
CG News: जिले में सिकलसेल और एनीमिया के मरीजों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस रोग को नियंत्रित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सिकलसेल नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया है। 30 अक्टूबर 2022 से यह कार्यक्रम संचालित है। अब तक कुल 51 हजार 184 लोगोें की जांच की गई, जिसमें एएस के 1056 और एसएस के 478 पॉजीटिव केस मिले हैं। जबकि 60 फीसदी एनीमिया से पीड़ित मरीज चिन्हांकित हुए है। सर्वाधिक पॉजीटिव केस महिलाओं में सामने आए हैं। हालांकि अनेक पुरूष भी इस समस्या से जूझ रहे हैं।
नोडल अधिकारी डॉ आदित्य सिन्हा ने बताया कि एसएस मरीज 100 प्रतिशत सिकलसेल पीड़ित होते हैं, इन्हें ब्लड चढ़ाने की जरूरत होती है। इस तरह के मरीजों को अपने जीवन में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एएस मरीज सिकलसेल के वाहक होते हैं। इन्हें ब्लड चढ़ाने की जरूरत नहीं होती। यह एक अनुवांशिक बीमारी है। इसका इलाज संभव हैं, लेकिन खर्च ज्यादा है। सिकलसेल मरीज के ट्रीटमेंट के लिए बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है। इसमें करीब 15 लाख रूपए तक खर्च आता है। 100 प्रतिशत सिकलसेल वाले मरीजों को खानपान अपने दैनिक दिनचर्या में सुधार की जरूरत होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शादी में जिस तरह कुंडली मिलान करते हैं। अब सिकलसेल नियंत्रण के लिए विवाह से पहले वर-वधु का सिकलसेल जांच कराना जरूरी है। यदि दोनों में से एक 100 प्रतिशत सिकलसेल मरीज है और दूसरा सामान्य है। उस व्यक्ति का बच्चा सिकलसेल वाहक हो जाता है। इसी तरह दंपत्ति 100 प्रतिशत सिकसेल पीड़ित है, तो बच्चा भी 100 प्रतिशत सिकलसेल से पीड़ित होगा। यह रोग माता-पिता से बच्चों को मिलता है। इस चैन को रोकने के लिए जन-जागरूकता अतिआवश्यक है।
डॉ आदित्य सिन्हा ने बताया कि सिकलसेल में व्यक्ति के शरीर का ब्लड हंसिया आकार का हो जाता है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। ऐसे मरीज के शरीर में हमेशा दर्द बना रहना, थकान लगना, जल्दी बीमार पड़ना, इस तरह के लक्षण परीलक्षित होते हैं।
Updated on:
01 Feb 2025 03:19 pm
Published on:
01 Feb 2025 03:18 pm
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