16 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

World fathers day 2021 : अपने जूते-कपड़े न लाकर मेरे लिए लाते थे किताबें, मजदूरी कर भरते थे फीस

World fathers day 2021 एम्स से डॉक्टरी कर रहे बेटे ने पिता के संघर्ष को किया प्रणाम..बोला- पिता की बदौलत ही इस मुकाम पर हूं...

3 min read
Google source verification
dewas_fathersday.jpg

चंद्रप्रकाश शर्मा, देवास

देवास. पिता...एक परिवार की सबसे अहम कड़ी, स्नेह और अनुशासन का अनूठा संगम, कहीं संतान का भविष्य गढ़ने का संघर्ष भरा जीवन तो कहीं कठिनाईयों की भट्टी में खुद तपकर संतान के लिए मखमली राह बनाने का जुनून...। ये शब्द महज कुछ दृश्यों के भाव दर्शा सकते हैं, लेकिन पिता एक ऐसा शब्द है, जिसकी शुरूआत से पड़ाव तक की कहानी किसी मिसाल से कम नहीं होती। फादर्स डे के मौके पर बात करते हैं एक ऐसे पिता की जिसकी जिंदगी भले ही संघर्षों से भरी रही। खुद मजदूरी की लेकिन बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कमी नहीं आने दी और आज उसके बच्चे माता-पिता के सपनों को साकार करने के साथ ही उनके दुखों को दूर कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें- फादर्स डे पर पिता को ऐसे करें खुश

खुद मजदूरी की लेकिन बच्चों को दी अच्छी परवरिश
फादर्स डे के मौके पर हम बात कर रहे हैं एक ऐसे परिवार की जहां अभावों के सिवाय कुछ नहीं था। न रहने को ठीक से घर था न दूसरी सुविधाएं। बिजली भी नसीब नहीं थी लेकिन हौसले और सपने बेशुमार थे। ये कहानी है देवास जिले के विजयगंज मंडी में रहने वाले रणजीत चौधरी की। जो कचरे की पन्नियां बीनते थे। मजदूरी करते थे। इसलिए कि उनके बच्चे वो सब न करें जो उन्होंने किया है और आज एक झोपड़ी से निकलकर एक बेटा देश के प्रतिष्ठित एम्स संस्थान से डॉक्टरी कर रहा है। दूसरा बेटा बीटेक कर रहा है तो बेटी मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है। इन तीनों बच्चों ने अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए जी जान लगा दी।

ये भी पढ़ें- बेटे की जान बचाने पिता ने दी किडनी, इलाज में लुटा दी जिंदगीभर की पूंजी

पिता के संघर्ष को बच्चों ने परिश्रम से सींचा
मजदूर रणजीत चौधरी ने तमाम मुश्किलों के बावजूद कभी भी बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। बच्चों ने भी सुविधाओं और संसाधनों की परवाह न कर मेहनत लगन से सपनों को पूरा करने में जुटे। पिता के संघर्ष को अपने परिश्रम से सींचा और धीरे-धीरे हालात बदलने लगे। पिता रणजीत चौधरी और मां ममता के तीन बच्चे हैं जिनमें से सबसे बड़ा बेटा आशाराम, छोटा सीताराम व बेटी नर्मदा है। आशाराम ने शुरुआती शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से की। बगैर कोचिंग और किसी सुविधा-संसाधन के आशाराम ने एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) की चयन परीक्षा में स्थान पाया है। पूरे देश में 707वीं रैंक और ओबीसी श्रेणी में 141वीं रैंक हासिल की। आशाराम जिस समय एम्स में दाखिला ले रहे थे उस समय उनके पास रहने को मकान भी नहीं था। झोपड़ीनुमा घर में पूरा परिवार रहता था। आशाराम ने कहा कि मुझे आगे एमएस करना है जिसके बाद न्यूरोलॉजिस्ट बनना है। पापा ने जितना त्याग किया उतना कोई नहीं करता। खुद के जूतों-कपड़ों की फिक्र नहीं की लेकिन मेरे लिए किताबें लाते थे। मजदूरी करके थक जाते थे लेकिन मेरे सपनों को पूरा करने में जुटे रहते थे। किसी बात के लिए कभी मना नहीं किया।

ये भी पढ़ें- बच्चों को बेहतर इंसान बनाने जरुर सिखाएं ये बातें

पीएम ने किया था मन की बात में जिक्र
आशाराम की सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में आशाराम का जिक्र किया था। पीएम ने कहा था कि मुझे समाचारों के माध्यम से पता चला कि किस तरह मप्र के अत्यंत गरीब परिवार के आशाराम चौधरी ने जीवन की मुश्किल चुनौतियों को पार कर सफलता हासिल की है। जोधपुर एम्स की एमबीबीएस की परीक्षा में पहले ही प्रयास में सफलता पाई है। आशाराम के पिता कूड़ा बीनकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। मैं आशाराम को इस सफलता के लिए बधाई देता हूं। सीएम शिवराज सिंह ने चाय पर बुलाया था। शासन की ओर से मकान, गैस व सिलेंडर, बिजली कनेक्शन देने का वादा किया था। आशाराम का कहना है कि पिताजी के शब्द हमेशा प्रेरणा बनकर कानों में गूंजते हैं और आज इस मुकाम तक आया हूं तो बड़ा अच्छा लगता है। पिता त्याग और बलिदन की प्रतिमूर्ति है। हर मां-बाप ये चाहते हैं कि उनके बेटे को वो सब न सहना पड़े जो उन्होंने सहा है।

देखें वीडियो- बेटे की ट्यूशन टीचर पर आया डॉक्टर का दिल