव बोले, कपास के दाम 10 हजार रुपए क्विंटल मिलने थे, किसानों को 7500 रुपए ही मिल पाए। सौंसर के रिटायर्ड कर्मचारी सोन बा झाड़े से चर्चा छेड़ी तो उन्होंने कहा कि सौंसर से पांढुर्ना के बीच रेलवे लाइन को जोडऩे की जरूरत है। संतरे पर बोले कि बांग्लादेश में टैक्स वृद्धि से इसका निर्यात कम हो गया है।

छिंदवाड़ा में कर्मचारियों की मांगें हावी

राजनीतिक दृष्टि से कमलनाथ की बदौलत पूरे देश में चर्चित छिंदवाड़ा भी समस्या रहित नहीं है। छिंदवाड़ा में संभाग, कृषि विवि जैसी स्थानीय मांगें हैं तो वहीं लोग व्यापक स्तर पर महंगाई को कचोटने वाला मानते हैं। खजरी रोड पर एक पराठा कार्नर पर बैठे रिटायर्ड कर्मचारी नेता प्रभु नारायण नेमा से पूछा तो बोले, संविदा कर्मचारियों को नियमित करने और पेंशन की गारंटी की जरूरत है। निगम कर्मचारी रुपेश मोखलगाय ने दैवेभो, विनियमित कर्मचारियों को नियमित करने की बात कही। व्यवसायी मूलचंद साहू ने कृषि मंडी में सुधार की बात कही। बुजुर्ग अनिल मिश्रा ने महंगाई और पेट्रोलियम मूल्यवृद्धि को बड़े मुद्दे बताया।

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