बता दें कि शहर के चारों ओर फैली नौगजा पहाड़ी, जटाशंकर, सर्किट हाउस, परशुराम टेकरी और गजानन पहाड़ी जैसे क्षेत्रों में नीचे से लेकर चोटी तक पक्के मकान और भवनों का निर्माण हो चुका है। कभी ये पहाड़ियां हरियाली से भरी रहती थीं और यहां पशु-पक्षियों का बसेरा होता था, लेकिन अब ये दृश्य दुर्लभ हो चला है।
रसूखदारों को संरक्षणपहाडि़यों पर अधिकतर निर्माण प्रभावशाली और रसूखदार लोगों के संरक्षण में हो रहे हैं। वहीं, नगर पालिका और राजस्व विभाग पहाडि़यों पर होने वाले कब्जों की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। जबकि, यही हालात बने रहे, तो आने वाले समय में दमोह की पहाड़ियां पूरी तरह से गायब हो सकती हैं और साथ ही इसके साथ जुड़ी प्राकृतिक विरासत, जैव विविधता और शहरी संतुलन भी समाप्त हो जाएगा।