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जोंक खून ही नहीं चूसता बल्कि कई रोगों के इलाज में होता है मददगार

- आयुर्वेद में जोंक चिकित्सा पद्धति से होता है इलाज - प्राचीनकाल से होता आ रहा इलाज, कई ग्रंथों में है उल्लेख धौलपुर. पुरानी कहानियों में खून चूसने के लिए बदनाम जीव जोंक का इस्तेमाल असाध्य बीमारियों के इलाज में किया जा रहा है। जोंक के खून चूसने की स्वाभाविक खूबी के साथ सामंजस्य बैठाते हुए अधिकांशत

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Leech not only sucks blood but is helpful in treating many diseases

जोंक खून ही नहीं चूसता बल्कि कई रोगों के इलाज में होता है मददगार

जोंक खून ही नहीं चूसता बल्कि कई रोगों के इलाज में होता है मददगार


- आयुर्वेद में जोंक चिकित्सा पद्धति से होता है इलाज

- प्राचीनकाल से होता आ रहा इलाज, कई ग्रंथों में है उल्लेख

धौलपुर. पुरानी कहानियों में खून चूसने के लिए बदनाम जीव जोंक का इस्तेमाल असाध्य बीमारियों के इलाज में किया जा रहा है। जोंक के खून चूसने की स्वाभाविक खूबी के साथ सामंजस्य बैठाते हुए अधिकांशत: आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा चिकित्सीय जगत में इसका प्रयोग दूषित रक्त को निकालने में किया जा रहा है। आमतौर पर लोग समझते हैं कि आयुर्वेद चिकित्सक कोई जड़ी-बूटी चूर्ण आदि देंगे वह कुछ परहेज बताएंगे और दवाई लेकर घर आ जाएंगे। नही इसके अलावा भी कई ऐसी चिकित्सा हैं जिनके बारे में हम अभी तक अनभिज्ञ हैं।

जलौका (जोंक) क्या हैआयुर्वेद में पंचकर्म, अग्निकर्म, क्षार कर्म, क्षारसूत्र तथा रक्त मोक्षण आदि के द्वारा भी अनेक बीमारियों का इलाज कराया किया जाता है। उसी में रक्तमोक्षण के अंतर्गत जलौका चिकित्सा का समावेश किया गया है जिसमें की शरीर से दूषित रक्त को बाहर निकालने की प्रक्रिया को रक्तमोक्षण कहते हैं। जलौका चिकित्सा में विशिएटिड रक्त (अशुद्ध रक्त) को प्रभावित क्षेत्र या स्थान से जोंक द्वारा बाहर निकाला जाता है। इसको मेडिसिनल लीच थेरेपी या हिरूडोथेरेपी या जलौका चिकित्सा कहा जाता है। लीच को आजकल हम जोंक के नाम से भी जानते हैं जोंक की अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें हिरुडोमेडिसिनालिस लीच (औषधीय जोंक) को चिकित्सा के लिए प्रयोग किया जाता है। जोंक को छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी में उपयोग किया जाता है। कितनी जौंक रोगी को लगानी है यह रोगी की उम्र और बीमारी के ऊपर निर्भर करता है।

आयुर्वेद में वर्णन

प्राचीन काल से ही आयुर्वेद की सुश्रुत संहिता में बताई जलौका चिकित्सा का प्रयोग अनेक बीमारियों में करते आ रहे हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति में इसकी पुरातनता का अदेशा इस बात से लगाया जाना चाहिए कि इसका संदर्भ भगवान धनवंतरी के साथ हमें उपलब्ध मिलता है। ओम शंखम चक्रं जलौकां दधमृत घटं चारुदोभिश्चतुर्भिरू। यह धनवंतरी स्रोत की पहली पंक्ति है जो बताती है कि समुद्र मंथन में उत्पन्न भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले चिकित्सा शास्त्र और आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वंतरी अपनी चार भुजाओं में से ऊपर की दो में शंख और चक्र धारण किए हुए हैं शेष दो भुजाओं में से एक में जलूका अथवा जौंक सहित औषधियां और दूसरे में भी अमृत कलश लिए हुए है।

जलौका चिकित्सा से सही होने वाली बीमारियां

- विभिन्न प्रकार की त्वचा विकारों में जिनमें की एग्जिमा एसोरायसिस, मुखदुषिका (एक्ने वलगैरिस) हरपीज जोस्टर, एलर्जीक डर्मेटाइटिस आदि।

- विभिन्न प्रकार के दुष्ट व्रण अर्थात जिनका घाव भरने में बहुत समय लगता है इनमें डायबीटिक फुटअल्सर एवेरीकोज अल्सर, इसचेमिक अलसर, ट्रॉमेटिक वूण्ड आदि पर लगाने से वहां के ऊतकों को ब्लड सरकुलेशन प्रॉपर होने से पोषण मिलता है जिससे घाव जल्दी भरने में सहायक है।- व्रण शोफ .विभिन्न प्रकार के सूजन, सेल्यूलाइटिस, आर्थराइटिस, टेन्डीनिटिस आदि

- विद्रधि-विद्रधि की अलग अलग अवस्थाओ में- रुधिर परिसंचरण तंत्र विकारों में

- आधुनिक विज्ञान में प्लास्टिक सर्जरी में भी जलौका चिकित्सा का प्रयोग ब्लड सरकुलेशन प्रॉपर करने के लिए स्किन ग्राफ्टिंग के दौरान किया जा रहा है।

जलौका लगाने से पूर्व जांचे आवश्यक

जलौका लगाने से पहले रोगी व्यक्ति की कुछ आवश्यक जांच की जाती हैं। आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी राजकीय आयुर्वेद औषधालय कासिमपुर के डॉ.विनोद गर्ग ने बताया कि इलाज से पहले सीवीसी ब्लीडिंग टाइम, क्लोटिंग टाइम, एचआईवी, एचबीएसएजी, ब्लड शुगर आदि इन आवश्यक जांचों से रोगी की एनीमिया, ब्लीडिंग डिसऑर्डर्स जैसे हीमोफीलिया आदि, रुधिर का थक्का बनने में लगने वाला समय, शुगर या अन्य कोई संक्रामक बीमारी आदि का पता लग जाता है। उन्होंने बताया कि जोंक की लार में लगभग 100 से 150 से बायो एक्टिव सब्सटेंस पाए जाते हैं जिनमें की एंटीकोगुलेंट (खून के धक्को को रोकने वाले) हिरुडीन जो कि रक्त को पतला बनाए रखते हैं तथा रक्त का थक्का नहीं बनता है जिससे कि प्रभावित क्षेत्र में रक्त का प्रवाह बना रहता है और आसपास की कोशिकाओं और ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलने के कारण पोषण मिलता है। जिससे कि संबंधित बीमारियों में लाभ होता है।