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श्रीगंगा स्त्रोत और आरती पाठ से कटेंगे पाप, गंगा दशहरा पर पढ़ने से हैं इसके लाभ ही लाभ

Published: May 29, 2023 08:43:40 pm

Submitted by:

Pravin Pandey

गंगा दशहरा कल (Ganga Dussehra) है, इस दिन पापनाशिनी गंगा में स्नान और पूजा का महत्व है। लेकिन जो लोग गंगाजी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, उन्हें घर में ही पानी में कुछ बूंदे गंगाजल की मिलाकर स्नान करना चाहिए और श्रीगंगा स्त्रोत और आरती का पाठ करना चाहिए। इससे व्यक्ति के पाप कटते हैं और पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

गंगाजी की पूजा में पढ़ें यह मंत्र
ऊं नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा

गंगाजी की आरती (Ganga Aarati)


ऊं जय गंगे माता, श्री गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।
ऊं जय गंगे माता…
चन्द्र-सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।
ऊं जय गंगे माता…

पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।
ऊं जय गंगे माता…

एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता।
यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता।
ऊं जय गंगे माता…
आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता।
दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता।
ऊं जय गंगे माता…ऊं जय गंगे माता…

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श्रीगंगा स्तोत्रम्
देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे ।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।।1।।

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात: ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम ।।2।।

हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम ।।3।।
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्त: किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ।।4।।

पतितोद्धारिणि जाह्रवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे ।
भीष्मजननि हेमुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।।5।।

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कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे ।।6।।

तव चेन्मात: स्रोत: स्नात: पुनरपि जठरे सोsपि न जात: ।
नरकनिवारिणि जाह्रवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ।।7।।

पुनरसदड़्गे पुण्यतरंगे जय जय जाह्रवि करूणापाड़्गे ।
इन्द्रमुकुट मणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ।।8।।
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ।।9।।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवास: खलु वैकुण्ठे तस्य निवास: ।।10।।

वरमिह: नीरे कमठो मीन: कि वा तीरे शरट: क्षीण: ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीन: ।।11।।
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो य: सजयति सत्यम ।।12।।

येषां ह्रदये गंगाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुख मुक्ति: ।
मधुराकान्तापंझटिकाभि: परमानन्द कलितललिताभि:।। 13।।

गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम ।
शंकरसेवकशंकरचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्त: ।।
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