
जज्बे को सलाम : धरती का सीना चीर निकाल दिया पानी, कुछ ऐसी है बुन्देलखण्ड के दशरथ मांझी कृष्णा कोल की कहानी
चित्रकूट. किसी ने क्या खूब कहा है कि "एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों कौन कहता है आसमां में सुराख हो नहीं सकता" कुछ ऐसा ही चरितार्थ किया है बुन्देलखण्ड के दशरथ मांझी कहे जाने वाले 90 वर्षीय बुजुर्ग कृष्णा कोल ने दशरथ मांझी जिन्हें माउंटेन मैन के नाम से जाना जाता है कि कैसे उन्होंने पहाड़ का सीना चीर अपने गांव के लिए रास्ता तैयार किया था।
वैसे ही कृष्णा कोल ने भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते अपने गांव की प्यास बुझाने हेतु अकेले दम पर कुंआ खोद डाला और परिणाम यह कि आज गांव पानी की किल्लत से उतना नहीं जूझता जितना अन्य इलाकों में ये संकट भीषण रूप अख्तियार कर लेता है। कृष्णा कोल के जज्बे की कहानी सुन कोई भी कह उठेगा "हिम्मते मर्दा मदद-ए खुदा"
अकेले दम पर खोद डाला कुंआ
जनपद के मानिकपुर ब्लाक (जिसे पाठा क्षेत्र भी कहा जाता है) अंतर्गत बड़ाहर गांव के 90 वर्षीय बुजुर्ग कृष्णा कोल ने लगभग 5 वर्षों तक अथक परिश्रम कर अपने गांव में धरती का सीना चीर पानी निकाल दिया। कृष्णा कोल ने 50-60 फिट गहरा कुंआ खोद कर गांव को पेयजल संकट से मुक्ति दिलाई। इतने वर्षों तक अथाह मेहनत करने के दौरान उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। पथरीली जमीन होने के कारण दोगुनी मेहनत करनी पड़ती थी। कुंआ खोदाई में लेकिन उन्होंने अपने जज्बे को हारने नहीं दिया और एक समय बाद जब धरती की कोख से जलधारा फूटी तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
महात्मा गांधी से मिली प्रेरणा
कृष्णा कोल बताते हैं कि जब वे लगभग 14-15 वर्ष के थे तब महात्मा गांधी से वे मिले थे। गांधी जी के स्वावलम्बन सिद्धांत यानी खुद मेहनत करके अपना जीवन यापन करने की बात से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने अपने गांव में खुद इस कार्य की शुरुआत की। अंग्रेजों के जमाने को अपनी आंखों से देख चुके इस 90 वर्षीय आदिवासी बुजुर्ग ने बताया कि अंग्रेज काफी जुल्म करते थे आदिवासियों पर। आज उनके गांव में पेयजल संकट से निपटने के लिए बोर आदि हो गया है परंतु जिस समय पूरा गांव बूंद बूंद पानी को तरस रहा था उस समय कृष्णा कोल ने ही भगीरथ प्रयास किया कुंआ खोदने का।
मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है गांव
कोल आदिवासियों का कृष्णा कोल का गांव बड़ाहर आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। सम्पर्क मार्ग न होने की वजह से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। थोड़ी जागरूकता व ग्राम प्रधान के प्रयास से गांव में प्रधानमंत्री आवास बिजली आदि की व्यवस्था की गई है लेकिन कई बुनियादी सुविधाएं अभी भी यहां दस्तक देने के इंतजार में हैं। सिस्टम के मखमली पांव आज तक इस गांव के दरवाजे तक नहीं पहुंचे।
Published on:
11 Jul 2019 07:33 pm
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