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संसार में पांच प्रकार के चोर बताए गए हैं

चित्तौडग़ढ़. डॉ. समकित मुनि ने गुरुवार को खातर महल में प्रवचन में कहा कि जितना हो सकता है उतना अवश्य करें, जितना कर सकते हैं उतना अवश्य करें । उन्होंने संसार में पांच प्रकार के चोर बताएं। मुनि ने कहा कि सबसे बड़ा चोर वह है जो अपनी ही संपत्ति को चुराता है। उन्होंने पांच प्रकार के चोरों के बारे में कहा कि तप चोर, वचन चोर, आचार चोर, भाव चो र और रूप चोर ।

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संसार में पांच प्रकार के चोर बताए गए हैं

संसार में पांच प्रकार के चोर बताए गए हैं

चित्तौडग़ढ़. डॉ. समकित मुनि ने गुरुवार को खातर महल में प्रवचन में कहा कि जितना हो सकता है उतना अवश्य करें, जितना कर सकते हैं उतना अवश्य करें ।उन्होंने संसार में पांच प्रकार के चोर बताएं। मुनि ने कहा कि सबसे बड़ा चोर वह है जो अपनी ही संपत्ति को चुराता है। उन्होंने पांच प्रकार के चोरों के बारे में कहा कि तप चोर, वचन चोर, आचार चोर, भाव चो र और रूप चोर । उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति तपस्या कर सकता है फिर भी नहीं करता है और जो अपनी शक्ति को छुपाता है उसको गोपनीय रखता है वह तपस्या का चोर यानी कि तप चोर होता है। उन्होंने कपट पूर्ण व्यवहार करने और झूठ बोलने वाले को वचन चोर की संज्ञा दी साथ ही उन्होंने कहा कि भाव चोर वह है जो अच्छा काम करने की भावना नहीं रखता है न ही उसके अंदर अच्छे विचार आते हैं।
जितना सामथ्र्य उतना भी कर लिया तो समझो सब कुछ कर लिया। हम गुस्सा तो ताकत से ज्यादा करते हैं और अच्छी चीजें प्राप्त करने में ताकत कम लगाते हैं। हम दान दूसरों को देखकर करते हैं यह एक गलत तरीका है ।डॉक्टर समकित मुनि ने पर्यूषण पर्व की महत्वता पर बारीकी से ज्ञान वर्धन करते हुए अधिकाधिक धर्म आराधना करने का आह्वान किया । उन्होंने कहा कि पर्युषण में प्रवचन तक सीमित न रहकर धार्मिक क्रियाओं में अधिक अधिक सहभागिता निभानी है। मुनि ने विश्व की वर्तमान परिस्थितियों विशेषकर अफगानिस्तान में हुए हालातों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि समय बहुत परिवर्तनशील है। न पल का पता ना कल का पता । इसलिए समय रहते धर्म का अधिकाधिक लाभ उठा लेना चाहिए। प्रचार मंत्री सुधीर जैन ने बताया कि जैन दिवाकर महिला परिषद और चंदनबाला महिला मंडल के संयुक्त तत्वाधान में आगम ज्ञाता, समकित मुनि की प्रेरणा से शुक्रवार को खातर महल में जैन धर्म पर आधारित प्रश्न मंच प्रतियोगिता संपन्न हुई। डॉ समकित मुनि ने प्रश्नमंच कार्यक्रम के प्रश्न पूछे व प्रत्येक ग्रुप से प्रत्येक प्रश्न की पर्चियां एकत्रित कर सही उत्तर देने वाले ग्रुप को अंक दिए गए। कार्यक्रम में प्रेरणाकुशल भवान्त मुनि व सरलमना साध्वी विशुद्धि विराजित रहे। प्रतियोगिता को लेकर प्रतिभागियों में काफी उत्साह रहा और कुल 36 ग्रुपों ने प्रश्न मंच में हिस्सा लिया । तीन चरणों में हुए प्रश्न मंच में प्रत्येक ग्रुप का नाम 20 जैन वीरमनों और 16जैन सतियों के नाम से रखा गया। दोनों महिला मंडलों की अध्यक्ष प्रमिला बड़ाला एवं अंगूरबाला भड़कत्या ने बताया कि प्रश्न मंच में प्रथम विजेता सुबाहु स्वामी ग्रुप रहा जिसमें स्मिता तरावत, विमला तरावत और सीमा तरावत थे। द्वितीय विजेता सुव्रत स्वामी ग्रुप रहा जिसमें निर्मला नाहर, शशि सुराणा, मीना पटवारी थे। तृतीय विजेता युगमंधर स्वामी ग्रुप रहा जिसमें शैली तरावत, दिव्यांशी तरावत, अभ्युदय तरावत सम्मिलित रहे।
विजेताओं को मुख्य अतिथि श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ संरक्षक प्रो. सी. एम. रांका, मंत्री अजीत नाहर, जैन दिवाकर संगठन समिति अध्यक्ष वल्लभ बोहरा, जैन दिवाकर युवा परिषद मंत्री अर्पित बोहरा, महावीर युवा संगठन समिति अध्यक्ष साहिल सिप्पाणी, सुनीता शिशोदिया, अर्जुन लोढ़ा ने विजेताओं को पारितोषिक प्रदान किए। संचालन नीलम तरावत एवं वनिता लोढ़ा ने किया। निर्णायक गणों में रेखा पोखरना, प्रोफेसर आर एल मारु , सुरेश डांगी, अपुल चीपड़, कविता लोढ़ा थे।
महिला परिषद और महिला मंडल मंत्री कुसुम भडकत्याए सुनीता खटोड़ के साथ में मीना सुराणाए सीमा सिप्पाणी, पदमा पगारिया, भावना कोठारी, दिलखुश खेरोदिया, सुधा तातेड, स्वाति छाजेड़, नीता डांगी, हेमा बोहरा आदि ने सहयोग दिया।

महापुरूषों की निन्दा मत करों
चित्तौडग़ढ़. साधुमार्गी संघ की महासती विमला कंवर ने अरिहन्त भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि महापुरूषों की कभी निन्दा मत करों। महापुरूषों की निन्दा करने वाला निन्दक कभी सुखी नही रह सकता। महापुरूषों के सानिध्य में श्रद्धाभाव से ज्ञान प्राप्त कर मिथ्यात्व के अंधकार को दूर कर हम सम्यक मार्ग पर आगे बढ सकते है। आपने कहा कि जिनवाणी श्रवण कर जैन दर्शन को समझने से पहले स्वादवाद को समझना जरूरी है। स्वादवाद के सिद्धान्त को जिसने जान लिया वह जीवनपथ पर चलते हुए कभी भ्रमित नही होगा और सम्यक मार्ग पर अग्रसर होता रहेगा। हमे बोलते समय विवेक रखाना चाहिये। अविवेकपूर्ण बोलने से अनायास कर्मो का बन्ध कर लेते है। विवेक से बोलो-कम बोलो और मधुर बोलों। इससे पूर्व महासती सुमित्रा श्रीजी ने अहंकार के भेदों पर प्रकाश डालते हुए बल मद एवं ज्ञान मद की विस्तृत चर्चा की। जिन्हें बल का मद होता है वह पतनकी ओर जाते है। संसार में तीर्थंकर से बलवान कोई नही होता फिर भी वह कभी बल का मद नहीं करते। इतिहास साक्षी है, जिसने भी अपने बल का मद किया उसका बल चकनाचूर हुआ है। इसी प्रकार ज्ञान का मद भी व्यक्ति को पतन में ले जाने वाला होता है। आगम में ऐसे अनेक उदाहरण है कि चवदापूर्व का ज्ञान होने वालों में भी अपने ज्ञान को समुद्र की एक बून्द के समान माना है। किन्तु आज जिनको थोड़ा सा ज्ञान हो जाता है, धर्मसभा में भाषण देना आ गया वह अपने आपको महान् ज्ञानी समझ लेता है। यह ज्ञान का अहंकार अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है। अहंकार चाहे धन का हो, कुल का हो, रूप का हो, ज्ञान या बल का, वह व्यक्ति को पतन में धकेल देता है। जहां अहंकार है, वहां विनम्रता या विनय नही आ सकती और विनय के बिना सगुुणों का प्रवेश संभव नहीं है। चार्तुमासकाल से ही एकासन एवं आइम्बिल की लड़ी बराबर जारी है। चार सितम्बर से पर्वाधिराज पर्युषण प्रारम्भ हो रहे है, जिसकी तैयारियां चल रही है। कई श्रद्धालु अनेक प्रकार के तप-त्याग प्रत्याख्यान का मानस बना चुके है। महिलाओं एवं पुरूषों का अखण्ड नवकार जाप भी प्रारम्भ होगा। प्रात:कालीन प्रवचन से पूर्व ज्ञानार्जन का कार्यक्रम भी चल रहा है। संचालन मंत्री विमल कुमार कोठारी ने किया।


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