11 जुलाई 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

दादा जिनदत्त महाराज साहेब की 871वीं स्वर्गारोहण जयंती आज, जानें इनकी कहानी

Dhamtari News: पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर महाराज साहेब, पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागर महाराज साहेब के सुशिष्य पूज्य प्रशम सागर महाराज साहेब, पूज्य योगवर्धन महाराज साहेब चातुर्मास के लिए श्री पार्श्वनाथ जिनालय धमतरी में विराजमान है।

दादा जिनदत्त महाराज साहेब की 871 वीं स्वर्गारोहण जयंती (फोटो सोर्स - पत्रिका)
दादा जिनदत्त महाराज साहेब की 871 वीं स्वर्गारोहण जयंती (फोटो सोर्स - पत्रिका)

CG News: पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर महाराज साहेब, पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागर महाराज साहेब के सुशिष्य पूज्य प्रशम सागर महाराज साहेब, पूज्य योगवर्धन महाराज साहेब चातुर्मास के लिए श्री पार्श्वनाथ जिनालय धमतरी में विराजमान है। पूज्य प्रशम सागर महाराज साहेब ने कहा कि रविवार को पहले दादा जिनदत्त महाराज साहेब की 871 वीं स्वर्गारोहण जयंती है। इस अवसर पर 6 जुलाई को बड़ी पूजा सुबह 10.30 बजे श्री पार्श्वनाथ जिनालय में राखी गई है।

आगे बताया कि दादा गुरुदेव ने एक बार बिजली गिरने पर भक्तजनों के संकट निवारण के लिए अपने पात्र में बंद कर दिया था। 52 वीरों और 64 जोगनी को अपने वश में कर लिया था। आप अपने गुरु वल्लभ सागर सूरी श्री महाराज के पाठ पर विराजे थे। आपको युगप्रधान की पदवी मिली थी। अनेक बार आपने संघ के रक्षार्थ कार्य किए और समय समय पर भक्तों के कष्टों का निवारण आपके द्वारा किया गया। लाखों जनों को अपने जिनशासन से जोड़ने का कार्य किया। ऐसे महान चमत्कारी पहले दादा युगप्रधान जिनदत्त सुरी महाराज साहेब की 871 वीं जयंती हम सब यहां पर बड़े धूमधाम से मना रहे है। चातुर्मासिक सामूहिक तपस्या 13 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है।

कर्म विजय तप

अज्ञानता के कारण बंधे हुए कर्म पर विजय पाने के लिए कर्म विजय तप किया जाता है। अज्ञानता अर्थात जानकारी या समझ के अभाव में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमने जो कर्म का बंध कर लिया है। तपस्या के माध्यम से उन कर्मों पर विजय पाने के लिए यह तप किया जाता है। यह तप 29 दिन का होगा।

आत्म शोधन तप

यह तप अपनी आत्मा को पहचानने के लिए अर्थात मैं अर्थात अपनी आत्मा को जानने के लिए किया जाता है। हम इस नाशवान शरीर को अपना मानते है। ज्ञानी भगवंत कहते हैं कि शरीर तो बदलते रहता है। जबकि शाश्वत आत्मा हमारी है। आत्मा कभी नहीं बदलती। इस तप के माध्यम से अपनी आत्मा को जानने और पहचानने का प्रयास करना है। इस तप का उद्देश्य अपनी आत्मा की वास्तविकता को जानना है, ताकि हम आत्म विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सके। आत्मा का विकास ही भविष्य में हमें शाश्वत सुखो तक अर्थात मोक्ष तक पहुंचा सकता है। आत्मा का वास्तविक और परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना ही होता है।