
mahesh navmi 2021 puja time
हिंदू समाज में भगवान शिव के अनेक त्यौहार आते हैं, ऐसा ही एक त्यौहार महेश नवमी का भी हैं, जिसे ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन Bhagwan Shiv की विशेष पूजा की जाती है। ऐसे में इस साल यानि 2021 में यह पर्व शनिवार, 19 जून (ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि) को मनाया जाएगा।
महेश नवमी 2021:
नवमी तिथि प्रारंभ : 18 जून 2021 को शाम 08:35 बजे से
नवमी तिथि का समापन : 19 जून 2021 को शाम 06:45 बजे तक
मान्यता के अनुसार इस दिन (ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि) से ही maheshwari-samaj की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए खासतौर से माहेश्वरी समाज द्वारा यह पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। महेश नवमी के दिन व्रत और भगवान शिव की पूजा करने का भी विधान है।
माना जाता है कि ज्येष्ठ महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं। महेश नवमी का यह पर्व Lord Shiv and Parvati के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रकट करता है।
महेश नवमी: इसी दिन श्राप से मिली मुक्त
महेश नवमी पर्व खासतौर से माहेश्वरी समाज द्वारा मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वजों को किसी कारण से ऋषियों ने श्राप दे दिया था। इसके बाद mahadev ने उन्हें इसी दिन श्राप से मुक्त किया व अपना नाम भी दिया। यह भी प्रचलित है कि भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य या व्यापारिक कार्य को अपनाया।
वैसे तो महेश नवमी का पर्व सभी हिंदू मनाते हैं, लेकिन माहेश्वरी समाज द्वारा इस पर्व को काफी भव्य रूप में मनाया जाता है। इस दिन धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ ही कुछ स्थानों पर चल समारोह भी निकाले जाते हैं। यह पर्व भगवान शंकर और माता पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रकट करता है।
हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को “महेश नवमी” का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 के ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी, तबसे माहेश्वरी समाज हर वर्ष की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को “महेश नवमी” के नाम से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रूप में मनाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (Tripurari) और माता पार्वती जी की आराधना को समर्पित है।
भगवान महेश के आशीर्वाद से हुई माहेश्वरियों की उत्पत्ति...
मान्यता है कि, युधिष्टिर संवत 9 जयेष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश यानि शिव और आदिशक्ति यानि माता पार्वती ने ऋषियों के शाप के कारण पत्थर के समान बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को शाप से मुक्त किया और पुनर्जीवन देते हुए कहा कि, 'आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, अत: तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे'।
इस प्रकार भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से उन्हें पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई, इसलिए भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव ‘माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन’ के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस उत्सव के तहत इस दिन शोभायात्रा निकाली जाती और महेश वंदना गाई जाती है, साथ ही भगवान महेशजी की महाआरती भी होती है।
वहीं जानकारों का मानना है कि कोरोना संक्रमण के चलते पिछले करीब एक साल से त्यौहारों को मनाने के ढ़ंग में बदलाव आ गया है। ऐसे में इस बार भी यदि पूरी तरह से अनलॉक (यानि कोरोना का पूरा सफाया) नहीं हुआ तो शिव जी के भक्त घर में रह कर ही Lord Shiv की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
Published on:
11 Jun 2021 01:33 pm
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