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मुथुसामी को ‘फ्रीडम बेबी’ बुलाती हैं उनकी मां, रंगभेद के चलते पिता और दादा नहीं बन पाए क्रिकेटर

यह 1994 में जन्मे उस ‘फ्रीडम बेबी’ की कहानी है, जिसका जन्म उसी साल हुआ, जब दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का अंत हुआ था। मुथुसामी भारतीय मूल के अफ्रीकी नागरिक हैं। उनकी मां वानी मूडली बताती है कि उनके पूर्वज 20वीं सदी की शुरुआत में तमिलनाडु के वेल्लोर से मजदूरों के रूप में यहां आए थे। तब यहां रंगभेद का दौर था।

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Ind vs SA 2nd Test Day 2 Highlights

साउथ अफ्रीकी बल्‍लेबाज सेनुरन मुथुसैमी शतक का जश्‍न मनाते हुए। (फोटो सोर्स: एक्‍स@/BCCI)

Senuran Muthusamy Century;IND vs SA Test Series: भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच गुवाहाटी में खेले जा रहे दूसरे टेस्ट मैच में अफ्रीका ने ऑलराउंडर सेनुरन मुथुसामी के शतक की मदद से 489 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया। एक समय दक्षिण अफ्रीका का स्कोर 201/5 था, लेकिन इस विकट स्थिती से ऑलराउंड बल्लेबाज मुथुसामी ने समझदारी से बल्लेबाजी की और टीम को उबारकर पहली पारी में 489 रन तक पहुंचाया। मुथुसामी ने 206 गेंदों पर 109 रन की पारी खेली और टेस्ट करियर का अपना पहला शतक लगाया। इसके अलावा गुवाहाटी के इस नए टेस्ट वेन्यू के पहले शतकवीर बने।

जब मुथुसामी बल्लेबाजी कर रहे थे तब उनकी मां वानी मूडली घाना से एक फ्लाइट में थी। फिर एयरपोर्ट लाउंज में टीवी चैनल बदलवाती रहीं और आखिरकार घर पहुंचकर उस पल स्क्रीन के सामने थी, जब बेटे ने शतक पूरा किया। शतक लगते ही अपना व्हाट्सएप प्रोफाइल पिक्चर बदल दिया और लिखा, "गुवाहाटी स्टेडियम का पहला शतकवीर।"

वेल्लोर से डरबन: रंगभेद से संघर्ष की कहानी

यह शतक 1994 में जन्मे उस ‘फ्रीडम बेबी’ की कहानी है, जिसका जन्म उसी साल हुआ, जब दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का अंत हुआ था। मुथुसामी भारतीय मूल के अफ्रीकी नागरिक हैं। उनकी मां वानी मूडली बताती है कि उनके पूर्वज 20वीं सदी की शुरुआत में तमिलनाडु के वेल्लोर से मजदूरों के रूप में यहां आए थे। तब यहां रंगभेद का दौर था।

वानी ने कहा, “मेरे दादाजी तो एक जहाज पर छिपकर आए थे। मैं उस दौर में पैदा हुई जब रंगभेद चरम पर था, हमें अलग-अलग कॉलोनियों में रखा जाता था। मैं यूनिवर्सिटी नहीं जा सकी, पढ़ाई के साथ-साथ फुल-टाइम नौकरी करनी पड़ी।" मुथुसामी के दादा पुन्नातंबरन मुथुस्वामी भी क्रिकेट खेलते थे, लेकिन रंगभेद के कारण ऊपर नहीं पहुंच सके।

दादा- पिता ने बोए क्रिकेट के बीज

सेनुरन मुथुसामी के दादा के अलावा पिता भी क्रिकेट खेलते थे। लेकिन रंगभेद के कारण वे कभी बड़े स्तर पर नहीं खेल पाए। मुथुसामी की मां ने बताया, “जैसे ही उसने खड़ा होना सीखा, फुल किट पहनकर पापा के साथ थ्रो-डाउन लेने लगता था। जब वह 11 साल का था तब उसके पिता का देहांत हो गया था। उसके बाद मुझे खुद क्रिकेट सीखना पड़ा ताकि उसे थ्रो-डाउन दे सकूं।” 14 साल की उम्र में मुथुसामी ने प्रोफेशनल क्रिकेट खेलना शुरु किया। बाएं हाथ के स्पिनर ऑलराउंडर के तौर पर 2013 में फर्स्ट क्लास में डेब्यू किया। करियर का पहला टेस्ट 2019 में भारत के खिलाफ विशाखापट्टनम में खेला।

भारत से उनका नाता अब भी बना हुआ है, लेकिन मां-बेटे दोनों को दक्षिण अफ्रीकी जर्सी पर प्रोटियाज का चिह्न देखकर सबसे ज्यादा गर्व होता है। वाणी ने कहा, "यह एकमात्र देश है जिसे हम जानते हैं। भारत जाएं तो अलग दिखते हैं, वहां अपनापन महसूस नहीं होता। यहीं हमारा घर है, यहीं हम बड़े हुए हैं। प्रोटियाज का राष्ट्रीय चिह्न पहनना बहुत बड़ा गर्व और खुशी की बात है।"