तीन जौहर का साक्षी रहा है दुर्ग
Chittorgarh के वीर-वीरांगनाओं का नाम इतिहास के पन्नों में स्वाभिमान, आक्रांताओं के सामने झुकने के बजाय मर मिटने के लिए पहचाना जाता है। ऐतिहासिक धरा चित्तौडगढ़़ के गौरवशाली व स्वाभिमानी इतिहास की प्रतीक रानी पद्मिनी समेत हजारों वीरांगनाएं हैं। इनके जौहर की गाथाएं सदियों तक भुलाई नहीं जा सकती, मगर जौहर स्थलों की पहचान जिम्मेदार विभाग की उपेक्षा से गुम होने की स्थिति में हैं। चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन जौहर का साक्षी रहा है। इनमें हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थी।
Chittorgarh के वीर-वीरांगनाओं का नाम इतिहास के पन्नों में स्वाभिमान, आक्रांताओं के सामने झुकने के बजाय मर मिटने के लिए पहचाना जाता है। ऐतिहासिक धरा चित्तौडगढ़़ के गौरवशाली व स्वाभिमानी इतिहास की प्रतीक रानी पद्मिनी समेत हजारों वीरांगनाएं हैं। इनके जौहर की गाथाएं सदियों तक भुलाई नहीं जा सकती, मगर जौहर स्थलों की पहचान जिम्मेदार विभाग की उपेक्षा से गुम होने की स्थिति में हैं। चित्तौड़ का गौरवशाली इतिहास तीन जौहर का साक्षी रहा है। इनमें हजारों वीरांगनाओं ने अपनी आन-बान की रक्षा के लिए धधकती ज्वाला में कूदकर प्राणों की आहुतियां दी थी।
मुगलों व आक्रांताओं के आक्रमण के समय ये तीनों Jauhar हुए हैं। तीन जौहर स्थलों में से दो के बारे में लोग लगभग अनजान हैं। एक जौहर स्थल विजय स्तंभ व गौमुख कुंड के पास स्थित है। इसके लिए यहां एक छोटा सा साइन बोर्ड लगा हुआ है। वहीं दो अन्य जौहर स्थलों में एक कुंभा महल में सुरंग तथा दूसरा भीमलत कुंड के पास बताया जाता है। इनका भी जिक्र न जौहर स्थली के रूप में है और न यहां जौहर करने का संकेत चिन्ह लगा है। इनके बारे में आम लोगों को कोई जानकारी नहीं है।
पुरातत्व विभाग उदासीन
दुर्ग पर अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के समीप उनका नाम लिखने के साथ ही उसके इतिहास की संक्षिप्त जानकारी लिखे बोर्ड या शिलालेख लगे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि जौहर के लिए देश में पहचान रखने वाले स्थान पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण उपेक्षित हैं। जौहर स्थलों की पहचान व विकास की मांग लेकर जौहर स्मृति संस्थान समेत अन्य लोग प्रयास कर चुके हैं। संस्थान ने पुरातत्व विभाग को कई पत्र लिखे, मगर कुछ नहीं हुआ।
दुर्ग पर अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के समीप उनका नाम लिखने के साथ ही उसके इतिहास की संक्षिप्त जानकारी लिखे बोर्ड या शिलालेख लगे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि जौहर के लिए देश में पहचान रखने वाले स्थान पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण उपेक्षित हैं। जौहर स्थलों की पहचान व विकास की मांग लेकर जौहर स्मृति संस्थान समेत अन्य लोग प्रयास कर चुके हैं। संस्थान ने पुरातत्व विभाग को कई पत्र लिखे, मगर कुछ नहीं हुआ।
नहीं मिल पाता सम्मान
दुर्ग पर पर्यटन विभाग के अधिकृत गाइड शांतिलाल शर्मा, संजीव शर्मा व नरेन्द्रसिंह कहते हैं कि जिस जौहर की कल्पना से ही मन सिहर उठता है और मन में उन वीर-वीरांगनाओं को लेकर रोमांच पैदा हो जाता है। ऐसी जौहर की स्थली किसी तीर्थ से कम नहीं है। उपेक्षा के कारण इसका विकास होना तो दूर सम्मान भी पूरा नहीं मिल पाता है। लोग यहां कचरा डाल देते हैं, वहीं बंदर समेत अन्य जानवरों के विचरण से यहां गंदगी फैली रहती है। इसके लिए जनप्रतिनिधियों व पुरातत्व विभाग को इस स्थान पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
दुर्ग पर पर्यटन विभाग के अधिकृत गाइड शांतिलाल शर्मा, संजीव शर्मा व नरेन्द्रसिंह कहते हैं कि जिस जौहर की कल्पना से ही मन सिहर उठता है और मन में उन वीर-वीरांगनाओं को लेकर रोमांच पैदा हो जाता है। ऐसी जौहर की स्थली किसी तीर्थ से कम नहीं है। उपेक्षा के कारण इसका विकास होना तो दूर सम्मान भी पूरा नहीं मिल पाता है। लोग यहां कचरा डाल देते हैं, वहीं बंदर समेत अन्य जानवरों के विचरण से यहां गंदगी फैली रहती है। इसके लिए जनप्रतिनिधियों व पुरातत्व विभाग को इस स्थान पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
इस तरह हुए तीन जौहर
चित्तौड़ का पहला जौहर सन 1303 में हुआ, जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। किवदंति है कि रूपवान रानी पद्मिनी को देखने की लालसा में अलाउद्दीन ने यहां पड़ाव डाला। राणा रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी ने चतुराई से शत्रु का सामना किया। अपनी मर्यादा व राजपूती स्वाभिमान की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि में स्नान किया था। गोरा और बादल जैसे वीरों ने भी इसी समय पराक्रम दिखाया था। आज भी विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रूप में पहचानी जाती है। इतिहास का सबसे पहला और चर्चित जौहर स्थल इसे माना जाता है, लेकिन यह अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की उपेक्षा का शिकार है। पहचान के नाम पर यहां महज छोटा संकेत बोर्ड लगा है। इसका विकास न के बराबर है। चित्तौड़ का दूसरा जौहर सन 1535 में हुआ, जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। तब रानी कर्णावती ने संकट में दिल्ली के शासक हूमायूं को राखी भेज मदद मांगी। कर्णावती ने शत्रु की अधीनता स्वीकार नहीं की और 13 हजार रानियों के साथ जौहर किया। तीसरा जौहर 1567 में हुआ जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। रानी फूलकंवर ने हजारों रानियों के साथ जौहर किया। जयमल-फत्ता भी इसी युद्ध में शहीद हुए।
चित्तौड़ का पहला जौहर सन 1303 में हुआ, जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। किवदंति है कि रूपवान रानी पद्मिनी को देखने की लालसा में अलाउद्दीन ने यहां पड़ाव डाला। राणा रतनसिंह की पत्नी पद्मिनी ने चतुराई से शत्रु का सामना किया। अपनी मर्यादा व राजपूती स्वाभिमान की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि में स्नान किया था। गोरा और बादल जैसे वीरों ने भी इसी समय पराक्रम दिखाया था। आज भी विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रूप में पहचानी जाती है। इतिहास का सबसे पहला और चर्चित जौहर स्थल इसे माना जाता है, लेकिन यह अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की उपेक्षा का शिकार है। पहचान के नाम पर यहां महज छोटा संकेत बोर्ड लगा है। इसका विकास न के बराबर है। चित्तौड़ का दूसरा जौहर सन 1535 में हुआ, जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। तब रानी कर्णावती ने संकट में दिल्ली के शासक हूमायूं को राखी भेज मदद मांगी। कर्णावती ने शत्रु की अधीनता स्वीकार नहीं की और 13 हजार रानियों के साथ जौहर किया। तीसरा जौहर 1567 में हुआ जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। रानी फूलकंवर ने हजारों रानियों के साथ जौहर किया। जयमल-फत्ता भी इसी युद्ध में शहीद हुए।
बदरंग हो रही धरोहर
महारानी पद्मिनी का एक महल जहां चारों ओर से पानी से घिरा होने के कारण अद्वितीय रूप से सुंदर नजर आता है। वहीं दूसरे महल की बनावट भी काफी अच्छी है। इस महल की सुंदरता को मनचले पर्यटकों की नजर लग रही है। मनचले पर्यटक दीवारों पर कोयले से या पत्थर से खरोंचकर अपने नाम-पते व कुछ भी लिख जाते हैं। इससे दीवारें बदरंग होने के साथ ही क्षतिग्रस्त होने लगी हैं। वहीं सैकड़ों साल पुराने महल को भी समय की मार के चलते नुकसान होने लगा है।
महारानी पद्मिनी का एक महल जहां चारों ओर से पानी से घिरा होने के कारण अद्वितीय रूप से सुंदर नजर आता है। वहीं दूसरे महल की बनावट भी काफी अच्छी है। इस महल की सुंदरता को मनचले पर्यटकों की नजर लग रही है। मनचले पर्यटक दीवारों पर कोयले से या पत्थर से खरोंचकर अपने नाम-पते व कुछ भी लिख जाते हैं। इससे दीवारें बदरंग होने के साथ ही क्षतिग्रस्त होने लगी हैं। वहीं सैकड़ों साल पुराने महल को भी समय की मार के चलते नुकसान होने लगा है।
जौहर स्थली पर मिलेगी इतिहास की जानकारी
सही है कि दुर्ग पर ईस्वी 1303 में महारानी पद्मिनी समेत अन्य रानियों के समय हुए तीन जौहर की गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज है, लेकिन इस गाथा को धरातल पर बरकरार रखने वाली जौहर स्थली उपेक्षा की शिकार है। इस संबंध में केन्द्रीय पर्यटन मंत्री से चर्चा करने के साथ ही विकास के प्रस्ताव भिजवा रखे हैं। हेरिटेज प्लान के तहत दुर्ग पर विकास के साथ ही जौहर स्थल पर जल्द ही बहुत बड़ा साइनेज लगाया जाएगा। इस पर इतिहास से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की जाएगी।
– सीपी जोशी, सांसद चित्तौडगढ़़
सही है कि दुर्ग पर ईस्वी 1303 में महारानी पद्मिनी समेत अन्य रानियों के समय हुए तीन जौहर की गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज है, लेकिन इस गाथा को धरातल पर बरकरार रखने वाली जौहर स्थली उपेक्षा की शिकार है। इस संबंध में केन्द्रीय पर्यटन मंत्री से चर्चा करने के साथ ही विकास के प्रस्ताव भिजवा रखे हैं। हेरिटेज प्लान के तहत दुर्ग पर विकास के साथ ही जौहर स्थल पर जल्द ही बहुत बड़ा साइनेज लगाया जाएगा। इस पर इतिहास से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की जाएगी।
– सीपी जोशी, सांसद चित्तौडगढ़़