खरीफ सीजन की फसल
उल्लेखनीय है कि खरीफ सीजन में पांच लाख हेक्टेयर का रकबा है। इनमें मक्का 3.60 लाख, कपास 56 हजार, धान 32 हजार, अरहर 18 हजार, सोयाबीन 13 हजार, कोदो कुटकी 10 हजार और रामतिल का रकबा तीन हजार हैक्टेयर है। इसके अलावा दूसरी फसल भी होती है।मानव स्वास्थ्य पर असर
किसानों को मक्का समेत अन्य फसलों में एक एकड़ में दो बोरी यूरिया की जरूरत है। वे ज्यादा उत्पादन के लोभ में बेहिसाब 5-6 बोरी तक इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पौधे की ग्रोथ समय से ज्यादा होने पर फसल लेट रही है। फसल की लागत भी दोगुनी हो रही है। ये उपज जब मानव आहार बनती है तो उनके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।अपचन, गैस समेत कैंसर से बदला खान-पान का ट्रेंड
खेती में रासायनिक खाद के अत्यधिक इस्तेमाल से जैसे-जैसे अपचन, गैस, कैंसर की बीमारियां सामने आ रही है, वैसे-वैसे खान-पान का पुराना ट्रेंड वापस लौट रहा है। सरकार भी प्राकृतिक खेती को बढ़ाने का लक्ष्य तय कर रही है। लोग चाहते है कि उन्हें स्वस्थ अनाज का भोजन मिले। वे जैविक सब्जी-अनाज ढूंढ रहे हैं।मृदा कार्बनिक के साथ जिंक की सर्वाधिक कमी
रिपोर्ट के अनुसार छिंदवाड़ा और पांढुर्ना जिलों के किसानों से उनके खेतों की मिट्टी के नमूने लिए गए। इनमें सबसे ज्यादा मृदा कार्बनिक व जिंक तत्व की कमी पाई गई है। शेष तत्व आयरन, मैगनीज, कॉपर, सल्फर और बोरान की स्थिति संतोषजनक है। कृषि अधिकारियों के मुताबिक नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की कमी भी बनी हुई है, जिसे किसान अनदेखा कर रहे हैं।एनपीके और जिंक के संतुलित इस्तेमाल से सुधार
खेती में यूरिया के इस्तेमाल से केवल नाइट्रोजन और डीएपी से नाइट्रोजन, फास्फोरस की पूर्ति होती है। पोटाश, जिंक की कमी बनी रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि किसान एनपीके और जिंक का संतुलित इस्तेमाल कर लें तो मिट्टी की सेहत सुधर सकती है।किसानों को दी जा रही सलाह
मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की रिपोर्ट में जहां-जहां की जमीन में पोषक तत्वों की कमी पाई गई है, उनके अनुरूप खाद का इस्तेमाल संतुलित मात्रा में करने की सलाह किसानों को दी जा रही है। इससे हमारे जिले की मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे।-सरिता सिंह, सहायक संचालक कृषि