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Chaurchan Parv 2025: कलंकित चांद को क्यों पूजते हैं मिथिला के लोग? जानें चौरचन परंपरा और पूजा विधि

Chaurchan Parv 2025: मिथिला की सांस्कृतिक परंपराओं में चौरचन या चौठचन्द्र का पर्व एक अनोखा महत्व रखता है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत मुख्य रूप से शाम के समय किया जाता है। कहा जाता है कि जिस दिन संध्या में चतुर्थी तिथि और चंद्रोदय हो, उसी दिन इस पर्व का आयोजन होता है।

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भारत

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Dimple Yadav

Aug 25, 2025

Chaurchan Parv 2025

Chaurchan Parv 2025 (photo- grok ai)

Chaurchan Parv 2025: मिथिला अपनी अद्भुत लोकसंस्कृति और अनोखी परंपराओं के लिए जानी जाती है। इन्हीं परंपराओं में से एक है चौरचन पर्व, जिसे भाद्रपद माह की गणेश चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इसे चौरचन या चौठचंद कहा जाता है। जहां पूरे देश में इस दिन के चांद को कलंकित मानकर देखने से मना किया जाता है, वहीं मिथिला में लोग इसे शुभ और पवित्र मानकर उसकी पूजा करते हैं।

लोककथा के अनुसार गणेश जी को देखकर चंद्रमा ने हंसी उड़ाई थी, जिसके कारण उन्हें श्राप मिला कि इस दिन जो भी चांद देखेगा, वह चोरी या झूठ के कलंक से ग्रसित होगा। लेकिन मिथिला के लोग मानते हैं कि उनका चांद कलंकमुक्त है। इस परंपरा के पीछे मिथिला नरेश राजा हेमांगद ठाकुर की ऐतिहासिक कथा जुड़ी है। सोलहवीं सदी में कर चोरी के झूठे आरोप में मुगलों ने उन्हें कैद कर लिया था। कैद में रहते हुए उन्होंने ग्रहों की चाल गिनकर आने वाले 500 वर्षों के सूर्य-चंद्र ग्रहण की सटीक भविष्यवाणी की। उनकी गणना सच साबित होने पर मुगल बादशाह ने उन्हें न केवल मुक्त किया बल्कि कर भी माफ कर दिया।वापस लौटने पर रानी हेमलता ने इसे मिथिला के चांद की कलंकमुक्ति माना और चंद्र पूजा की परंपरा शुरू की। तभी से हर साल मिथिला में लोग चौरचन पर्व बड़े हर्ष और श्रद्धा से मनाते हैं।

पूजा की विशेष परंपरा

इस दिन भूमि पर अरिपन (अलपना) बनाकर चन्द्रमा की आकृति बनाई जाती है। उसके ऊपर केले का पत्ता रखकर नैवेद्य चढ़ाया जाता है। प्रत्येक परिवार सदस्य के लिए बांस की डाली पर पकवान, मिठाई, पायस, फल और विशेष रूप से दही व पका हुआ केला रखा जाता है। परंपरा है कि दही का अभाव होने पर व्रती अरवा चावल पीसकर मिट्टी के पात्र में रखकर चढ़ाते थे।

पूजा की विधि

व्रती दिनभर निर्जला या फलाहार रहकर संध्या समय पश्चिममुख होकर पूजा करती हैं। सबसे पहले गणपति और पंचदेव की पूजा होती है, फिर गौरी और अंत में रोहिणी सहित चन्द्रमा की पूजा की जाती है। विधवा स्त्रियां और पुरुष इस समय विष्णु पूजा करते हैं। श्वेत वस्त्र और श्वेत पुष्प पूजा में आवश्यक माने जाते हैं। पूजा के बाद व्रती हाथ में नैवेद्य लेकर मंत्रोच्चार के साथ चन्द्रमा का दर्शन करते हैं।

विशेष मान्यता

मिथिला में यह पर्व छठ और दुर्गोत्सव के बाद सबसे लोकप्रिय व्रत माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन चन्द्रमा का दर्शन करने से परिवार में शांति, समृद्धि और दोषों का निवारण होता है। यही कारण है कि चाहे घर में पूजा हो या न हो, लोग फल लेकर चन्द्रमा को नमन करना नहीं भूलते।