
लापरवाही के कारण उजड गयी उसकी मांग, कहा- डॉक्टर ने हमारी सुन ली होती तो आज ज़िंदा होते मेरे पति...
दंतेवाड़ा. इंसान के जान की कभी कोई कीमत नहीं लगाईं जा सकती है। इंसानी जान की बचाने वाले डाक्टरों को भगवान का दर्जा दिया गया है। जब यही भगवान अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ ले तो तो इस भगवान के प्रति आस्था और विश्वास कमजोर होता है। गीदम सीएचसी में पीलिया से पीड़ित (jaundiced patients) हाउरनार के ग्रामीण लुदरु की बुधवार की सुबह मौत हो गई।
पति की मौत के बाद पत्नी लच्छनदई व पिता पाकलू का रो-रो कर बुरा हाल है। लुदरु अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। मां की मौत पहले ही हो चुकी है। बुजुर्ग पिता, पत्नी व अपने 3 मासूम बच्चों की देखभाल लुदरु ही करता था। अब बेटे की मौत के बाद बुजुर्ग पिता की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा।
मृतक के पिता और पत्नी का कहना है की मौत डॉक्टर की लापरवाही (doctor negligence) की वजह से हुई है। अगर समय पर रेफर किए होते तो जान बच सकती थी। वे अकेले ही घर पर कमाने वाले थे। अब छोटे-छोटे बच्चों का कैसे पालन पोषण करूंगी। डॉक्टर पर कार्रवाई होनी चाहिए।
परिजनों ने लगाया लापरवाही का आरोप
लुदरु की मौत के बाद परिजनों ने ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर व नर्सों पर लापरवाही का आरोप लगाया है। लुदरु की बुआ सुदरी ने बताया कि वह शनिवार से पेट दर्द से पीड़ित था। तबियत ज्यादा बिगड़ने पर मंगलवार की शाम करीब 6 बजे गीदम अस्पताल लेकर गए, यहां डॉ. देवेंद्र प्रताप इलाज कर भर्ती किया।
रात 10 बजे लुदरु की तबियत बिगड़ने लगी तो नाइट ड्यूटी में तैनात डॉ. योगेश देवांगन को जब उनके चेम्बर में बुलाने गए तो वे मोबाइल पर बात कर रहे थे। व्हील चेयर के जरिए डॉक्टर ने मरीज को चेम्बर तक लाने कहा। यहां जांच कर इंजेक्शन दिया। देर रात करीब 2 बजे तबियत फिर बिगड़ी तो हमने रेफर करने का निवेदन किया, जिस पर उन्होंने सुबह देखेंगे कहकर टाल दिया और सो गए। यही हाल नर्सों का भी था
डॉक्टर ने कहा सारे आरोप गलत
इस मामले में एएमओ डॉ. योगेश देवांगन ने कहा कि मैं रातभर हॉस्पिटल में ही था और लुदरु का इलाज लगातार कर रहा था। चाहें तो सीसीटीवी व दस्तावेजों में एक-एक रिपोर्ट देख सकते हैं। मैंने किसी तरह की लापरवाही नहीं की। जब मैंने आखिरी बार देखा तो वह ठीक था, रेफर की स्थिति में नहीं था।
सुबह जब हालत बिगड़ी तब परिजनों ने मुझे नहीं बल्कि किसी अन्य डॉक्टर को फोन किया, डॉक्टर के फोन पर जब मैं जागकर मरीज को देखने पहुंच गया तो परिजनों के कहने पर मैं क्यों नहीं जाता। मैं जब पहुंचा तो केन्यूला को परिजन खुद ही निकाल चुके थे। बिगड़ती हालत देख मैंने रेफर किया। परिजन 108 के इंतजार में थे। कुछ देर बाद मरीज (jaundiced patients) की मौत हो गई। मुझ पर जो भी आरोप (doctor negligence) लग रहे हैं, सब गलत हैं।
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Published on:
13 Jun 2019 03:32 pm
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