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sawliya seth सांवरा के भोग में के लिए हर रोज काम आता है 400 लीटर दूध

चित्तौडग़ढ़. सांवरिया सेठ के राजभेाग के लिए गायों का करीब ४०० लीटर दूध प्रतिदिन मंदिर को मिल रहा है। इसगोशाला के संचालन के लिए सालाना दो करोड़ का बजट खर्च होता है।

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सांवरा के भोग में के लिए हर रोज काम आता है 400 लीटर दूध

चित्तौडग़ढ़ जिले के मंडफिया में सांवलिया सेठ के श्रद्धालों की संख्या यहां पर जैसे-जैसे बढ़ रही है वैस्े-वैसे यहां पर विकास एवं अन्य सुविधाएं भी बढ़ रही है। गुजरात के अक्षरधाम की तर्ज पर बन रहे इस मंदिर का विकास एवं स्वरुप दिनों दिन निखर रहा है। वहीं मंदिर मंडल की ओरसे बनाई गई सांवरिया गोशाला भी मेवाड अंचल की सबसे बड़ी गोशाला है। यहां से सांवरिया सेठ के राजभेाग के लिए गायों का करीब ४०० लीटर दूध प्रतिदिन मंदिर को मिल रहा है। इसगोशाला के संचालन के लिए सालाना दो करोड़ का बजट खर्च होता है।
श्री सांवलियाजी मंदिर मंडल की ओर से संचालित होने वाली सांवलिया गोशाला करीब २१४ बीघा क्षेत्र में फैली हुई है। इस गोशाला में करीब २७०० गोवंश है जिनका प्रतिदिन मंदिर मंडल की ओर से रखरखाव होता है। यहां पर करीब १५० गायें ऐसी है जो दूधारू है और इनसे प्रतिदिन ४०० लीटर दूध मिल रहा है। इस दूध का उपयोग भगवान सांवलिया सेठ के राजभोग के प्रसाद के लिए मंदिर में किया जाता है। प्रसाद में काम आने के बाद शेष दूध को डेयरी को दे दिया जाता है। गोशाला के प्रबंधक कालू लाल तेली ने बताया कि करीब दस साल पहले यहां पर ५० लीटर दूध होता था जो अब बढ़कर ४०० लीटर प्रतिदिन हो गया है।

बन रही नंदी शाला
गोशाला में वर्तमान में सभी करीब २७०० गोवंश है। इसमें गाय एवं नंदी वर्तमान में साथ-साथ रह रहे है। बेलों एवं बछड़ों के लिए अब अलग से नंदी शाला का भी निर्माण किया जा रहा है।

गिर नस्ल भी हो रही है तैयार
वर्तमान में यहां पर देशी गोवंश हे लेकिन गोशाला में गिर नस्ल को भी तैयार किया जा रहा है। यहां पर गिर नस्ल के बेल रखें गए हे। जिनसे गिर नस्ल तैयार की जा रही है।

यह है चारा पानी की व्यवस्था
यहां पर जो गोवंश है उसका चारा, खल, ज्वार, रजका आदि की उपज भी यहां पर गोशाला में हो रही है। करीब २१४ बीघा में बनी इस गोशाला में दूधारू गायों को कपास आदि पोष्टिक आहर भी खिलाया जा रहा है, वहीं गोवंश के पानी के लिए पूरे क्षेत्र में करीब छह नलकूप है जिसे अलग-अलग बाड़ों बनी कुण्डियों तक गोवंश के लिए पानी पहुंचाया जाता है।

लगे है दो हजार पेड़
इस गोशाला में करीब दो हजार पेड़ लगाए गए है। इनमें अंधिकाश पेड़ फलदार है। जिसमें नीबूं, अनार, अमरूद, नीम, अनार, बड़ एवं पिपल के है।

इनका कहना है...
गोवंश को पोष्टिक आहर देने के लिए पूरे इंतजाम किए गए है।, अलग से नंदी शाला तैयार की जा रही है। गोशाला से मिलने वाले दूध का सांवलियाजी के प्रसाद के लिए उपयोग में लिया जा रहा है।
रतन कुमार स्वामी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सांवलियाजी मंदिर मंड़ल चित्तौडग़ढ़