
करनावद। देवास जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर करनावद में सेंधला नदी के तट पर स्थित कर्णेश्वर महादेव का मंदिर पांडवकालीन है। क्षेत्र सहित जिलेभर व मालवांचल में हजारों भक्तों की आस्था के केंद्र इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि राजा कर्ण यहां पूजा-अर्चना के बाद सोने का दान प्रजा को किया करते थे। श्रावण मास में शिव भक्ति की विशेष मान्यता होने से मंदिर में श्रावण मास के पहले दिन गुरुवार को बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे।
रोजाना देवी के समक्ष कड़ी तपस्या करते थे कर्ण
मालवा अंचल में महाभारत काल में कौरवों के द्वारा कई मंदिरों का निर्माण करवाया गया था। इन्हीं में से एक है इंदौर-बैतूल नेशनल हाइवे से 4 किमी दूर करनावद में। इस मंदिर का इतिहास गौरवपूर्ण है। प्राचीन मान्यता के अनुसार यहां के राजा कर्ण हुआ करते थे और वह ग्रामवासियों को रोजाना सोना दान करते थे। राजा कर्ण रोजाना देवी के समक्ष कड़ी तपस्या करते हुए आहुति देते थे उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी उन्हें अमृत के छींटे लगाकर सवा मन सोना देती थीं जिसे वे ग्रामवासियों को दान करते थे।
कुंती रेत के शिवलिंग बनाकर करती थीं उपासना
मंदिर को लेकर ऐसी किवदंती है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों की माता कुंती रोजाना बालू रेत के शिवलिंग बनाकर शिव की उपासना करती थीं। तब पांडवों ने उनसे पूछा कि आप किसी मंदिर में जाकर पूजा क्यों नहीं करतीं, कुंती ने कहा कि यहां जितने भी मंदिर हैं वह सब कौरवों के हैं, इसके बाद पांडवों ने पांच मंदिरों के मुख पूर्व से पश्चिम की ओर किए थे जिनमें से एक है करनावद स्थित कर्णेश्वर महादेव मंदिर।
इस मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण काले पत्थर से बना पूरा मंदिर व नदी के तट पर पड़े काले पाषाण, मंदिर के अंदर स्थित गुफाएं देती हैं। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार, हरियाली अमावस्या को राजा कर्णेश्वर श्रृंगारित रूप में अपनी प्रजा का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं राजा कर्ण के नाम से ही कर्णेश्वर महादेव और नगर का नाम कर्णावत जो कि कालांतर में करनावद के नाम से जाना जाता है।
Updated on:
15 Jul 2022 02:38 pm
Published on:
15 Jul 2022 02:35 pm
बड़ी खबरें
View Allदेवास
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
