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मुंबई में वैक्सीनेशन फर्जीवाड़ा: ट्रेन से बिहार भाग रहे आरोपी को GRP ने सतना में पकड़ा, 410 लोगों से वसूले 5 लाख

फर्जी वैक्सीनेशन मामले में महाराष्ट्र के मुंबई से बिहार भाग रहे आरोपी को सतना GRP ने पकड़ लिया। आरोपी बिहार का रहने वाला है। जीआरपी ने उसे मुंबई पुलिस के हवाले कर दिया है।

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नई दिल्ली। महामारी कोरोना वायरस की दूसरी लहर का कहर धीरे धीरे कम हो रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने स्तर पर टिकाकरण के अभियान चला रही है, ताकि सभी को जल्दी से जल्दी टीका लगाया जा सके। हालांकि कई राज्यों में अभी भी जरूरत के अनुसार वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो पा रही है। ऐसे में कुछ लोग फर्जी वैक्सीनेशन के जरिए लोगों को ठग रहे है। एक ऐसा ही मामला महाराष्ट्र के मुंबई से सामने आया है। यहां पर पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए फर्जी वैक्सीनेशन के मामले में आरोपी को गिरफ्तार किया है।

बिहार भाग रहा था आरोपी
फर्जी वैक्सीनेशन मामले में महाराष्ट्र के मुंबई से बिहार भाग रहे आरोपी को सतना जीआरपी ने पकड़ लिया। मुंबई वैक्सीनेशन फर्जीवाड़े का पांचवां आराेपी ट्रेन नंबर 02141 पाटलिपुत्र-मुंबई सुपरफास्ट से बिहार भाग रहा था। इसकी सूचना मिलने के बाद मुंबई पुलिस ने जबलपुर और सतना जीआरपी को अलर्ट किया। सतना जीआरपी ने लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस से आरोपी मोहम्मद करीम को गिरफ्तार किया है। आरोपी बिहार का रहने वाला है। जीआरपी ने उसे मुंबई पुलिस के हवाले कर दिया है।

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फर्जी तरीके से कोविड-19 टीकाकरण शिविर का आयोजन
निजी अस्पताल के नाम पर फर्जी तरीके से कोविड-19 टीकाकरण शिविर आयोजित कर मुंबई की एक हाउसिंग सोसाइटी के रहवासियों को ठगने के आरोप में मोहम्मद करीम को ट्रेन से गिरफ्तार किया है। इसके बारे में बात करते हुए सतना जीआरपी के उप निरीक्षक गोविंद प्रसाद त्रिपाठी ने बताया कि मुंबई के कांदिवली इलाके में हीरानंदानी हेरिटेज सोसाइटी में हुई धोखाधड़ी के आरोप में मुंबई पुलिस चार आरोपियों को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है।

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टीके का ना सर्टिफिकेट ना असर
आरोपी ने पूछताछ में बताया कि वैक्सीनेशन कैंप में प्रति व्यक्ति 1240 रुपए लेते थे। आरोपियों ने कांदिवली की हीरानंदानी हेरिटेज सोसाइटी में वैक्सीनेशन कैंप लगाया था। सोसाइटी के करीब 410 सदस्यों को टीके लगाए गए थे। इस प्रकार से उन्होंने करीब 5 लाख रुपए वसूले। टीका लगावाने लोगों का कहना है कि उनको ना तो सर्टिफिकेट मिला और ना ही टीके का कोई असर हुआ। 15 दिन बाद अलग अलग अस्पतालों के नाम पर सर्टिफिकेट मिला तो उनको शक हुआ। इसके बाद पुलिस में मामला दर्ज करवाया।