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कालभैरव की पूजा से नहीं रहता भूत-प्रेतों का भय, पलक झपकते दूर होते हैं सारे कष्ट

श्मशान में विराजने वाले कालभैरव को साक्षात शिव की क्रोधाग्नि माना जाता है। इनके स्मरण मात्र से इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी मोक्ष पा जाता है

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Sunil Sharma

Oct 21, 2017

kaal bhairav ujjain

kaal bhairav ujjain

भोलेनाथ का पांचवे अवतार कालभैरव के स्मरण मात्र से ही व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और उसका दुर्भाग्य देखते ही देखते सौभाग्य में बदल जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरवाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इनका रूप अत्यन्त उग्र माना गया है और इनकी शक्ति का नाम है भैरव गिरिजा।

श्मशान में विराजते हैं कालभैरव
श्मशान में विराजने वाले कालभैरव को साक्षात शिव की क्रोधाग्नि माना जाता है। इनके स्मरण मात्र से इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी निर्मल हो जाता है। भैरव को प्रसन्न करने के लिए उड़द की दाल या इससे निर्मित मिष्ठान, दूध-मेवा का भोग लगाया जाता है, चमेली का पुष्प इनको अतिप्रिय है। इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता।

जब शिव ने लिया भैरव रूप
शिव के भैरव रूप में प्रकट होने की अद्भुत घटना है कि एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्माजी से प्रश्न किया कि परमपिता इस चराचर जगत में अविनाशी तत्त्व कौन है? ब्रह्माजी बोले कि केवल मैं ही हूं क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। जब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूं, अत: अविनाशी तत्त्व तो मैं ही हूं। इसे सत्यता की कसौटी पर परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया।

चारों वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, जिनका कोई आदि-अंत नहीं है, वे अविनाशी तो भगवान रूद्र हैं। वेदों के द्वारा शिव के बारे में इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्माजी के पांचवे मुख ने शिव के विषय में अपमानजनक शब्द कहे जिन्हें सुनकर चारों वेद दु:खी हुए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए, ब्रह्माजी ने कहा कि हे रूद्र! तुम मेरे ही शरीर से पैदा हुए हो अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है अत: तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो।

उस दिव्यशक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया जिसके इन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया जहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल बनाया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनके दर्शन बिना विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।