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Karva Chauth Sargi: करवाचौथ पर सरगी खाने की शुरुआत कब और कैसे हुई? जानें खाने का तरीका और धार्मिक महत्व

Karva Chauth Sargi: करवाचौथ 2025 में सरगी का खास महत्व है। जानें सरगी की परंपरा की शुरुआत, खाने का सही समय, थाली में क्या-क्या शामिल होता है और इसके नियम। सरगी का भावनात्मक महत्व भी पढ़ें।

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भारत

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Dimple Yadav

Oct 04, 2025

Karva Chauth Sargi

Karva Chauth Sargi (photo- gemini ai)

Karva Chauth Sargi: करवाचौथ का व्रत हर विवाहित महिला के लिए बेहद खास माना जाता है। सुहागिन स्त्रियां यह व्रत अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। इस दिन की शुरुआत होती है सरगी से, जिसे सास अपनी बहू को देती है। सरगी सिर्फ भोजन की थाली नहीं होती, बल्कि इसमें आशीर्वाद और स्नेह का संदेश छिपा होता है। यही वजह है कि करवाचौथ पर सरगी का महत्व व्रत जितना ही खास माना जाता है।

सरगी की परंपरा कैसे शुरू हुई?

सरगी की शुरुआत से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें पहली माता पार्वती की कथा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब माता पार्वती ने पहली बार करवाचौथ का व्रत रखा था, उनकी सास जीवित नहीं थीं। ऐसे में उनकी मां मैना देवी ने उन्हें सरगी दी थी। तभी से यह परंपरा चली कि अगर सास न हो तो मायके से भी मां सरगी दे सकती है। दूसरी महाभारत में वर्णन मिलता है कि द्रौपदी ने पांडवों की लंबी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत रखा था। उस समय उनकी सास कुंती ने उन्हें सरगी दी थी। इससे यह परंपरा ससुराल पक्ष से भी जुड़ गई।

सरगी खाने का सही समय

सरगी खाने का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है। इसे ब्रह्म मुहूर्त में यानी सूर्योदय से पहले खाया जाता है। आमतौर पर सुबह 4:00 से 5:30 बजे के बीच सरगी ग्रहण की जाती है। सूर्य निकलने के बाद सरगी खाना व्रत के नियमों के विरुद्ध माना जाता है।

सरगी की थाली में क्या-क्या होता है?

सरगी की थाली बेहद सात्विक और ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थों से सजाई जाती है। इसमें शामिल होते हैं

फल: सेब, केला, अनार, पपीता आदि

सूखे मेवे: बादाम, काजू, किशमिश

मिठाई: खीर, हलवा या सेवई

पेय पदार्थ: नारियल पानी या दूध

सात्विक व्यंजन: मठरी, पराठा (बिना ज्यादा मसाले)

श्रृंगार का सामान: बिंदी, चूड़ी, सिंदूर, साड़ी आदि, जो बहू के सौभाग्य का प्रतीक माने जाते हैं।

सरगी का भावनात्मक महत्व

सरगी केवल भोजन नहीं है, बल्कि यह सास के आशीर्वाद और अपनत्व का प्रतीक होती है। इससे बहू को व्रत की कठिनाई को सहने की ताकत मिलती है। यह परंपरा न केवल परिवारिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि व्रत को आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से और भी खास बना देती है। इसमें आपको तैलीय और मसालेदार भोजन, भारी व्यंजन, जो व्रत के दौरान थकान या परेशानी पैदा कर दें ये सब नहीं खाना चाहिए।