लगभग 20 हजार से अधिक सर्पों का रेस्क्यू कर चुके सर्पमित्र हेमंत गोदरे बताते हैं कि इन दिनों मौसम में परिवर्तन हो रहा होता है। मौसम में बदलाव सांपों को चिड़चिड़ा और आक्रामक बना देता है। सर्पदंश के केस बढ़ जाते हैं, जबकि सामान्य तौर पर सर्प अपनी राह चलने वाले जीव होते हैं। वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ अंकित मेश्राम का कहना है कि सर्पों के दिखने या दंश पर उसे मारने या पकडऩे की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह खतरनाक होता है। उन्हें मारना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अपराध भी है। डॉ मेश्राम ने बताया कि सर्पों के भूमिगत प्राकृतिक आवास में बदलाव के कारण वे भूमि से ऊपर आते हैं। ताकि वे डूबने से बचें एवं पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सके। बारिश में छोटे जीवों को भी खाने के लिए वे बाहर निकलते हैं।
सर्पदंश के बाद होती है रक्त जांच
दो बार सर्पदंश झेल चुके सर्पमित्र हेमंत गोदरे ने बताया कि अस्पताल में यदि जहरीले सर्प की जानकारी नहीं है तो भी उसे जहरीला मानकर ही इलाज शुरू किया जाता है। एंटीवेनम की डोज केवल डॉक्टर ही दे सकते हैं। सर्पदंश के शिकार व्यक्ति को ज्यादातर मामलों में सोने से बचना चाहिए। नींद में जाने पर हृदय की धडकऩ और बढ़ जाती हैं।
चूसकर नहीं निकाला जाता विष
चिकित्सकों ने बताया कि सर्पदंश के शिकार व्यक्ति को अधिक हिलने डुलने नहीं देना चाहिए। साथ ही प्रभावित स्थान को चूसकर विष निकालने का प्रयास बिल्कुल नहीं करना चाहिए। उल्टा इससे पीडि़त व्यक्ति को और समस्या हो जाती है। तंत्र मंत्र या ओझा के चक्कर में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। निशान हल्के भी हों, दर्द सामान्य हो, तो भी एक घंटे में असर हो सकता है। ऐसे में जांच जरूरी है। घरेलू इलाज, चीरा, काटे अंग को बंाधने से भी बचना चाहिए।
सर्पदंश का असर
डॉ मेश्राम ने बताया कि कोबरा एवं कॉमन करैत के दंश का नसों पर असर पड़ता है। इसमें पलकों का गिरना, सांस लेने में कठिनाई, कमजोरी, धुंधला दिखना, बोलने में परेशानी और लकवा जैसे लक्षण प्रतीत होने लगते हैं। रसेल वाइपर के दंश से सूजन व दर्द, नाक, मसूड़े एवं पेशाब में खून, उल्टी, चक्कर, दो गहरे दांतों के निशान, काटने की जगह पर तेज जलन, नीला या काला पड़ जाना। जबकि, बिना जहरीले सर्प के दंश पर सतही तौर पर कई दांतों के निशान, हल्का दर्द या जलन, मामूली सूजन एवं कोई न्यूरोलॉजिकल समस्या नहीं आती।