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राजस्थान चुनाव: धौलपुर और बाड़ी विधानसभा में त्रिकोणीय, बसेड़ी व राजाखेड़ा में आमने-सामने टक्कर

धौलपुर जिले के चारों विधानसभा क्षेत्रों धौलपुर, बाड़ी, बसेड़ी और राजाखेड़ा में मतदान की घड़ी नजदीक आ गई है, लेकिन चुनावी रंग कहीं नजर नहीं आ रहा।

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Rajasthan Assembly Election 2023 : धौलपुर जिले के चारों विधानसभा क्षेत्रों धौलपुर, बाड़ी, बसेड़ी और राजाखेड़ा में मतदान की घड़ी नजदीक आ गई है, लेकिन चुनावी रंग कहीं नजर नहीं आ रहा। स्टार प्रचारकों और प्रत्याशियों की रैलियों तक सिमटे चुनाव प्रचार में मुद्दों से लेकर झंडे-बैनर तक इस बार गायब नजर आए। दरअसल, यहां इस बार का चुनाव झंडे-बैनर पर नहीं लड़ा जा रहा, बल्कि यहां दलों और चेहरों के आधार पर जीत का दांव लगाया जा रहा है। यहां का मतदाता भले ही मुद्दों को लेकर मुखर नहीं है लेकिन बगावत से लेकर दलबदल जैसी चुनावी चालबाजियां बखूबी समझता है। मतदाताओं से पूछने पर कहते हैं, जिसके झंडे-बैनर लगाओ उसके विरोधी से बुराई हो जाती है। जीत-हार दलों और प्रत्याशियों की है, हम इसमें क्यों पड़े। वहीं, दलों की दलील है कि इससे खर्च बढ़ता है, उसे छुपाया भी नहीं जा सकता। फिर निर्वाचन आयोग में शिकायतें और अनुमति का विवाद अलग होता है। इसलिए चुनाव चुपचाप लड़ा जा रहा है, शोर रैलियों और सभाओं में हो रहा है। चुनावी समीकरणों के आधार पर धौलपुर और बाड़ी में त्रिकोणीय संघर्ष है, जबकि राजाखेड़ा सीधे टक्कर की स्थिति है। बसेड़ी में बगावत ने चुनावी गणित बिगाड़ रखा है।

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धौलपुर में जीजा-साली मैदान में: धौलपुर में पिछली बार भाजपा से जीतने वाली शोभारानी कुशवाह निष्कासन के बाद इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। भाजपा ने कांग्रेस का हाथ छोड़ने वाले शिवचरण कुशवाह को उतारा है। रिश्ते में जीजा औैर साली के चुनावी मुकाबले के बीच हाथी पर सवार होकर कांग्रेस के बागी बनवारी लाल शर्मा के भतीजे रितेश शर्मा मैदान में हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने शोभारानी पर भरोसा कर भाजपा से चुनाव लड़वाया था, लेकिन विधायक बनने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार में आस्था जताकर पाला बदल लिया था।

बाड़ी में बगावत बिगाड़ सकती है खेल
13 में से 10 चुनाव में जीत हासिल कर कांग्रेस के दबदबे वाली बाड़ी विधानसभा सीट पर इस बार त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति है। यहां से तीन बार के विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा को कांग्रेस ने इस बार टिकट नहीं दिया, तो भाजपा का दामन थाम कर लिया। गिर्राज 2008 का चुनाव बसपा से जीते थे, लेकिन फिर कांग्रेस के साथ आ गए थे। इसके बाद से अब तक कांग्रेस के साथ रहे। दूसरी तरफ भाजपा से दावेदारी करने वाले प्रशांत सिंह परमार पर मध्यप्रदेश में शिक्षक रहते हुए शिक्षा माफिया होने का दाग लगने पर टिकट कट गया तो वे कांग्रेस का हाथ पकड़कर चुनाव मैदान में आ गए। लगातार तीन बार से चुनाव हारने वाले जसवंत सिंह भाजपा से बगावत कर हाथी पर सवार हो गए हैं। इसके चलते बाड़ी विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला बेहद रोचक हो गया है।

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बसेड़ी में हार-जीत के समीकरण उलझे
बसेड़ी राजस्थान की हाईप्रोफाइल सीट मानी जाती है। धौलपुरी पत्थर से इस पूरे अंचल को पहचान दिलाने वाली बसेड़ी 2003 के परिसीमन में अस्तित्व में आई है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर कांग्रेस विधायक खिलाड़ीलाल बैरवा टिकट नहीं मिलने पर निर्र्दलीय ताल ठोक रहे हैं, इनकी बगावत सीट का चुनावी गणित उलझा रही है। वहीं 2008 में भाजपा के विधायक रहे सुखराम कोली पिछले चुनाव में निर्दलीय किस्मत आजमाने के बाद इस बार फिर भाजपा के उम्मीदवार हैं, कांग्रेस के संजय जाटव और बसपा के दौलतराम अपने पांसे फेंक रहे हैं। अवैध खनन के लिए कुख्यात इस क्षेत्र में पट्टों की मांग बड़ा मुद्दा रही है।