scriptSawan Shri ram poojan: सावन में श्रीराम के पूजन का रहस्य, हिंदू धर्मग्रंथों से ऐसे समझें | Shri Ram puja effects in sawan mas | Patrika News

Sawan Shri ram poojan: सावन में श्रीराम के पूजन का रहस्य, हिंदू धर्मग्रंथों से ऐसे समझें

locationभोपालPublished: Jul 28, 2021 08:49:07 pm

Shri Ram worship in Sawan- भगवान राम की पूजा के बिना शिव पूजा अधूरी…

Shri Ram and shiv in sawan

Shri Ram and Shiv poojan in sawan

हिंदू कैलेंडर का पांचवा माह सावन भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। ऐसे में जहां ये माना जाता है कि इस समय भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। वहीं ये भी मान्यता है कि इस माह में भगवान शिव की पूजा भक्तों को कई गुना फल देती है। वर्तमान में सावन 2021 शुरू हो चुका है।

वहीं कल यानि 29 जुलाई 2021 को सावन का पहला गुरुवार पड़ रहा है। गुरुवार को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। ऐसे में सावन के गुरुवार को श्रीराम का पूजन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। माना जाता है कि सावन में श्रीराम की पूजा भगवान शिव को अत्यंत प्रसन्न करती है।

पंडित डीके शास्त्री के अनुसार माना जाता है कि जहां शिव की पूजा होती है वहां राम प्रसन्न होते हैं, वहीं जहां राम की पूजा होती है वहां शिव प्रसन्न होकर मनचाहा आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

Read more- देश की इकलौती धरोहर, जहां कायम है आज भी रामराज

shiv and ram

भगवान शिवजी कहते हैं , “रामेश्वर तु राम यस्य ईश्वरः”, अर्थात राम जिसके ईश्वर हैं।

भगवान विष्णु जी के अवतार श्रीराम कहते हैं ,”रामेश्वर तु रामस्य यः ईश्वरः”, अर्थात जो राम के ईश्वर हैं ।
ऐसे में माना जाता है कि भगवान शिव के प्रिय माह सावन में श्रीराम की पूजा भगवान शिव को अत्यधिक प्रसन्न करती है। वहीं इसके चलते भोलेनाथ खुश होकर भक्त को मनचाहा वरदान तक प्रदान करते हैं।
यह भी पढ़ें
Sawan Mass 2021: भगवान शिव के इस माह से श्रीकृष्ण का भी है खास संबंध, जानिए कैसे मिलता है आरोग्य का वरदान

sawan shiv and krishan

पंडितों व जानकारों की मानें तो सावन के महीने मे भगवान राम की पूजा भी उतना ही महत्व रखती है जितना की शिव पूजा। ऐसे में सावन के महीने में कई लोग श्री रामचरितमानस का पाठ कराते हैं। कहा जाता है कि यदि आप अखण्ङ पाठ नहीं करा सकते हैं,तो एक मास परायण का पाठ भी लाभकारी है।

पं. शास्त्री के अनुसार रामचरितमानस के पाठ से भगवान राम की आराधना तो होती ही है साथ ही भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैँ। दरअसल माना जाता है कि जहां भगवान राम की पूजा के बिना शिव पूजा अधूरी रहती है वहीं बिना शिव पूजा के राम पूजा अधूरी है।

मान्यता के अनुसार सावन के महीने में रामचरितमानस का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि कहा जाता है इसकी रचना स्वयं शंकर जी ने की है। इसका जिक्र तुलसीदास जी ने भी किया है।

Read more- जी हां, मध्यप्रदेश से भी हैं भगवान श्रीराम के कई खास रिश्ते!

shree Ram and rameshwar shiv

रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमय सिवा मनभाषा।।
ताते राम चरितमानस वर। धरेउ नाम हियं हेरि हरसि हर।।
(बालकाण्ड में दोहा नंबर(34) चौपाई(6))

अर्थात महेश ने (महादेव जी) इसे रचकर अपने मन में रखा था और अच्छा अवसर देखकर पार्वती जी को कहा। शिवजी ने अपने मन में विचार कर इसका नाम रामचरितमानस रखा।

ऐसे होते हैं भगवान शिव प्रसन्न (मान्यता के अनुसार):
– शिव का प्रिय मंत्र ‘नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय‘ और ‘श्रीराम जय राम जय जय राम‘ मंत्र का उच्चारण कर शिव को जल चढ़ाने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

रामरक्षास्त्रोत और शिव…
राम चरितमानस के अलावा सावन में रामरक्षास्त्रोत का भी बहुत महत्व माना जाता है। दरअसल श्रावण (सावन) महीने के महीने में जहां भगवान शिव की आराधना का विशेष फल मिलता है, वहीं इस समय भोलेनाथ के ग्यारहवें रुद्रावतार हनुमानजी की भी पूजा की जाती है।

स्वयं श्री राम ने किया था इस मूर्ति का निर्माण! जो आज भी करती है पापों से मुक्त

shriram_made_this_murti.jpg

दरअसल हनुमान स्वयं भगवान शिव के अवतार हैं और वे श्रीराम जी के सबसे प्रमुख भक्त भी हैं। इन्हीं सब कारणों से सावन में रामरक्षास्त्रोत का प्रभाव भी अत्यधिक बढ़ जाता है। दरअसल एक ओर जहां भगवान शिव स्वयं राम को अपना ईश्वर मानते हैं, वहीं उनके अवतार हनुमान जी राम के परम भक्त हैं। ऐेसे में राम की पूजा यानि रामरक्षास्त्रोत का पाठ जो वास्तव में एक कवच माना जाता है। यह अत्यधिक फल प्रदान करता है।

भगवान राम ने स्वयं कहा है : ‘शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा।’

– अर्थात्‌ जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता।
ऐसे में माना जाता है कि शिव आराधना के साथ श्रीरामचरितमानस पाठ का बहुत महत्वपूर्ण होता है।

: लिंग-थाप कर विधिवत पूजा, शिव समान मोही और न दूजा।।
शिव द्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहु मोही न भावा।।
(लंकाकाण्ड का दोहा नंबर (1) चौपाई(3))

shiv and vishnu

यानि भगवान राम का कहना है भगवान शिव के समान मुझे कोई दूसरा प्रिय नही है इसलिए शिव मेरे आराध्य देव हैँ जो शिव के विपरीत चलकर या शिव को भूलकर मुझे पाना चाहे तो मैँ उसपर प्रसन्न नहीं होता। जिसका प्रमाण रामचरितमानस में चंद चौपाई और दोहों में किया गया है।

: राम चरितमानस में गोस्वामी जी ने लिखा है।
शंकर प्रिय मम द्रोही, शिव द्रोही ममदास।। ते नर करही कलप भरी, घोर नरक महुँ वास।।

यानि जो व्यक्ति राम से वैर कर शिव का उपासक अथवा शिव से वैर रखता हो और राम का उपासक बनना चाहता हो तो वह पुण्य नहीं पाप का भागी होता है।

भगवान शिव और श्रीराम : ऐसे समझें …
माना जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 14 वर्ष के वनवास काल के बीच जब जाबालि ऋषि की तपोभूमि मिलने आए तब भगवान गुप्त प्रवास पर नर्मदा तट पर आए। उस समय यह पर्वतों से घिरा था।

रास्ते में भगवान शंकर भी उनसे मिलने को आतुर थे, लेकिन भगवान और भक्त के बीच वे नहीं आ रहे थे। भगवान राम के पैरों को कंकर न चुभें इसीलिए शंकरजी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया। इसलिए कंकर-कंकर में शंकर बोला जाता है।

जब प्रभु श्रीराम रेवा तट पर पहुंचे तो गुफा से नर्मदा जल बह रहा था। श्रीराम यहीं रुके और बालू एकत्र कर एक माह तक उस बालू का नर्मदा जल से अभिषेक करने लगे। आखिरी दिन शंकरजी वहां स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम व शंकर का मिलन हुआ।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो