
फाइल फोटो
धौलपुर। सरकार भले ही खेती को लाभ का धंधा बनाने की बात करती है, लेकिन धरातल पर अलग ही स्थिति देखने को मिलती है। इसका कारण इस बार जिले में फसल खरीदी अप्रेल से शुरू हुई और समय अवधि जून में समाप्त हो गई। मगर तीन माह तक चली सरकारी खरीदी के दौरान बाजार मूल्य से कम एमएसपी के चलते एक भी किसान गेहूं की फसल बेचने को नहीं आया। इस कारण अभी तक क्रय-विक्रय केंद्र पर एक दाना गेहूं का नहीं खरीदा गया है। बीते कुछ वर्षों से जिले के किसानों का समर्थन मूल्य के प्रति रूझान कम होने लगा है।
धौलपुर मंडी सहित जिले में इस बार गेहूं खरीद शून्य रही। किसानों ने इस बार गेहूं की फसल बिक्री के रजिस्ट्रिेशन कराने से दूरी बना ली। इस बार खरीद केंद्रों पर अभी तक एक भी गेहूं का दाना बिक्री करने के लिए किसान नहीं आया। कारण बाजार के भाव से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य और फसल के भुगतान में देरी। जिस कारण केवल दो किसानों ने ही गेहूं बेचने के लिए पंजीयन कराया था। जिसमें से एक भी किसान गेहूं बिकवाली करने के लिए केंद्र पर नहीं पहुंचा। जिस कारण सरकार को अच्छी खासी चपत लग रही है। जो कि चिंतनीय है। सरसों का हाल गेहूं के मुकाबले थोड़ा बेहतर है।
मगर वहां भी लगभग लगभग 50 प्रतिशत किसान ही सरसों को बेचने केंद्रों पर पहुंचे। क्रय-विक्रय सरकारी केंद्रों पर 2036 किसानों ने सरसों बिक्री के लिए रजिस्टे्रशन कराया था। जिसमें से केवल 1090 किसान ही सरसों की फसल बिक्री करने के लिए केंद्रों पर पहुंचे। इन किसानों से 23 हजार 86 क्विंटल सरसों खरीदी गई। सरकारी क्रय-विक्रय केंद्रों पर किसानों की घटती दिलचस्पी का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि आधे मई के बाद से सरसों के किसानों ने सरकारी केंद्रों पर आना लगभग बंद कर दिया। यदा कदा कुछ किसानों ने आकर ही अपनी फसल को बिक्री की।
बीते तीन वर्ष से हो रही कम खरीदी के चलते इस बार किसानों को खरीदी केंद्र तक लाने सरकार ने प्रयास किए और समर्थन मूल्य के साथ 125 रुपए बोनस की घोषणा की। बोनस मिलाकर खरीदी का मूल्य 2400 रुपए प्रति क्विंटल भाव पहुंचा। जबकि फरवरी-मार्च में बाजार में गेहूं का मूल्य 2500 से 2700 रुपए क्विंटल तक पहुंच चुका था। वहीं मार्च माह में मौसम में परिवर्तन के चलते किसानों ने ताबड़तोड़ बाजार में गेहूं बेचने में रूचि दिखाई।
Published on:
30 Jun 2024 08:00 pm
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