तीनों केसों में ये हैं समानता
1.जिंदगी की बजाय मौत को चुना
बुराड़ी में जिस तरह एक ही परिवार के 11 सदस्यों ने मौत को गले लगाया, उसी तरह हरियाणा के पानीपत में भी एक परिवार के चार सदस्यों ने जिंदगी और मौत के बीच मौत को चुना, हालांकि इनमें से एक सदस्य बच गया। इसी तरह झारखंड के हजारीबाग में भी एक ही परिवार के 6 सदस्यों ने मौत को गले लगा लिया।
2. तीनों परिवार व्यवसायी
बुराड़ी में भाटिया परिवार की तीन दुकानें थीं। यानी परिवार के पुरुष नौकरी की बजाए अपना व्यवसाय चलाते थे। इसी तरह पानीपत के रितेश ने अपने बच्चों और पत्नी के साथ खुदकुशी कर ली। रितेश भी कारोबारी थे। उधर झारखंड में मौत को गले लगाने वाले अग्रवाल परिवार में भी पुरुषों की आजीविका का साधन व्यवसाय ही था।
3. फांसी का फंदा
मौत को गले लगाने वाले इन तीनों ही परिवार ने फांसी के फंदे को चुना। बुराड़ी में जहां 10 सदस्य फंदे पर लटकर मरे, तो पानीपत में भी दो सदस्यों ने फांसी को ही चुना,जबकि झारखंड में भी दो सदस्यों ने चुन्नी से लटककर आत्महत्या की।
4. नाबालिग भी शामिल
इन तीनों केसों पर गौर करें तो इनमें नाबालिग भी शामिल हैं। बुराड़ी केस में जहां दो बच्चे शामिल थे वहीं पानीपत वाले केस में भी दो बच्चे और झारखंड के हजारी बाग में भी दो नाबालिगों ने मौत को गले गलाया। आमतौर पर बड़े अपने बच्चों पर किसी तरह की परेशानी तक नहीं आने देते, लेकिन इन तीनों केस में बड़ों ने बच्चों को या मरने के लिए उकसाया या फिर मार ही दिया।
डिसऑर्डर है बड़ी वजह
बहरहाल इन तीनों मामलों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। आखिर क्यों एक ही परिवार के सदस्य जिंदगी के बजाय मरना पसंद कर रहे हैं। मनोचिकित्सकों की मानें तो ये एक तरह का मेंटल डिसऑर्डटर है, जिसमें पूरा परिवार धीरे-धीरे इसकी गिरफ्त में आ जाता है। कभी किसी तरह के दबाव के चलते परिवार का हर सदस्य इस मानसिक बीमारी का शिकार होता है तो कभी अपनी काल्पनिक सोच के कारण भी इस डिसऑर्डर की चपेट में आ जाता है।