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पितृ पक्ष में केवल ऐसे भोजन को ही खाते हैं पितृगण

locationभोपालPublished: Sep 17, 2019 02:23:59 pm

Submitted by:

Shyam

Pitru Paksha : Pitro ka bhog : केवल पत्तों से बनी पत्तलों पर पित्रों के निमित्त भोजन रखना चाहिए। पाप, चोरी या अनीति पूर्वक कमाएं धन के अन्न को पितरों की आत्माएं कभी ग्रहण नहीं करती और दुखी होकर अपने स्थान को चली जाती है।

पितृ पक्ष में केवल ऐसे भोजन को ही खाते हैं पितृगण

पितृ पक्ष में केवल ऐसे भोजन को ही खाते हैं पितृगण

पितृ पक्ष के सोलह दिन हर कोई अपने पितरों के निमित्त तरह-तरह के पकवान बनाकर पितरों को भोग लगाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, कहा जाता है कि अपने पूर्वज पितरों को केवल सात्विक, अन्न का भोग लगाएं जो ईमानदारी और स्वयं की मेहनत से कमाया गया हो। ऐसे अन्न के भाग को ही पितरों की आत्माएं ग्रहण करती है। पितरों के नाम से ब्राह्मण-भोजन, या जरूरत मंद को भोजन कराते है तो वह अन्न भी केवल अपनी स्वयं की कमाई का ही हो, साथ केवल पत्तों से बनी पत्तलों पर पित्रों के निमित्त भोजन रखना चाहिए। पाप, चोरी या अनीति पूर्वक कमाएं धन के अन्न हो पितरों की आत्माएं कभी ग्रहण नहीं करती और दुखी होकर अपने स्थान को चली जाती है।

 

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इस तरह के अन्न के भाग का भोग पितरों को लगाना चाहिए-

1- श्राद्ध का भोजन ऐसा हो
– जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है
– ज़्य़ादा पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये
– गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है
– तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है
– तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं

2- श्राद्ध के भोजन में ये अन्न नहीं पकायें

– चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा
– कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी
– बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी
– खराब अन्न, फल और मेवे

 

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3-सतपथ ब्राह्मनों को इन बर्तनों में ही भोजन कराया जा सकता है

– सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन भोजन के लिये सर्वोत्तम है
– चांदी के बर्तन में तर्पण करने से राक्षसों का नाश होता है
– पितृ, चांदी के बर्तन से किये तर्पण से तृप्त होते हैं
– चांदी के बर्तन में भोजन कराने से पुण्य अक्षय होता है
– श्राद्ध और तर्पण में लोहे और स्टील के बर्तन का प्रयोग न करें
– केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन नहीं कराना चाहिये
– श्राद्ध तिथि पर भोजन के लिये, ब्राह्मणों या अन्य को पहले से आमंत्रित करें
– दक्षिण दिशा में बिठायें, क्योंकि दक्षिण में पितरों का वास होता है

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