scriptJanmashtami 2021: श्रीकृष्ण का कैसे पड़ा लड्डू गोपाल नाम, जानें ये दिलचस्प कथा | How did Shri Krishna get the name Laddu Gopal | Patrika News

Janmashtami 2021: श्रीकृष्ण का कैसे पड़ा लड्डू गोपाल नाम, जानें ये दिलचस्प कथा

locationभोपालPublished: Aug 30, 2021 11:35:07 am

Janmashtami 2021: ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ

Janmastami 2021

laddu gopal

हिंदू धर्मग्रंथों में श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है। वहीं द्वापर युग में हुए श्रीकृष्ण को अनेक नामों से भी जाना जाता है, इनमें से श्री कृष्ण का एक प्रसिद्ध नाम लड्डू गोपाल भी है। ऐसे में आज (सोमवार, 30 अगस्त 2021) श्री कृष्ण के जन्मदिन यानि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हम आपको श्री कृष्ण की महिमा से जुड़ी एक दिलचस्प कथा बताने जा रहे हैं। जिसके बाद से ही उनका नाम लड्डू गोपाल भी पड़ा।

इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा के अनुसार काफी समय पहले ब्रज भूमि में श्रीकृष्ण के एक अन्नय भक्त कुम्भनदास रहते थे। उनका एक रघुनंदन नाम का पुत्र था।

कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में कुम्भनदास पूरा समय लीन रहने के साथ ही समस्त विधि विधान व नियम के अनुसार श्री कृष्ण की सेवा करते थे। यहां तक कि उन्हें कहीं जाना भी होता था तो भी वे श्रीकृष्ण को छोड़ कर अन्य जगह नहीं जाते थे।

janmastami festival

उनका मानना था कि ऐसा करने (कहीं जाने) से श्रीकृष्ण की सेवा में कोई विघ्न उत्पन्न हो सकता है। ऐसा करते हुए उन्हें कई साल बीत गए।

वहीं वृन्दावन से एक दिन उनके लिए भागवत कथा का न्योता आया। जिसे उनके द्वारा पहले तो मना कर दिया, लेकिन भक्तों के अत्यधिक जोर देने पर वे कथा के लिए वृन्दावन जाने को मान गए। यहां उनकी सोच थी कि भगवान की सेवा की तैयारी करके वे हर रोज कथा करके वापस लौट आएंगे, और ऐसा करने से भगवान का सेवा में कोई विघ्न भी नहीं आएगा। फिर भागवत कथा के लिए जाते समय उन्होंने अपने पुत्र रघुनंदन को समझाते हुए कहा कि वे भोग तैयार कर चुके हैं, और रघुनंदन को बस ठाकुर जी को समय पर भोग लगा देना है। इसके बाद कुम्भनदास भागवत कथा के लिए चले गए।

इसके बाद कुम्भनदास की अनुपस्थिति में उनके आदेश के अनुसार कुम्भनदास के पुत्र रघुनंदन ने ठीक निश्चित समय पर भोजन की थाली श्रीकृष्ण जी के सामने रखी और उनसे सरल मन से आग्रह करते हुए कहा कि ठाकुरजी आओ और भोग लगाओ।

रघुनंदन के बाल मन में यह विचार था कि श्रीकृष्ण आकर अपने हाथों से भोजन करेगें। लेकिन श्रीकृष्ण जी नहीं आए इस पर रघुनंदन ने बार-बार श्रीकृष्ण जी से आग्रह किया, लेकिन भोजन तो वैसा रखा रहा।

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यह देख रघुनंदन उदास हो गए और उन्होंने रोते हुए पुकारा कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ। जिसके बाद ठाकुर जी मूर्ति से एक बालक का रूप धारण कर बाहर आए और भोजन करने बैठ गए। श्रीकृष्ण जी को भोजन करते देख रघुनंदन खुश हो गया।
इसके बाद भागवत कथा से रात को लौटकर आए कुम्भनदास जी ने अपने पुत्र रघुनंदन से पूछा- बेटा, ठाकुर जी को तुमने भोग लगा दिया था? इस पर रघुनंदन बोले हां, यह सुनने के बाद कुम्भनदास जी ने रघुनंदन से प्रसाद मांगा। इस पर रघुनंदन बोले कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। इस पर कुम्भनदास जी ने सोचा कि रघुनंदन ने भूख लगने के चलते सारा भोजन स्वयं ही खा लिया होगा।
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shri krishna and lord shiv

लेकिन इसके बाद तो ये हर रोज कि स्थिति हो गई कि भोजन की थाली लगाकर कुम्भनदास जी जाते और रघुनंदन ठाकुर जी को भोग के लिए आग्रह करते और श्रीकृष्ण वहां आकर भोजन कर लेते, वहीं जब कुम्भनदास जी वापस आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगते तो रघुनंदन कहते कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। हर रोज होने वाली इस प्रक्रिया के बीच कुम्भनदास जी को शक हुआ कि उनका पुत्र रघुनंदन झूठ बोलने लगा है।

ऐसे में एक दिन कुम्भनदास कहीं बाहर नहीं गए और लड्डू बनाकर थाली में सजाने के बाद छिप कर यह देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है। इस बार भी रघुनंदन ने हर बार की तरह ही इस दिन भी श्रीकृष्ण जी को पुकारा तो रघुनंदन की पुकार सुनते ही श्रीकृष्ण जी बालक के रूप में प्रकट हुए लड्डू खाने लगे।

कुम्भनदास जी ने जैसे ही ये दृश्य देखा वे दौड़ते हुए आए और बालक के रूप में आए श्रीकृष्ण जी के चरणों में गिर गए। इस समय ठाकुर जी के एक हाथ में एक लड्डू और दूसरे हाथ में दूसरा लड्डू मुख के समीप था और वह मुख मे जाने ही वाला था, कि वे जड़ हो गए। इस घटना के बाद से ही श्रीकृष्ण की इसी रूप में भी पूजा की जाने लगी, और यहीं से वे कहलाए ‘लड्डू गोपाल’।

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