
दमोह. उपचुनाव के नतीजों से कांग्रेस को संजीवनी मिली, वहीं भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। झटका इसलिए भी क्योंकि राज्य में भाजपा की सत्ता है और यहां सरकार के मंत्रियों सहित संगठन भी पूरी ताकत से लगा रहा, लेकिन मतदाताओं ने दल-बदल को नकार दिया। ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्योंकि भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी पहले कांग्रेस में थे। इस्तीफा देकर भाजपा में चले गए। भाजपा ने टिकट दिया और दोबारा मतदाताओं के पास वोट मांगने पहुंच गए। मतदाताओं को शायद यह रास नहीं आया और उन्हें 17028 वोट से हार का मजा चखा दिया।
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नाथ ने कहा- जीत आखिर सच की हुई
पांच राज्यों के चुनावों के परिणामों ने भाजपा के अहंकार, गुरूर, बड़बोलेपन को सड़क पर ला दिया है। जीत आखिर सच की ही हुई। दमोह उपचुनाव के परिणाम से प्रदेश से भाजपा की उल्टी गिनती की शुरुआत हो गई है। भाजपा की झूठी घोषणाओं, झूठे शिलान्यास, झूठे भूमि पूजन, सौदेबाजी व बोली की राजनीति, संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या, समाज को बांटने की राजनीति के अंत की शुरुआत हो चुकी है।
वीडी बोले- हम समीक्षा करेंगे
भाजपा की हार से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी से शुभंकर का टैग हट गया है। दरअसल, वीडी जब से अध्यक्ष बने, तब से भाजपा प्रदेश में लगातार जीत रही थी। उन्होंने कहा है कि हमें जनता का निर्णय स्वीकार्य है। दमोह में हम समीक्षा करेंगे। उन्होंने कहा, भाजपा की डबल इंजन की सरकार को असम की जनता ने दिया फिर एक बार समर्थन। असम भाजपा के हर कार्यकर्ता को बधाई एवं शुभकामनाएं। प. बंगाल में ममता बनर्जी को बधाई।
अब आत्ममंथन की जरूरत
प्रश्चिम बंगाल और दमोह के नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए वापस आत्ममंथन की जरूरत बताते हैं। चुनावी विश्लेषकों के मुताबिक मध्यप्रदेश में भी भाजपा को अपनी पूरी रणनीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। मध्य प्रदेश में चुनाव को लगातार जीतने का मंसूबा रखने की रणनीति को इससे झटका लगेगा। खासतौर पर दमोह की असफलता मध्य प्रदेश भाजपा के लिए बड़ा स्थानीय झटका है। इसका एक पहलू दलबदल की राजनीति को जनता द्वारा नकारना भी माना जा रहा है, इसलिए भाजपा के लिए प्रदेश की सियासत को लेकर पुनर्विचार के हालात बन गए हैं।
कांग्रेस बोली- दो नेताओं का घमंड चूर
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने कहा है कि विधानसभा चुनाव के नतीजों से भाजपा के दो नेताओं का घमंड चूर-चूर हो गया है। सीएम इन वेटिंग कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा पश्चिम बंगाल को लेकर बड़े दावे करते थे। इस कोरोना में प्रदेश वासियों को भगवान भरोसे छोड़ चुनाव प्रचार में लगे थे। दोनों ख़ुद को बड़ा मैनेजमेंट गुरु बताते हैं। एक तो पहले विधानसभा चुनावों में प्रदेश में इंदौर संभाग की जिम्मेदारी मिलने पर पार्टी को संभाग में ही नहीं जितवा पाए और दूसरे उपचुनावों में डबरा सीट तक नहीं जितवा पाए। ना घर के रहे ना घाट के? अब सीएम इन वेटिंग से दो नाम कम हुए हैं।
Published on:
03 May 2021 09:32 am
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