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साल में सिर्फ एक बार खुलता है उज्जैन का यह मंदिर, विष्णुजी नहीं शिवजी विराजते हैं नाग शैय्या पर, पढ़ें-मंदिर की कहानी

Nag chandreshwar mandir history: हिंदू धर्म मानने वालों के मंदिर साल के 365 दिन भगवान की पूजा अर्चना के लिए खुलते हैं, लेकिन उज्जैन में एक ऐसा मंदिर है जहां भक्तों को सिर्फ एक दिन पूजा अर्चना का मौका मिलता है। आइये जानते हैं रहस्य ...

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Nag chandreshwar mandir history

नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन

Nag chandreshwar mandir history: हिंदू धर्म में नागों को भगवान भोलेनाथ का हार माना जाता है। इसीलिए इनकी भी पूजा की जाती है और देश में कई जगहों पर नाग मंदिर बनाए गए हैं। इन्हीं में से एक नाग मंदरि महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर है, जिसे नागचंद्रेश्वर मंदिर कहा जाता है। लेकिन महाकाल की पूजा भले ही रोज होती है, इस मंदिर को भक्तों के लिए नाग देवता की पूजा के लिए साल में सिर्फ एक दिन ही खोला जाता है। यहां नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर भक्तों को नागराज की पूजा का अवसर मिलता है। मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में रहते हैं।


नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। वैसे तो धार्मिक ग्रंथों में भगवान विष्णु को ही सर्प शैय्या पर दिखाया और बताया गया है, लेकिन यह देश का एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान भोलेनाथ, गणेशजी और माता पार्वती के साथ दशमुखी सर्प की शैय्या पर विराजमान हैं। साथ ही शिवशंभु के गले और भुजाओं में सर्प लिपटे हुए हैं। किंवदंती है कि यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी।

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नागचंद्रेश्वर मंदिर की कथा

कथा के अनुसार सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को प्रसन्न करने के लिए एक बार घोर तपस्या की। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही महाकाल वन में रहना शुरू कर दिया।

लेकिन महाकाल वन में रहने से पहले वे चाहते थे कि उनके कारण महाकाल के एकांत में विघ्न ना हो, इसलिए मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय महाकाल के सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

राजा भोज ने बनवाया था मंदिर

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार नागचंद्रेश्वर मंदिर को परमार राजा भोज ने करी 1050 ईस्वी में बनवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए नागपंचमी से पहले की रात 12 बजे मंदिर के पट खुलते हैं और नागपंचमी की रात को बंद कर दिए जाते हैं।