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Magh Mah Dharmik Kary: माघ महीने में इस काम से धनवान कुल में होता है जन्म, पढ़ें माघ मास की कथा

Magh Mah Dharmik Kary: माघ माह 14 जनवरी 2025 से शुरू हो रहा है और यह 12 फरवरी तक रहेगा। मान्यता है कि हिंदी कैलेंडर के 11वें महीने में स्नान-दान से कई यज्ञ करने का पुण्य फल मिलता है। साथ ही माघ के उपाय से धनवान कुल में जन्म होता है। पढ़ें माघ मास की कथा (Magh Mas Ki Kahani)

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Magh Mah Dharmik Kary magh mahine mein kiski puja ki jaati hai

Magh Mah Dharmik Kary magh mahine mein kiski puja ki jaati hai: माघ महीने में किसकी पूजा की जाती है

Magh Ka Significance: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माघ का महीना धर्म-कर्म के नजरिये से बहुत खास है। इस महीने में किए गए पूजन, तीर्थ दर्शन और नदी स्नान से धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। इस महीने में तिल-गुड़ का सेवन खासतौर पर करना चाहिए।


जयपुर के ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार माघ मास में प्रयाग राज में स्नान करने का महत्व अधिक है, जो लोग इस माह में प्रयाग में स्नान करते हैं, उन्हें अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है। इस शुभ काम से भगवान विष्णु की भी विशेष कृपा मिलती है और हर मनोकामना पूरी होती है, जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।


गंगाजल में विष्णुजी का अंश

डॉ. व्यास के अनुसार माघ महीने में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने और नदी में नहाने का महत्व बताया गया है। इस पवित्र महीने के दौरान नदियों में नहाने से ही पुण्य मिल जाता है। क्योंकि पुराणों में कहा गया है कि माघ महीने के दौरान गंगाजल में भगवान विष्णु का कुछ अंश रहता है।


वैसे तो पूरे साल में किसी भी दिन गंगा स्नान करना शुभ ही होता है, लेकिन माघ महीने में इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। इस पवित्र महीने में गंगा का नाम लेकर नहाने से गंगा स्नान का फल मिलता है। इस महीने में प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार या अन्य पवित्र तीर्थों के दर्शन और नदियों में स्नान का बहुत महत्व है। यह महीना पूजा-पाठ, दान-पुण्य और सेहत सुधारने का है।


इन दिनों ये काम जरूर करें

इन दिनों में जीवन शैली में किए गए बदलाव से सकारात्मक फल मिलते हैं। माघ में नदियों में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो घर पर ही पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। ऐसा करने से भी नदी स्नान के समान पुण्य मिल सकता है।
घर पर गंगाजल से स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य जरूर चढ़ाएं। ध्यान रखें अर्घ्य देने के लिए ऐसी जगह का चयन करें, जहां सूर्य को चढ़ाया हुआ जल किसी के पैर से न लगे। इसके बाद घर के मंदिर में अपने इष्टदेव की पूजा करें, मंत्र जप करें।

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भागवत गीता और रामायण का पाठ

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार माघ महीने में श्रीमद्भगवत गीता और रामायण का पाठ करना चाहिए। इस माह में रोज सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर में धूप-दीप जलाएं, पूजा करें। ग्रंथों का पाठ करें। मंत्र जप करें।


माघ माह में प्रयाग में स्नान करने नहीं जा पा रहे हैं तो अपने शहर में या शहर के आसपास किसी नदी में स्नान कर सकते हैं। इस महीने में प्रयागराज के साथ ही हरिद्वार, काशी, मथुरा, उज्जैन जैसे धार्मिक शहरों में काफी भक्त पहुंचते हैं। इस माह में तीर्थ दर्शन करने की भी परंपरा है। किसी ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ, चारधाम या किसी अन्य प्राचीन मंदिर में दर्शन किए जा सकते हैं।
पूजा-पाठ के साथ ही इस महीने में जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान जरूर करें।

अभी ठंड का समय है तो इन दिनों में कंबल, तिल-गुड़ का दान जरूर करें। किसी गौशाला में पैसों के साथ ही हरी घास भी दान करनी चाहिए। इस माह में रोज सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य को तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। भगवान गणेश, विष्णु जी, श्रीकृष्ण, शिवजी, देवी मां की पूजा करें।

माघ में इस काम से धनवान कुल में जन्म

डॉ. अनीष व्यास के अनुसार पद्म, स्कंद और ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि माघ महीने में जब सूर्य मकर राशि में होता है तब सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। महाभारत और अन्य ग्रंथों में भी इस हिंदी महीने का महत्व बताया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि जो माघ महीने में नियम से एक समय भोजन करता है, वो धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बीजनों में महत्व को प्राप्त होता है।


इसी अध्याय में कहा गया है कि माघ महीने की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल मिलता है और वो अपने कुल का उद्धार करता है।

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माघ मास की कथा (Magh Mas Ki Katha)

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि प्राचीन काल में नर्मदा किनारे सुव्रत नाम का ब्राह्मण रहता था। वो वेद, धर्मशास्त्रों और पुराणों के जानकार थे। कई देशों की भाषाएं और लिपियां भी जानते थे। इतने विद्वान होते उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग धर्म के कामों में नहीं किया।

पूरा जीवन केवल धन कमाने में ही गवां दिया। जब वो बूढ़े हुए तो याद आया कि मैंने धन तो बहुत कमाया, लेकिन परलोक सुधारने वाला कोई काम नहीं किया। ये सोचकर दुखी होने लगे। उसी रात चोरों ने उनका धन चुरा लिया, लेकिन सुव्रत को इसका दु:ख नहीं हुआ क्योंकि वो तो परमात्मा को पाने का उपाय सोच रहे थे।

तभी सुव्रत को एक श्लोक याद आया-
माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।


उनको अपने उद्धार का मूल मंत्र मिल गया। फिर उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और नौ दिनों तक सुबह जल्दी नर्मदा के पानी में स्नान किया। दसवें दिन नहाने के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। सुव्रत ने जीवन भर कोई अच्छा काम नहीं किया था, लेकिन माघ में स्नान के बाद उनका मन निर्मल हो चुका था। जब उन्होंने प्राण त्यागे तो उन्हें लेने दिव्य विमान आया। उस पर बैठकर वो स्वर्ग चले गए।