
दमोह . जिले में राष्ट्रीय पक्षी मोर की संख्या में चिंताजनक गिरावट देखी जा रही है। खासकर शहर से सटे ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां कभी सुबह-शाम मोरों की चहचहाहट आम बात थी, अब वहां महीनों से एक भी मोर दिखाई नहीं दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि पहले खेतों और झाड़ियों में बड़ी संख्या में मोर देखे जाते थे, लेकिन अब यह दृश्य दुर्लभ हो गया है।
शिकार और माइग्रेशन की आशंका
मोरों की घटती संख्या के पीछे प्रमुख कारणों में अवैध शिकार, मोरपंख की तस्करी, पारंपरिक मान्यताओं के चलते मांस के लिए शिकार और इंसानी गतिविधियों का बढ़ता दबाव हो सकता है। इधर, चौंकाने वाली बात यह है कि वन विभाग के पास मोरों की संख्या को लेकर कोई सटीक रिकॉर्ड ही नहीं है। न ही विभाग ने अब तक इनकी घटती संख्या पर कोई ठोस पहल की है।पत्रिका व्यूयदि समय रहते मोरों के संरक्षण के लिए प्रभावी उपाय नहीं किए गए, तो राष्ट्रीय पक्षी भी विलुप्त प्रजातियों की सूची में शामिल हो सकता है। इसके लिए वन विभाग को सघन सर्वे कर वास्तविक स्थिति का आकलन करना चाहिए और तस्करी व शिकार जैसी गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण लगाना चाहिए।वर्जन
मोरों के गायब होने की सटीक वजह, तो नहीं पता, लेकिन इंसानी दखल इसकी एक संभावित वजह हो सकती है। उनके मुताबिक मोर संभवतः अन्य सुरक्षित क्षेत्रों की ओर चले गए होंगे।ईश्वर जरांडे, डीएफओ दमोह
Published on:
24 May 2025 11:14 am
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