
truth of rawan and kumbhkaran
रामायण के पात्र रावण या कुंभकरण को इस दुनिया में कौन नहीं जानता, उनके जैसा या उनके नाम का कभी कोई दूसरा नहीं हुआ। राजाधिराज लंकाधिपति महाराज रावण को 'दशानन' भी कहते हैं। कहा जाता है कि रावण लंका का तमिल राजा था।
रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी व बहुविद्याओं का जानकार था। उसे 'मायावी' इसलिए कहा जाता था क्योंकि वह इन्द्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान भी था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इस सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे।
ऐसे समझें कौन थे रावण व कुंभकरण
मान्यता के अनुसार रावण व कुंभकरण अपने पूर्व जन्म में विष्णु के द्वारपाल थे। एक पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार भगवान विष्णु के दर्शन के लिए सनक, सनंदन आदि ऋषि विष्णुलोक पधारे, परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें द्वार पर ही रोककर अंदर जाने से मना कर दिया। उनका कहना था कि अभी भगवान के विश्राम का समय है।
हां, इसमें यह परिवर्तन हो सकता है कि तुम हमेशा के लिए राक्षस नहीं रहोगे, लेकिन 3 जन्मों तक तो तुम्हें राक्षस योनि में रहना ही होगा और उसके बाद तुम पुन: इस पद पर प्रतिष्ठित हो सकोगे। लेकिन इसके साथ एक और शर्त यह है कि भगवान विष्णु या उनके किसी अवतारी-स्वरूप के हाथों तुम्हारा मरना अनिवार्य होगा। वहीं कुछ जानकारों का कहना है इस दौरान ऋषियों ने यह भी कहा यदि तुम अपने जन्मों के दौरान विष्णु भक्त बने तो तुम्हें पांच जन्म लेने होंगे,वहीं यदि तुम विष्णु विरोधी बने तो तुम तीन जन्मों के बाद ही अपना स्थान वापस पा सकोगे।
इस शाप के चलते भगवान विष्णु के इन द्वारपालों ने सतयुग में अपने पहले जन्म में हिरण्याक्ष (विजय)व हिरण्यकशिपु(जय) राक्षसों के रूप में जन्म लिया। हिरण्याक्ष राक्षस बहुत शक्तिशाली था। उसके कारण पृथ्वी पाताल-लोक में डूब गई थी।
पृथ्वी को जल से बाहर निकालने के लिए भगवान विष्णु को वराह अवतार धारण करना पड़ा। इस अवतार में उन्होंने धरती पर से जल को हटाने के अथक कार्य किया। उनके इस कार्य में बार-बार हिरण्याक्ष विघ्न डालता था, अत: अंत में श्रीविष्णु ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। उसके बाद धरती पुन: मनुष्यों के रहने लायक स्थान बन गई।
हिरण्याक्ष का भाई हिरण्यकशिपु भी ताकतवर राक्षस था और उसने तप करके ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था। वह जानता था कि इस वरदान के चलते मुझे कोई न आकाश में मार सकता है और न पाताल में। न दिन में और न रात में। न कोई देव, न राक्षस और न मनुष्य मार सकता है तो फिर चिंता किस बात की? यही सोचकर उसने खुद को ईश्वर घोषित कर दिया था।
भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करने के कारण वह विष्णु विरोधी हो गया, लेकिन जब उसे पता चला कि उसका पुत्र प्रहलाद विष्णुभक्त है तो उसने उसे मरवाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन वह अपने पुत्र को नहीं मार सका। अंत में उसने एक खंभे में लात मारकर प्रहलाद से पूछा- 'यदि तेरा भगवान सभी जगह है तो क्या इस खंभे में भी है?'
खंभे में लात मारते ही खंभे से भगवान विष्णु नृसिंह रूप में प्रकट हुए, जो न देव थे और न राक्षस और न मनुष्य।
वे अद्र्धमानव और अद्र्धपशु थे। उन्होंने संध्याकाल में हिरण्यकशिपु को अपनी जंघा पर बिठाकर उसका वध कर दिया।
वध होने के बाद ये दोनों भाई त्रेतायुग में रावण(जय) और कुंभकर्ण (विजय) के रूप में पैदा हुए और फिर श्रीविष्णु अवतार भगवान श्रीराम के हाथों मारे गए। अंत में वे तीसरे जन्म में द्वापर युग में दंतवक्त्र (वहीं कुछ लोग इसे कंस बताते हैं(जय)) व शिशुपाल(विजय) नाम के अनाचारी के रूप में पैदा हुए।
इन दोनों का भी वध भगवान श्रीकृष्ण के हाथों हुआ।
मायावी रावण के अंदर थीं ये अच्छाइयां :
रावण के बारे में वाल्मीकि रामायण के अलावा पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित आदि हिन्दू ग्रंथों के अलावा जैन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। भगवान रामचंद्र का विरोधी और शत्रु होने के बावजूद रावण 'सिर्फ बुरा' ही नहीं था। उसमें कई अच्छाईयां भी समाहित थीं।
1. महापंडित रावण: कहा जाता है कि जब राम वानरों की सेना लेकर समुद्र तट पर पहुंचे, तब राम रामेश्वरम के पास गए और वहां उन्होंने विजय यज्ञ की तैयारी की। उसकी पूर्णाहुति के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति को बुलावा भेजा गया, मगर उन्होंने आने में अपनी असमर्थता व्यक्त की।
तब प्रभु राम ने सुग्रीव से कहा- 'तुम लंकापति रावण के पास जाओ।' सभी आश्चर्यचकित थे किंतु सुग्रीव प्रभु राम के आदेश से लंकापति रावण के पास गए। रावण यज्ञ पूर्ण करने लिए आने के लिए तैयार हो गया और कहा - 'तुम तैयारी करो, मैं समय पर आ जाऊंगा।'
रावण पुष्पक विमान में माता सीता को साथ लेकर आया और सीता को राम के पास बैठने को कहा, फिर रावण ने यज्ञ पूर्ण किया और राम को विजय का आशीर्वाद दिया।
2. शिवभक्त रावण : रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था, उसने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की।
कुछ जानकारों का तो यहां तक मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है। रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से सीखी थी।
3. राजनीति का ज्ञाता : जब रावण मृत्युशैया पर पड़ा था, तब राम ने लक्ष्मण को राजनीति का ज्ञान लेने रावण के पास भेजा। जब लक्ष्मण रावण के सिर की ओर बैठ गए, तब रावण ने कहा- 'सीखने के लिए सिर की तरफ नहीं, पैरों की ओर बैठना चाहिए, यह पहली सीख है।' रावण ने राजनीति के कई गूढ़ रहस्य बताए।
4. कई शास्त्रों का रचयिता रावण : रावण ने शिव की स्तुति में तांडव स्तोत्र के अलावा रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी।
5. परिजनों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध : भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई, तब रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना रची। इसके अनुसार मारीच का सोने के हिरण का रूप धारण करके राम व लक्ष्मण को वन में ले जाने और उनकी अनुपस्थिति में रावण द्वारा सीता का अपहरण करने की योजना थी।
6. माता सीता को छुआ तक नहीं : भगवान राम की अर्धांगिनी मां सीता का पंचवटी के पास लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक अपनी कैद में रखा था, लेकिन इस कैद के दौरान रावण ने माता सीता को छुआ तक नहीं था।
7. अच्छा शासक : रावण ने असंगठित राक्षस समाज को एकत्रित कर उनके कल्याण के लिए कई कार्य किए। रावण के शासनकाल में जनता सुखी और समृद्ध थी। सभी नियमों से चलते थे और किसी में भी किसी भी प्रकार का अपराध करने की हिम्मत नहीं होती थी।
8. लक्ष्मण को बचाया था रावण ने: रावण के राज्य में सुषेण नामक प्रसिद्ध वैद्य था। जब लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए तब जामवंतजी ने सलाह दी की अब इन्हें सुषेण ही बचा सकते हैं। रावण की आज्ञा के बगैर उसके राज्य का कोई भी व्यक्ति कोई कार्य नहीं कर सकता। माना जाता है कि रावण की मौन स्वीकृति के बाद ही सुषेण ने लक्ष्मण को देखा था और हनुमानजी से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था।
9. महान वैज्ञानिक: रावण अपने युग का प्रकांड पंडित ही नहीं, वैज्ञानिक भी था। आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष के क्षेत्र में उसका योगदान महत्वपूर्ण है। इंद्रजाल जैसी अथर्ववेदमूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया। उसके पास सुषेण जैसे वैद्य थे, जो देश-विदेश में पाई जाने वाली जीवनरक्षक औषधियों की जानकारी स्थान, गुण-धर्म आदि के अनुसार जानते थे।
Published on:
22 Apr 2020 04:14 pm
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